फोर्ब्स पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुस्ती की मुख्य वजह अमेरिकी डॉलर की मजबूती है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की गति 2015 की चौथी तिमाही में बेहद धीमी हो गई। केवल 0.7 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई। साल के शुरू की दर की तुलना में यह काफी बड़ी गिरावट थी।
निर्यात गिर रहा है। ऐसे में इसकी जिम्मेदारी चीन और यूरोप में मांग में कमी के सिर पर डाली जा सकती है। लेकिन, लेख लिखने वाले का ऐसा मानना नहीं है।
लेख में कहा गया है, "गहराई से देखें तो पाएंगे कि समस्या डॉलर के मजबूत होने में छिपी है। महामंदी से अमेरिका का सफलतापूर्वक निकलना इसके लिए जिम्मेदार है।"
लेख में कहा गया है, "अमेरिका के फिसलने की जो भी वजह है, वह यूरोप और जापान पर असर नहीं डाल रही है। जुलाई 2014 में डॉलर की व्यापक स्तर पर मजबूती शुरू हुई, तभी अमेरिकी विनिर्माण में विस्तार रुक गया।"
लेख में कहा गया है, "अन्य प्रतिभूतियों के मुकाबले डॉलर की कीमत में बढ़ोतरी की वजह से अमेरिकी सामान अपेक्षाकृत महंगे लगने लगे और परिणामस्वरूप मांग गिर गई।"
लेख में इस बिंदु को उठाया गया है कि अगर चीन की घटती मांग इस विनिर्माण गिरावट के लिए जिम्मेदार होती तो ऐसे ही हालात यूरोप और जापान में भी नजर आते, क्योंकि इन इलाकों में चीन की चीजों की भारी मांग है।
लेख में कहा गया है, "लेकिन, ऐसा नहीं है। बजाए इसके, जो सहज वजह दिख रही है वह यही है कि अमेरिकी चीजें अपेक्षाकृत रूप से कहीं अधिक महंगी हो गईं।"