नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल ने सोमवार को दिल्ली में 10 साल से पुरानी गाड़ियों पर पाबंदी लगा दी। बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए फैसलों का असर डीजल गाड़ियों की बिक्री पर साफ दिखने लगा है। एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में सोसाइटी ऑफ ऑटोमोबाइल मैन्यूफैकचर्स के डायरेक्टर जनरल विष्णु माथुर ने बताया कि 2015-16 में कुल गाड़ियों की बिक्री में डीज़ल गाड़ियों का शेयर 34% था, जो जून 2016 में घटकर 27% रह गया है।
विष्णु माथुर ने कहा, दिसंबर से कोर्ट के फैसलों से गाड़ियों के बाज़ार में एक एंटी-डीजल माहौल बना है। डीजल गाड़ियों की बिक्री का शेयर दूसरी गाड़ियों के मुकाबले पिछले महीने घटकर 27 फीसदी रह गया है। लोगों को अब डर लगता है कि अगर उन्होंने डीजल गाड़ी खरीदी तो 10 साल से ज्यादा नहीं चला पाएंगे।"
सोसाइटी ऑफ ऑटोमोबाइल मैन्यूफैकचर्स के आंकड़ों के मुताबिक सवा तीन साल में गाड़ियों की कुल बिक्री में डीजल गाड़ियों का शेयर तकरीबन 15 फीसदी घटा है। 2013-14 में देश में कुल गाड़ियों की बिक्री में डीजल गाड़ियों का शेयर 42% था, जो जून 2016 में घटकर 27% रह गया है। यानी बाजार में डीजल गाड़ियों की मांग घटती जा रही है।
सोसाइटी ऑफ ऑटोमोबाइल मैन्यूफैकचर्स का मानना है कि इस तरह के पहल का असर बड़ी कार कंपनियों के नए निवेश पर पड़ेगा। विष्णु माथुर कहते हैं, "बड़ी कार कंपनियों ने अपने नए investment plans को होल्ड पर कर दिया है। माहौल कार बाज़ार में खराब हो रहा है।"
अब सबकी निगाहें भारत सरकार पर हैं। कार कंपनियां चाहती हैं कि भारत सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करे और उन्हें राहत देने के लिए पहल करे। अब देखना अहम होगा कि सरकार इस मसले पर आगे क्या रुख अख्तियार करती है।