सावधान हो जाएं! बच्‍चे को पढ़ाएं, मगर संभलकर...

सावधान हो जाएं! बच्‍चे को पढ़ाएं, मगर संभलकर...

क्या आप अपने बच्चे को सफल बनाना चाहते हैं? तो उस पर पढ़ने का दबान न डा़लें। कहीं ऐसा न हो कि पढ़ाई को लेकर उस पर डाला जा रहा दबाव मानसिक दबाव में न बदल जाए। जी हां, एक नए शोध के मुताबिक, छोटे बच्चों पर बहुत ज्यादा पढ़ाई का बोझ डालने से उनका मन विचलित हो उठता है और उनमें ध्यान केंद्रित न करने का मनोविकार पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है।

मनोविकार में दोगुनी वृद्धि
अमेरिका के मियामी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि 1970 के बाद पढ़ाई के मानदंड में बढ़ोतरी होने के साथ ही ध्यान केंद्रित नहीं करने के मनोविकार में काफी बढ़ोतरी हुई है। इस शोध से पता चला है कि प्री-प्राइमरी में बच्चों का नामांकन तेजी से बढ़ा है और हैरानी की बात नहीं है कि पिछले 40 सालों में ध्यान केंद्रित न करने के मनोविकार में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है।

बढ़ रहा है पढ़ाई का दबाव
वहीं, फुल टाइम कार्यक्रमों में कम उम्र के बच्चों का नामांकन 1970 के मुकाबले 2000 के मध्य तक 17 फीसदी बढ़ा है। इसके अलावा 1997 में 6 से 7 साल के बच्चों में होमवर्क को हर हफ्ते दो घंटों से ज्यादा वक्त दिया, जबकि एक दशक पहले यह दर एक घंटे से कम थी।

हो रहा है नकारात्‍मक असर
मियामी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेफरी पी. ब्रोस्को ने कहा, "हमने इस अध्ययन के दौरान पाया कि 70 के दशक तुलना में अब बच्चे अकादमिक गतिविधियों में ज्यादा समय बिता रहे हैं। हमें लगता है कि पढ़ाई के बोझ से कम उम्र के बच्चों के एक वर्ग पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।" उन्होंने कहा कि पढ़ाई के बढ़ते बोझ के कारण बच्चों को खेलकूद व आराम का वक्त नहीं मिलता। इसके कुछ बच्चों में ध्यान केंद्रित न करने का मनोविकार पनप गया है।

उन्होंने कहा, "प्री-नर्सरी स्कूलों में उम्र से एक साल पहले दाखिला दिलाने से बच्चों में व्यवहार संबंधी परेशानियों की संभावना दोगुनी बढ़ जाती है।" वह कहते हैं कि कम उम्र के बच्चों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी स्वतंत्र रूप से खेलना, सामाजिक संबंधों और कल्पना के प्रयोग पर ध्यान देना चाहिए। यह अध्ययन 'जामा पेडिएट्रिक्स' पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)