ब्रिक (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) देशों की आर्थिक वृद्धि दर में चीन और भारत की मुख्य भूमिका कायम रहेगी और आगामी वर्षों में एशिया की इन दो ताकतों की वृद्धि दर में अंतर लगातार कम होता जाएगा। यह बात क्रेडिट सुईस की रपट में कही गई है।
रपट के मुताबिक, हालांकि ब्रिक देशों की वृद्धि दर में हो रही कमी ने इन देशों की दीर्घकालिक संभावनाओं पर सवाल उठाया है, लेकिन इसके बावजूद आने वाले दिनों में इस समूह में चीन और भारत की वृद्धि में प्रमुख भूमिका रहेगी। हालांकि, संकट से पूर्व की स्थिति में लौटना संभव नहीं होगा।
रपट में कहा गया कि इस परिदृश्य में हमारा मानना है कि चीन और भारत के बीच वृद्धि दर का अंतर घटेगा।
रपट के मुताबिक निवेश में कमी और श्रमबल में कमी से चीन की वृद्धि दर नियंत्रित होगी जबकि भारत की दीर्घकालिक वृद्धि की सैद्धांतिक रूप से अधिक संभावना है।
क्रेडिट सुईस ने कहा, ‘‘भारत में दीर्घकालिक स्तर पर उच्च वृद्धि दर्ज करने की अच्छी संभावना है क्योंकि इसका शुरुआती स्तर नीचे है और संभावना बहुत अधिक है।’’ रपट में कहा गया कि खेतिहर मजदूरों को कृषि से हटा से ज्यादा विकसित और उत्पादक क्षेत्र में ले जाने की बड़ी संभावना है।
भारतीय अर्थव्यवस्था 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से पहले आठ से नौ फीसद की दर से बढ़ रही थी। वित्त वर्ष 2011-12 में यह वृद्धि दर घटकर 6.5 फीसद के नौ साल के निचले स्तर पर आ गई।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में आर्थिक वृद्धि दर 5.3 फीसद रही, जबकि 30 जून को समाप्त तिमाही के दौरान वृद्धि दर 5.5 फीसद थी।
इस रपट में भारत के संबंध में कहा गया कि इसकी सफलता निजी बचत को बढ़ावा देना और इसका इस्तेमाल अनुत्पादक सरकारी खर्च के बदले निजी क्षेत्र में निवेश में करने पर निर्भर करेगी।