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उच्चतम न्यायालय ने केयर्न-वेदांता सौदे को सही ठहराया

उच्चतम न्यायालय ने केयर्न-वेदांता सौदे को सही ठहराते हुए गुरुवार को कहा कि केंद्र सरकार और ओएनजीसी द्वारा केयर्न इंडिया के शेयरों की ब्रिकी मामले में पहले इनकार के अधिकार का इस्तेमाल नहीं करने का फैसला पूरी तरह दूरदर्शी वाणिज्यिक निर्णय था।
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NDTV Profit हिंदी11:14 PM IST, 09 May 2013NDTV Profit हिंदी
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उच्चतम न्यायालय ने केयर्न-वेदांता सौदे को सही ठहराते हुए गुरुवार को कहा कि केंद्र सरकार और ओएनजीसी द्वारा केयर्न इंडिया के शेयरों की ब्रिकी मामले में पहले इनकार के अधिकार का इस्तेमाल नहीं करने का फैसला पूरी तरह दूरदर्शी वाणिज्यिक निर्णय था।

न्यायालय ने कहा कि केंद्र व ओएनजीसी ने केयर्न इंडिया के शेयर नहीं खरीदने का फैसला विभिन्न वाणिज्यिक तथा तकनीकी पहलुओं पर विचार करने के बाद किया और वह पक्षों द्वारा किए गए वाणिज्यिक या व्यापारिक फैसलों पर कोई निर्णय नहीं दे सकता।

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा, तथ्यों के आधार पर तथा कानूनन हमारी राय है कि ओएनजीसी तथा भारत सरकार ने सार्वजनिक हित में दूरदर्शी वाणिज्यिक एवं आर्थिक फैसला किया है। हम यह कहने को तैयार नहीं हैं कि फैसला किसी गलत मंशा तथा किसी बाहरी अथवा अनुचित उद्देश्य से प्रेरित था। पीठ ने कहा ‘‘हमने नोटिस किया कि ओएनजीसी और भारत सरकार ने उत्पादन भागीदारी अनुबंध (पीएससी) से जुड़े विभिन्न वाणिज्यिक और तकनीकी पहलुओं पर विचार कर लिया, इसके साथ ही उन फायदों पर भी गौर किया जो कि केयर्न वेदांता सौदा होने के बाद ओएनजीसी को मिलना था।’’

न्यायालय ने यह आदेश उस जनहित याचिका पर पारित किया जिसमें आरोप लगाया गया था कि केयर्न समूह और ओएनजीसी के बीच अनुबंध में एक धारा यह भी थी कि यदि केयर्न समूह केयर्न इंडिया में अपने शेयर बेचना चाहेगा तो उसे इसकी पेशकश सबसे पहले ओएनजीसी को करनी होगी, पर सरकार और ओएनजीसी ने अपने इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया।

सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद न्यायालय की खंडपीठ इस निष्कर्ष पर पहुंची कि ओएनजीसी द्वारा अपने पहले इनकार का अधिकार (आरओएफआर) का इस्तेमाल नहीं करने का फैसला समुचित विचार-विमर्श के बाद किया गया। इसके अनुसार एसबीआई कैप्स ने व्यापक वित्तीय विश्लेषण के बाद जो रपट दी वह भी ओएनजीसी के फैसले का समर्थन करती है। खंडपीठ ने कहा कि अदालतों को उन वाणिज्यिक तथा व्यापारिक फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जो किसी संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करते हों अथवा वे किसी बाहरी निहितार्थ या अनुचित लक्ष्य के लिए नहीं लिए गए हों।

याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि इस सौदे के बारे में सार्वजनिक उपक्रम और सरकार का फैसला इतर कारणों से लिया गया और उसके सार्थक पहलुओं पर गौर नहीं किया गया।

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि केयर्न के शेयर बेचने की पेशकश पर इनकार का पहला अधिकार (आरओएफआर) ओएनजीसी को था। ओएनजीसी के इनकार के बाद ही केयर्न समूह केयर्न इंडिया में अपने शेयर और पक्ष को बेच सकता था।

केयर्न इंडिया ब्रिटेन के केयर्न एनर्जी समूह की सहायक कंपनी है। भारत में इसकी मुख्य परियोजना राजस्थान के बाड़मेर क्षेत्र में है।

केयर्न एनर्जी ने 16 जून 2010 को ब्रिटेन में पंजीकृत वेदांता समूह के साथ शेयर बिक्री का समझौता किया था। इसके तहत केयर्न ने कंपनी में अपनी बहुलांश हिस्सेदारी वेदांता को 8.5 अरब डॉलर में बेचने का करार किया।

केयर्न इंडिया लिमिटेड का वेदांता समूह द्वारा अधिग्रहण को 24 जनवरी 2012 को केन्द्र सरकार द्वारा मंजूरी दिए जाने को बैंगलूर के निवासी अरण कुमार अग्रवाल ने चुनौती दी थी। उन्होंने ओएनजीसी को अपने पहले इनकार के अधिकार का इस्तेमाल करने और मामले की सीबीआई द्वारा जांच का निर्देश देने का अनुरोध अदालत से किया था।

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