ब्रिक्स राष्ट्र प्रमुखों की सेंट पीटर्सबर्ग होने वाली बैठक से पहले गुरुवार को चीन ने विकासशील देशों को विशेष पैकेज की जरूरत को खारिज कर दिया, लेकिन भारत के साथ सहमति जताई कि अमेरिका को मौद्रिक प्रोत्साहन धीमी गति के साथ वापस करना चाहिए।
चीन के इस रुख की जानकारी भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान की पृष्ठभूमि में दी गई, जिसमें सिंह ने अमेरिका से मौद्रिक प्रोत्साहन धीमी गति के साथ वापस लिए जाने की अपील की थी, क्योंकि इससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
चीन के उप वित्त मंत्री झू गुआंग्याओ ने रूस के इस पश्चिमोत्तर शहर में संवाददाताओं से कहा, "अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सकारात्मक संकेत देखे जा रहे हैं। इसमें धीमे-धीमे तेजी वापस आ रही है और हम इसका स्वागत करते हैं।"
झू ने कहा, "लेकिन अमेरिका को निश्चित रूप से इसका दूसरे देशों पर पड़ने वाले असर के बारे में सोचना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि ब्रिक्स देशों की बुनियाद मजबूत है। इसलिए संकट से उबरने के लिए उन्हें बाहरी मदद नहीं चाहिए। लेकिन आंतरिक स्तर पर सुधार किए जाने की जरूरत है।
ब्रिक्स देशों में शामिल हैं-ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका।
उन्होंने कहा, "अभी ब्रिक्स देशों को विशेष मदद की जरूरत नहीं है, लेकिन आंतरिक संरचनागत सुधार जरूरी है।"
मनमोहन सिंह यहां गुरुवार और शुक्रवार को जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे हैं। सिंह ने कहा है कि विकसित देशों को ऐसी नीति पर नहीं चलनी चाहिए, जिसका नकारात्मक असर विकासशील देशों पर पड़े और सभी देशों को संयुक्त रूप से रोजगार सृजन और निवेश में वृद्धि पर जोर देना चाहिए।
शिखर सम्मेलन से पहले सिंह ने कहा, "सेंट पीट्सबर्ग में मैं विकसित देशों द्वारा पिछले कुछ सालों से अपनाई गई अपारंपरिक नीति को धीमे-धीमे वापस लिए जाने पर जोड़ दूंगा, ताकि विकासशील देशों का विकास अवरुद्ध नहीं हो।"
उल्लेखनीय है कि 2008 के बाद से अमेरिकी फेडरल रिजर्व संकट से उबरने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन के रास्ते पर चल रहा है, जिसे अब वह चरणबद्ध तरीके से वापस लेना चाहता है।
प्रधानमंत्री सिंह यहां बुधवार को पहुंचे। उन्होंने ब्रिक्स नेताओं से मुलाकात के साथ अपनी गतिविधि शुरू की।
अधिकारियों के मुताबिक ब्रिक्स देश यहां 100 अरब डॉलर के उस कोष पर भी विचार कर सकते हैं, जिनकी स्थापना पर मार्च में डरबन में सहमति बनी थी और जिससे विकासशील देशों को वित्तीय संकट से निपटने में मदद करने की योजना है।
चीन को छोड़ कर कई विकासशील देशों की मुद्रा इस साल डॉलर के मुकाबले अवमूल्यन का शिकार हुई है। भारतीय मुद्रा रुपया में 20 फीसदी गिरावट आई है।