सपना देखा 'हवा में उड़ने' का, शादी की शर्त से निकलकर वह बन गई आईएएस

हरियाणा की मैकेनिकल इंजीनियर लड़की ने सतत प्रयास करके लक्ष्य हासिल किया, सिविल सेवा परीक्षा में हुई सफल

सपना देखा 'हवा में उड़ने' का, शादी की शर्त से निकलकर वह बन गई आईएएस

पिता ने डाला था शादी करने का दबाव, निधि सिवाच निरंतर मेहनत करके आईएएस बन गईं.

खास बातें

  • एयरफोर्स ज्वाइन करके लड़ाकू विमान उड़ाने की थी तमन्ना
  • एयरफोर्स में चयन नहीं हुआ लेकिन आईएएस बनने की प्रेरणा मिली
  • पिता ने रखी थी शर्त- यदि प्रिलिम्स या मेंस में बाहर हुईं तो शादी कर देंगे
नई दिल्ली:

परम्पराओं और पुराने ख्यालों वाले माहौल में पली-बढ़ी एक लड़की ने सफलता की मंजिल को हासिल करने के लिए कई दीवारों को तोड़ा है. जब उसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई का मौका मिला तो उसने मैकेनिकल इंजीनियरिंग को चुना, जिसमें गिनी-चुनी लड़कियां ही जाती हैं. इंडियन एयरफोर्स ने भले ही कोई साल भर पहले लड़कियों के लिए लड़ाकू विमान उड़ाने का रास्ता खोला हो, पर वह लड़की तो बचपन से ही इंडियन एयर फोर्स में जाने का सपना देखती थी. इसलिए इंजीनियर बनाने के बाद वह 'एफ कैट' यानी एयर फोर्स कॉमन एडमिशन टेस्ट में बैठी. पर उसकी किस्मत में कुछ और लिखा था. एफ कैट का इंटरव्यू उसके करियर के लिहाज से टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. इंटरव्यू बोर्ड के एक सदस्य ने उस लड़की को सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए प्रेरित किया. फिर क्या था वह लड़की उसी में जुट गई.
 
हैदराबाद में मैकेनिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़कर वह हरियाणा के अपने घर आ गई और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में ऐसी जुटी कि कोई छह महीने तक उसने घर का गेट तक नहीं देखा. इस बीच एक दूसरी परीक्षा भी वह दे रही थी. जब वह जुनूनी लड़की हैदराबाद से नौकरी छोड़कर लौटी तो पिता को बेटी की शादी की फिक्र थी. ऐसा नहीं कि पिता बेटी का सपना पूरी होते देखना नहीं चाहते थे, पर कई बार सामाजिक दबाव के आगे पिता भी झुक जाता है. पिता ने बेटी के सामने शर्त रखी थी - बेटा अगर प्रिलिम्स या मेंस के किसी भी चरण से आप बाहर हुईं तो शादी के लिए आपको हां करना होगा.

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उस लड़की के पास बस एक साल था. उसने सोचा - ये उसके लिए पहला और आखिरी मौका है. उसने इस परीक्षा के लिए कोई कोचिंग नहीं ली थी. घर में दूर-दूर तक आईएएस बनाने के लक्ष्य को समझने और मनोबल बढ़ाने वाला भी कोई नहीं था. फिर उसके पास दोस्तों का कोई ऐसा ग्रुप भी नहीं था जिसमें वह परीक्षा की स्ट्रेटजी पर बात कर सके. वह खुद का मनोबल इस सोच के साथ बनाए रखती कि, "बर्डन तो आना ही है, चाहे वह असफलता का बर्डन हो, या अफ़सोस का."

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वह अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जुटी रही और एक संकल्प के सहारे आगे बढ़ती गई. और जब रिजल्ट आया तो किस्मत उसके साथ खड़ी दिखी. वह लड़की बन गई आईएएस! सिविल सेवा परीक्षा 2018 में उसे 83वीं रैंक मिली है. उसका नाम है निधि सिवाच.

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