देश की मौजूदा सामाजिक आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के लिए समय अनुकूल नहीं है. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने यह बात कही है. उन्होंने नई दिल्ली में माइंडमाइन सम्मेलन-2018 को संबोधित करते हुए कहा कि निजीकरण हमेशा अच्छा नहीं रहा है. स्वामित्व इसमें कोई महत्व नहीं रखता क्योंकि निजी और सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों में अच्छी और बुरी कंपनियां हैं.
कुमार ने कहा, ‘‘जहां तक बैंकिंग का सवाल है, मेरा मानना है कि देश में सामाजिक आर्थिक परिस्थितियां बैंकों के बड़े पैमाने पर निजीकरण के लिये अनुकूल नहीं हैं. कुमार ने कहा, ‘‘आप जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं उसी रफ्तार को यदि कायम रखते हैं तो हो सकता है अगले 50 साल में आप विकास के उस चरण पर पहुंच जाएं.’’
उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक मात्र एक वाणिज्यिक इकाई नही बल्कि इससे ज्यादा होते हैं, उन्हें सामाजिक प्रतिबद्धताएं पूरी करनी होती है. इस बारे में उन्होंने काफी अच्छा काम किया है.
कुछ उद्योग मंडलों का कहना है कि सरकार को सरकारी बैंकों के निजीकरण पर विचार करना चाहिए, क्योंकि पिछले 11 साल में इनमें 2.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली गई है लेकिन इससे उनकी सेहत नहीं सुधर पाई है.
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन और नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया सहित कई विशेषज्ञों ने पंजाब नेशनल बैंक का 13,000 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आने के बाद सरकारी बैंकों के निजीकरण की वकालत की है.
हालांकि, नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस का कहना है कि वह सरकारी बैंकों के निजीकरण के पक्ष में नहीं हैं. कई देशों में इनका प्रदर्शन कोई विशेष नहीं रहा है.