जन्मदिन विशेष: संजय गांधी ने रखी थी मारुति की नींव, बचपन से ही था इंजीनियरिंग का शौक

संजय गांधी (Sanjay Gandhi) का जन्म 14 दिसंबर 1946 में दिल्ली में हुआ था. संजय गांधी इंदिरा गांधी के छोटे बेटे थे. उन्होंने खुद से 10 साल छोटी मेनका से शादी की थी.

जन्मदिन विशेष: संजय गांधी ने रखी थी मारुति की नींव, बचपन से ही था इंजीनियरिंग का शौक

Sanjay Gandhi 1977 में पहली बार चुनाव लड़े थे और उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा था.

नई दिल्ली:

संजय गांधी (Sanjay Gandhi) की आज जयंती है. इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के बेटे संजय गांधी का जन्म 14 दिसंबर 1946 में दिल्ली में हुआ था. संजय गांधी की शुरुआती शिक्षा वेल्हम बॉयज में हुई. जिसके बाद वह देहरादून के दून स्कूल में पढ़ने लगे. उन्होंने ऑटोमोटिव इंजिनियरिंग को अपने करियर के रूप में चुना और इंग्लैंड में रोल्स रॉयस में 3 साल तक अप्रेंटिसशिप की. स्पोर्ट्स कारों में उन्हें काफी दिलचस्पी थी. भारत में मारुति की नींव संजय गांधी ने ही डाली थी. उन्होंने पायलट का लाइसेंस भी अर्जित कर रखा था. इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर संजय गांधी को देखा जाता था, लेकिन प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु के 4 साल बाद इंदिरा गांधी की हत्या हुई, तो संजय की मौत के बाद राजनीति में उतरे राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने इंदिरा की सियासत को संभाला. संजय गांधी की मृत्यु 23 जून 1980 को प्लेन क्रैश में हुई थी. संजय गांधी पहनावे में सादगी पसंद शख्स थे. संजय गांधी कोल्हापुरी चप्पलों में ही विमान उड़ाने लगते थे, जबकि ये चप्पलें कॉकपिट में हवा के उच्च दबाव को झेलने में सक्षम नहीं थीं. राजीव गांधी उन्हें बार-बार चेतावनी भी देते थे कि वे पायलट वाले जूते पहन कर ही प्लने उड़ाए. लेकिन संजय उनकी बात पर ध्यान नहीं देते थे.

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इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ संजय गांधी  (21 मार्च 1977 की तस्वीर)

संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने रखी थी मारुति की नींव
1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने एक ऐसी ‘गाड़ी' के निर्माण का प्रस्ताव दिया, जिसे आम आदमी खरीद सके. उन्होंने “पीपल्स कार” बनवाने का निर्णय लिया. जून, 1971 में कंपनी एक्ट के अंतर्गत एक कंपनी ‘मारुति लिमिटेड' का गठन किया गया और संजय गांधी इसके पहले मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए. बिना तजुर्बे, नेटवर्क और डिजाइन के ही संजय को इस परियोजना का लाइसेंस दे दिया गया था. उन्होंने वर्कशॉप में मारुति का डिजाइन बनाने की कोशिश की. संजय ने वॉक्सवैगन से भी बात की थी. लेकिन वॉक्सवैगन से किसी भी तरह का समझौता नहीं हुआ था. कंपनी को लगातार नुकसान हो रहा था. 1980 में संजय गांधी की मृत्यु के बाद मारुती लिमिटेड ने जापान की सुजुकी कंपनी से हाथ मिलाया. जिसके बाद भारत की पहली सामान्य लोगों की कार मारुती 800 का उत्पादन शुरू हुआ. मारुती 800 को 14 दिसंबर 1983 को भारतीय बाजार में लॉन्च किया गया था. तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहली कार की चाभियां दिल्ली मे आयोजित एक समारोह मे हरपाल सिंह को सौपी थी.

