संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एजेंसी ने कहा है कि आबादी में मोटापा और पोषण की कमी से वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ी क्षति हो रही है। इस एजेंसी ने विश्व की सरकारों से कहा है कि वे खाद्य-स्वास्थ्य पर निवेश् करें क्योंकि इससे उन्हें बड़े आर्थिक व सामाजिक लाभ मिलेंगे।
संरा के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने कहा कि कुपोषण के चलते मनुष्यों की उत्पादकता के ह्रास और स्वास्थ्य की देखरेख संबंधी खर्च वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग पांच प्रतिशत के बराबर हो सकता है। यह मौद्रिक रूप से लगभग 3,500 अरब डॉलर (2600 अरब यूरो) के बराबर बैठता है।
इसमें कहा गया है कि पोषण में सुधार से आय में वृद्धि होगी। इसमें लाभ और लागत का अनुपात लगभग 13:1 तक रहेगा।
अपनी वार्षिक रिपोर्ट में रोम स्थित एफएओ ने कहा है कि विश्व आबादी का 12.5 प्रतिशत (लगभग 86.8 करोड़ लोग) कैलोरी के हिसाब से कुपोषित हैं, जबकि विश्वभर में 26 प्रतिशत बच्चों का अच्छी तरह विकास नहीं हो पाया है।
इसमें कहा गया है कि करीब दो अरब लोग सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का शिकार हैं और 1.4 अरब बच्चों का ज्यादा वजन है, जिसमें से 50 करोड़ बच्चे मोटापे का शिकार हैं। कम और मध्यम आय वाले देशों में मोटापे में जोरदार वृद्धि संबंधित लागतों को जबर्दस्त ढंग से प्रभावित कर रहा है।
एफएओ का कहना है कि शहरीकरण, अधिक बैठने वाले काम और पैकेज्ड फूड की उपलब्धता को देखते हुए मोटापे की समस्या से निपटने के उपाय करना नीति नियामकों के लिए बड़ी चुनौती है।
विशेषज्ञों ने कहा कि विटामिन, आयरन और आयोडीन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी विशेष रूप से विकासशील देशों में आम है।
एफएओ ने कहा कि कुपोषण की लागत वैश्विक जीडीपी का दो से तीन प्रतिशत है, जो प्रतिवर्ष 1400 से 2100 अरब डॉलर के बराबर है।