लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि रुके हुए आर्थिक फैसलों को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। यह काम राजनीतिक वजहों से मुश्किल हो रहा है लेकिन, ज़मीनी हालात बताते हैं कि यह संकट बहुत गहरा है और वजहें और भी हैं।
15 अगस्त को देशवासियों के सामने प्रधानमंत्री ने जो फिक्र जताई उसका असली मतलब क्या है? सांख्यिकी मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि अभी भारत सरकार के 150 करोड़ से ऊपर के कुल 564 प्रोजेक्ट हैं। इनमें कुल 251 प्रोजेक्ट काफी देरी से चल रहे हैं। इनमें से 105 योजनाएं ऐसी हैं जो दो से पांच साल तक पीछे चल रही हैं जबकि 34 बड़ी योजनाएं ऐसी हैं जिनमें पांच साल से ज्यादा की देरी हो चुकी है।
एनडीटीवी ने जब योजना राज्यमंत्री अश्विनी कुमार से इस स्लो-डाउन के बारे में पूछा तब उनका जवाब था कि हालात सुधारने के लिए प्रधानमंत्री खुद कदम उठा रहे हैं। बरसों से अटके पड़े सरकारी प्रोजेक्ट्स को समय पर पूरा करने में नाकामी पूरी सरकारी मशीनरी की खस्ता हालत की तरफ इशारा करती है।
इस देरी का असर यह हुआ है कि इन प्रोजेक्ट्स पर खर्च का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इन योजनाओं का मूल बजट 7.32 लाख करोड़ था जो देरी की वजह से बढ़ कर 8.75 लाख करोड़ से ऊपर जा चुका है। यानी 1.43 लाख करोड़ रुपये का सीधा−सीधा नुकसान।
पूर्व नौकरशाह और जेडी−यू सांसद एनके सिंह मानते हैं कि सरकार में अफसरों की जवाबदेही तय नहीं की गई है जिस वजह से काम पर बुरा असर पड़ रहा है। इस धीमी रफ़्तार का सीधा असर अर्थव्यवस्था में गिरावट और रोज़गार में कमी है। यानी हालात जल्द नहीं सुधारे गए तो यह अंदरुनी आर्थिक मंदी कहीं ज़्यादा भारी पड़ेगी।