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मारुति की फैक्ट्री में इंदिरा गांधी (14 दिसंबर 1983 की तस्वीर)

संजय और मेनका की प्रेम कहानी

संजय गांधी ने खुद से 10 साल छोटी मेनका (Maneka Gandhi) से शादी की थी. फ्री प्रेस जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेनका 1973 में दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में मिस लेडी बनी थीं. जिसके बाद उन्हें मॉडलिंग के ऑफर आने लगे थे. मेनका ने अपना पहला ऐड बॉम्बे डाईंग के लिए किया था. इस विज्ञापन को देखने के बाद ही संजय मेनका को पसंद करने लगे थे. संजय मेनका की चचेरी बहन वीनू कपूर के दोस्त थे. संजय और मेनका की पहली मुलाकात 1973  में वीनू की शादी से पहले हुई एक पार्टी में हुई थी. जिसके बाद उनके बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. “द संजय स्टोरी” में विनोद मेहता ने लिखा, “संजय ने मेनका के पिता कर्नल आनंद से उनका हाथ मांगा, मेनका के पिता को ऐतराज नहीं था, उन्होंने संजय से कहा कि वह पहले अपनी मां से तो बात कर लें. इंदिरा ने मेनका को बुलाया. उन्होंने मेनका (Maneka Gandhi) से कहा कि संजय उनसे 10 साल बड़े हैं. मेनका का कहना था कि उन्हें इस बारे में पता है, लेकिन उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. संजय और मेनका की शादी 29 सितंबर 1974 को हुई थी. उनकी शादी गांधी परिवार के मित्र मोहम्मद यूनुस के घर पर हुई थी.
 
bltemae(संजय और मेनका)

पहली बार चुनाव में खड़े हुए संजय बुरी तरह हारे थे
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) मार्च 1977 में अमेठी से आम चुनाव में पहली बार खड़े हुए थे. पहली बार चुनाव में खड़े हुए संजय की बुरी हार हुई थी. इतना ही नहीं इंदिरा की कांग्रेस पार्टी को भी बुरी हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन 1980 में हुए अगले आम चुनाव में संजय अमेठी सीट से जीते थे. मई 1980 में उन्हें कांग्रेस का सचिव नियुक्त किया गया था, जिसके एक महीने बाद ही 23 जून 1980 में प्लेन क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई थी.

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सरकार में संजय गांधी का हस्तक्षेप
संजय गांधी पर आरोप था कि वे सरकारी कामकाज में बिना किसी आधिकारिक भूमिका के हस्तक्षेप करते थे. जग्गा कपूर की किताब 'व्हाट प्राइस परजरी- फ़ैक्ट्स ऑफ़ द शाह कमीशन' में लिखा है कि संजय ने गुजराल को हुक्म दिया कि अब से प्रसारण से पहले आकाशवाणी के सारे समाचार बुलेटिन उन्हें दिखाए जाएं. गुजराल ने संजय के आदेशों को मानने से इंकार कर दिया था. जिसके कारण उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया. इतना ही नहीं संजय गांधी सरकार के मंत्रियों और उच्च लेवल के सरकारी अफसरों पर अपना प्रभाव डालने में सक्षम थे.

बचपन से ही इंजीनियर थे संजय
''द संजय स्टोरी'' में विनोद मेहता ने लिखा है, ''संजय को बचपन में मशीनों और चीजों की मरम्मत करने का बहुत शौक था. नेहरू हाउस के रिसेप्शन ऑफिसर कहते हैं कि संजय के कमरे में एक छोटा सा वर्कशॅाप बना हुआ था जिसमें वह हमेशा प्रयोग किया करते थे. हम उन्हें छोटी-मोटी चीजें ठीक करने के लिए देते थे. वह इतनी बारीकी से काम करते थे कि एक टूटा हुआ सामान ड्यूराफिक्स से चिपकाने के बाद बिल्कुल नया लगने लगता था. लेकिन, उन्हें हर काम के लिए भुगतान चाहिए होता था. उनका मेहनताना आम तौर पर एक कहानी या एक हार्डी फिल्म होता था.''

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