योग, संस्कृति में पाठ्यक्रमों को शामिल करने पर JNU करेगा पुनर्विचार

योग, संस्कृति में पाठ्यक्रमों को शामिल करने पर JNU करेगा पुनर्विचार

नई दिल्ली:

आध्यात्मिक और पौराणिक परंपरा के लिए तथा दुनिया में भारतीय मूल्यों की स्थापना के लिए 'भारतीय संस्कृति' और 'योग' पर अल्पकालिक पाठ्यक्रम शुरू करने के उद्देश्य से एक प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डालने के महीनों बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने इस योजना पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है। इस बारे में निर्णय पिछले सप्ताह संस्थान की वैधानिक निर्णय करने वाली इकाई 'अकादमिक परिषद' (एसी) की एक बैठक में किया गया।

परिषद के एक सदस्य ने बताया 'प्रस्तावित पाठ्यक्रम के मसौदे को एसी में पिछले साल खारिज कर दिया गया। हालिया बैठक में यह मामला फिर उठाया गया। कुछ शिक्षक इसका विरोध कर रहे हैं और कुछ इसके पक्ष में हैं। अंतत: इस पर पुनर्विचार करने का फैसला किया गया।' सदस्य ने कहा, कुलपति जगदीश कुमार ने विभागों को प्रस्तावित पाठ्यक्रम ढांचे पर पुन:काम करने और इसे एसी के समक्ष रखने का फैसला किया है।

भारत की समृद्ध धरोहर को आगे बढ़ाने के लिए और इसकी सांस्कृतिक पहचान बहाल करने के लिए शैक्षिक परिसरों में संस्कृति के प्रचार प्रसार पर भाजपा के वैचारिक संरक्षक आरएसएस सहित दक्षिणपंथी संगठनों के जोर दिए जाने की पृष्ठभूमि में, पिछले साल इन विषयों में तीन अल्पकालिक पाठ्यक्रमों को शामिल करने का प्रस्ताव आया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के साथ कई संवाद के बाद विश्वविद्यालय ने पिछले साल तीनों पाठ्यक्रमों का मसौदा विभिन्न स्कूलों और जेएनयू के विभागों की प्रतिक्रिया के लिए उन्हें वितरित किया गया। बाद में एसी ने नवंबर में प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

पूर्ववर्ती मसौदे के अनुसार, भारतीय संस्कृति पर पाठ्यक्रम का उद्देश्य देश की संस्कृति के महत्व का प्रचार करना और इसके व्युत्पत्ति विषयक, सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक पहलुओं का अन्वेषण करना तथा विश्व में भारतीय मूल्यों की स्थापना करना था।


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