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आवर्ती जमा (RD) : ब्याज से होने वाली आय पर लगता है टैक्स, जानें नियम

निवेश के लोकप्रिय विकल्पों में से एक है आवर्ती जमा (रिकरिंग डिपॉजिट यानी आरडी). ज्यादातर लोग बैंकों या पोस्ट ऑफिस में निवेश के इस विकल्प को चुनते हैं. आरडी एक ऐसे प्रकार की डिपॉजिट स्कीम है जिसके तहत बैंक और पोस्ट ऑफिस में आप हर महीने एक निश्चित अमाउंट जमा करवा सकते हैं. कुछ बैंक 10 साल तक के आरडी का ऑप्शन भी दे रहे हैं.
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NDTV Profit हिंदी04:36 PM IST, 05 Dec 2016NDTV Profit हिंदी
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निवेश के लोकप्रिय विकल्पों में से एक है आवर्ती जमा (रिकरिंग डिपॉजिट यानी आरडी). ज्यादातर लोग बैंकों या पोस्ट ऑफिस में निवेश के इस विकल्प को चुनते हैं. आरडी एक ऐसे प्रकार की डिपॉजिट स्कीम है जिसके तहत बैंक और पोस्ट ऑफिस में आप हर महीने एक निश्चित अमाउंट जमा करवा सकते हैं. कुछ बैंक 10 साल तक के आरडी का ऑप्शन भी दे रहे हैं.

1 जून 2015 से, आरडी टीडीएस प्रॉविजन के तहत आते हैं. इसके बाद से ही यदि आरडी पर मिलने वाले ब्याज से प्राप्त आय़ 10 हजार रुपए सालाना को पार कर जाए, तो इस पर 10 फीसदी की दर से बैंक टीडीएस काटेगा. इस नियम के आरडी पर लागू होने से पहले तक यह नियम केवल एफडी पर लागू होता था.

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जिन निवेशकों की आय करयोग्य नहीं है, उन्हें चाहे फिक्स्ड डिपॉजिट पर या फिर आरडी पर, टीडीएस से बचने के लिए फॉर्म 15जी सब्मिट करना होगा. वरिष्ठ नागरिकों को इस काम के लिए फॉर्म 15एच जमा करवाना होगा.

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कई निवेशक सोचते हैं कि यदि आपके बैंक ने ब्याज से होने वाली आय पर टीडीएस काट लिया है तो आपको रिटर्न फाइल करते हुए ब्याज से होने वाली आय का जिक्र नहीं करना होगा. यदि आप 20 से 30 फीसदी के टैक्स ब्रैकेट में आते हैं तो आपको ब्याज से होने वाली आय पर भी अधिक टैक्स देना होगा.

आरडी और एफडी से प्राप्त ब्याज आय व्यक्ति को कुल होने वाली आय में ही काउंट की जाती है और इस पर उसी के अनुसार इनकम टैक्स कटता है. टैक्स विभाग ने करदाताओं को सलाह दी है कि वे प्राप्त ब्याज से संबंधित सही और समुचित डीटेल अपने पास रखें.

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