कॉल ड्रॉप मामले में सुप्रीम कोर्ट टेलीकॉम कंपनियों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रहा है। ट्राई की ओर से AG मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ट्राई का काम करना टेलीकॉम कंपनी और उपभोक्ताओं के बीच बैलेंस बनाना है। टेलीकॉम कंपनियों का राजस्व बड़ी तेजी से बढ़ रहा है और उसकी तुलना में निवेश नहीं हो रहा है। देश में टेलीकॉम सेक्टर का निवेश चीन जैसे देशों की तुलना में काफी कम है। हम उपभोक्ताओं को उनके हक के लिए आवाज दे रहे हैं।
टावरों की कमी सिर्फ बहाना
मोबाइल टावरों की कमी और सीलिंग टेलीकॉम कंपनियों का बहाना हैं। टेलीकॉम कंपनियां गलत आंकड़ा दे रही हैं कि रोजाना 150 करोड़ कॉल ड्रॉप होती हैं तो रोजाना इतना ही हर्जाना देना होगा। 800 करोड़ कॉल हर साल ड्रॉप होती हैं और अगर हर्जाना लगता है तो राशि बहुत ज्यादा नहीं होगी। ये .4 फीसदी ही होगी।
कॉल ड्रॉप से उपभोक्ताओं का नुकसान
हमारे देश में 50 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं, जिसमें 96 फीसदी प्री पेड वाले हैं और 4 फीसदी पोस्ट पेड हैं। देश में औसतन रिचार्ज 10 रुपये का होता है और अगर ऐसे लोगों का कॉल ड्राप हो तो उनका बड़ा नुकसान होता है।
4-5 मोबाइल कंपनियों का कब्जा
रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मोबाइल कंपनियों को उपभोक्ताओं की कोई चिंता नहीं है कि कॉल ड्राप से उन्हें कितना नुकसान होता है। करोड़ों उपभोक्ताओं के देश में 4-5 मोबाइल कंपनियों ने कब्जा कर रखा है। इनका रोजाना 250 करोड़ का राजस्व है, लेकिन निवेश कम है। हर्जाना 6 महीने के लिए है और इसके बाद हम इसकी समीक्षा करेंगे।
जानें पिछली सुनवाई में क्या कहा
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ट्राई से पूछा था कि क्या वह कॉल ड्रॉप्स पर फोन कंपनियों से हर्जाना वसूलने के बारे में अपनी राय बदलने पर विचार करेगा क्योंकि खुद उसने जो टेक्निकल पेपर जारी किया है, वह पिछले साल 16 अक्टूबर को दी गई रूलिंग के खिलाफ जाता दिख रहा है। फोन कंपनियों के वकील कपिल सिब्बल ने जब इस पेपर का जिक्र बेंच के सामने किया तो कोर्ट ने कहा था कि पहली नजर में आपका टेक्निकल पेपर यह कहता दिख रहा है कि टेलीकॉम कंपनियां कॉल ड्रॉप्स के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। कंपनियों की दलील है कि दुनिया में कहीं भी कॉल ड्रॉप को रोका नहीं जा सकता और इसके लिए कई पहलू जिम्मेदार हैं।
दरअसल, ट्राई ने आदेश जारी करते हुए कहा था हर कॉल ड्रॉप पर टेलीकॉम कंपनियों को हर्जाने के तौर पर एक रुपया और अधिकतम तीन रुपये उपभोक्ता को देने होंगे। कंपनियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की लेकिन हाईकोर्ट ने ट्राई के पक्ष में फैसला सुनाया। कंपनियों ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।