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चीन की आर्थिक सुस्ती का भारत पर प्रतिकूल असर : रघुराम राजन

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि चीन की आर्थिक सुस्ती से उपजा दर्द भारत का भी दर्द है। उनका यह कथन सरकार के दावे के बिल्कुल उलट है। सरकार कहती रही है कि चीन की अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती का असर भारत पर नहीं पड़ेगा।
NDTV Profit हिंदीReported by Bhasha
NDTV Profit हिंदी05:14 PM IST, 21 Nov 2015NDTV Profit हिंदी
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भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि चीन की आर्थिक सुस्ती से उपजा दर्द भारत का भी दर्द है। उनका यह कथन सरकार के दावे के बिल्कुल उलट है। सरकार कहती रही है कि चीन की अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती का असर भारत पर नहीं पड़ेगा।

राजन ने साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट को दिए साक्षात्कार में कहा, चीनी अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है। चीन को होने वाले हमारे निर्यात में कुछ की मांग कम हुई है। लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर भी कई देश हैं जो चीन को उतना निर्यात नहीं कर पा रहे हैं, जितना वह करते रहे हैं और इसलिए वह हमसे भी खरीदारी कम कर रहे हैं।

आरबीआई गवर्नर ने कहा, भारत उपभोक्ता जिंस का आयातक देश है, अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिंस के दाम घटने से उसे मदद मिली है, इसलिए इस समय जितना असर हो सकता था, वह नहीं है। फिर भी कुल मिलाकर चीन की आर्थिक सुस्ती से हम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। क्योंकि चीन की सुस्ती का असर वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर पड़ा है और भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले महीने कोलंबिया विश्वविद्यालय में जुटे छात्रों से कहा था कि भारत पर मंदी का कोई असर नहीं पड़ा है। भारत चीन की आपूर्ति शृंखला का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन की सुस्ती को देखते हुए भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए 'अतिरिक्त सहारा' बन सकता है। भारत की तरफ से हाल में चीन की अर्थव्यवस्था पर की गई कुछ टिप्पणियों की चीनी मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया हुई। भारत में कहा गया कि चीन का आर्थिक दर्द भारत के लिए अवसर है।

राजन शुक्रवार को हांगकांग में थे, जहां उन्हें हांगकांग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। अपने साक्षात्कार में राजन ने भारत और चीन के बीच बढ़ती आपसी निर्भरता का भी जिक्र किया। राजन ने कहा, प्रधानमंत्री ने पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिए स्पष्ट मार्ग प्रशस्त किया है। पारंपरिक तौर पर पश्चिम पर ध्यान देने की बजाय अब पूर्व की ओर ज्यादा ध्यान है। चाहे एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक हो या फिर चीन की रेशम मार्ग पहल हो, हमारी चीन और चीनी परियोजनाओं के साथ अधिक संलिप्तता होगी। इससे क्षेत्र में जुड़ने और विस्तार करने में चीन का भी हित होगा।

राजन ने उम्मीद जताई कि भारत आर्थिक मार्ग के बारे में चीन से सबक लेगा। हमें चीन की विनिर्माण क्षेत्र की सफलता से सीखना चाहिए। चीन ने किस प्रकार अपना ढांचागत विकास किया, किस प्रकार चीन ने ग्रामीण क्षेत्र में उद्यम को प्रोत्साहन दिया और किस प्रकार चीन इतनी बड़ी मात्रा में एफडीआई को व्यवस्थित किया। कई भारतीय व्यवसायी जो चीन जाते रहते हैं, वह बेहतर अनुभव के साथ लौटते हैं और बताते हैं कि किस प्रकार चीन में भारत से बेहतर काम होता है।

आरबीआई गवर्नर ने हालांकि यह भी कहा, हमें आंख बंद कर चीन द्वारा अपनाए गए रास्ते पर नहीं चलना चाहिए, क्योंकि उसने भी कुछ शर्तों में बदलाव किया है। हमें यह देखना होगा कि किस रास्ते पर हमें चलना है, ताकि दोनों के लिए यह बेहतर हो। उदाहरण के तौर पर क्या यह ठीक रहेगा कि जिन क्षेत्रों में पहले ही चीन की विशेषज्ञता है, भारत को भी उन्हें क्षेत्रों में बढ़ना चाहिए? कुछ मामलों में दोनों के लिए गुंजाइश है, लेकिन कुछ में यह नहीं हो सकती है।

राजन ने इन दावों को खारिज किया कि चीन की मुद्रा युआन का अवमूल्यन कर बीजिंग ने मुद्रा के क्षेत्र में युद्ध छेड़ दिया है। उन्होंने युआन की विश्व बाजार में बड़ी भूमिका पर भी जोर दिया।

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