चिलचिलाती गर्मी के बीच दिल्ली को एक जून से भयंकर बिजली संकट का सामना करना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की बिजली वितरण कंपनियों, बीएसईएस राजधानी और बीएसईएस यमुना को इस साल जनवरी से खरीदी गई बिजली के एवज में एनटीपीसी को 31 मई तक 690 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
शीर्ष अदालत ने चेतावनी देते हुए कहा कि तय समयसीमा में भुगतान नहीं करने की स्थिति में एनटीपीसी द्वारा बीएसईएस को बिजली काटने को लेकर दिए गए नोटिस पर लगी रोक हट जाएगी।
जस्टिस एसएस निज्जर और एके सिकरी ने कहा, 'हम यह साफ करते हैं कि अगर उक्त राशि 31 मई तक भुगतान नहीं की गई, एनटीपीसी द्वारा बिजली की आपूर्ति रोके जाने को लेकर नोटिस पर लगी रोक समाप्त हो जाएगी।' शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पुराने बकाये की वसूली को अलग से निपटा जाएगा।
एडीएजी कंपनियों की तरफ से मामले में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि उनके पास एनटीपीसी को देने के लिए पैसे नहीं है, क्योंकि दिल्ली सरकार ने पहले के 14,000 करोड़ रुपये के बकाये का भुगतान नहीं किया है।
बीएसईएस ने कहा कि राज्य नियामक छह साल में बकाये के भुगतान के खाका पर सहमति जतायी है और वह चाहती है कि बकाये का भुगतान तीन साल में किया जाए न कि छह साल में।
इस पर एनटीपीसी के अधिवक्ता ने दलील दी, 'एनटीपीसी क्यों बलि का बकरा बने।' उन्होंने कहा कि अगर बकाये का भुगतान नहीं किया जाता है कि एनटीपीसी बिजली आपूर्ति नहीं कर पाएगी।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने 26 मार्च को सात फरवरी के अंतरिम आदेश को आगे बढ़ाते हुए एनटीपीसी से कहा था कि बीएसईएस राजधानी और बीएसईएस यमुना को भुगतान सुरक्षा प्रणाली तथा बकाए के भुगतान को लेकर बिजली की आपूर्ति नहीं रोकी जाएगी।