निधि का नोट : बिहार में चुनावी जंग से पहले ही महागठबंधन में दरार

निधि का नोट : बिहार में चुनावी जंग से पहले ही महागठबंधन में दरार

महागठबंधन में शामिल दलों के नेता लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव (फाइल फोटो)।

नई दिल्ली:

बिहार चुनाव से पहले महागठबन्धन में दरार पड़ गई है। आज समाजवादी पार्टी ने खुद को इस महागठबंधन से अलग कर लिया। सपा के 'थिंक टैंक' कहे जाने वाले वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि 'जो हमें सीटें दी जा रही थीं उससे नेता और बिहार के कार्यकर्ता  अपमानित महसूस कर रहे थे। हम एक सम्मानजनक तरीके से अपने बलबूते चुनाव लड़ेंगे।' उन्होंने कहा कि 'जनता परिवार कब एक हो पाया है और मैंने तभी पार्टी के डेथ वारंट पर दस्तखत नहीं किया था, न पार्टी का नाम बचता और न ही चिन्ह।'

याद होगा कि इस साल मार्च में महागठबन्धन के तहत 6 राजनीतिक दल साथ आए थे। हालांकि आज देर शाम इसे बचाने की कोशिश हुई, जब जेडीयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव मुलायम सिंह यादव के यहां, उनसे मिलने पंहुचे। सपा 5 सीटें मिलने से नाखुश है।

साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ जो यह कथित गठबंधन था अंजाम तक पहुंचने से पहले ही चरमरा  गया। जाहिर है सवाल उठ रहे हैं कि सैद्धांतिक रूप से साथ आ रहे इन राजनीतिज्ञों में क्यों समन्वय नहीं हो पाया। रामगोपाल बोले 'कोई दबाव नहीं था। हमें क्या डर है यादव सिंह पर जांच हो। वह किसके करीब रहा है, आप भी जानते हैं, हम भी जानते हैं।'

बहरहाल पिछले हफ्ते ही मुलायम सिंह यादव की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई थी। आज रामगोपाल यादव ने अमित शाह से मुलाकात से भरी सभा में इंकार किया। लेकिन जानकारो का कहना है कि यह मुलाकात हुई। चर्चा है कि बिहार में समाजवादी पार्टी 27 सीटें मांग रही थी, बाद में बात 17 पर पंहुच गई थी। अटकलें हैं कि अब सपा बिहार में 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है। ...तो इसका फायदा किसको होगा? जानकारों के अनुसार समाजवादी पार्टी के इस कदम से बीजेपी को फायदा होगा और यह पहली बार नहीं हो रहा।

पिछली बार के बिहार चुनावों में सपा ने 240 में से 146 पर चुनाव लड़ा था। सपा ने एक भी सीट नहीं जीती थी, लेकिन उसने बीजेपी  विरोधी वोट को बिखेर दिया था। इसका असर यह हुआ था कि नान बीजेपी पार्टियां वह सीटें हार गई थीं। समाजवादी पार्टी ने यह रणनीति कुछ और राज्य चुनावों में भी अपनाई। महाराष्ट्र में 22, गुजरात में 67 और मध्यप्रदेश में 164 में वह चुनाव लड़ी, जहां उसने कोई सीट नहीं जीती। हालांकि बीजेपी के उम्मीदवारों को जीत मिली मुश्किल से।

अब सवाल उठ रहा है कि मुलायम सिंह यादव बीजेपी के करीब क्यों आ रहे  हैं। इसके  पीछे कई कारण माने जा रहे हैं। 2017 में उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव है और राज्य में कानून व्यवस्था की हालत डगमगा रही है। आम जनता में असंतोष बढ़ रहा है। राज्य में अगर रोड हाईवे बनाने हैं तो केन्द्र के साथ समन्वय की जरूरत है। अखिलेश सरकार के राज्यपाल राम नाईक से तनातनी बनी हुई है। तीन साल में 180 दंगे हो चुके हैं, लेकिन सबसे अहम माना जा रहा है कि यादव सिह पर सीबीआई जांच का मामला। यादव सिंह नोएडा अथारिटी के प्रमुख रहा है। अखिलेश सरकार ने भी इसको प्रमोशन दिया। 1995 में प्रोजेक्ट इंजीनियर बनाया, बावजूद इसके कि वह इंजीनियर नहीं था। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसके खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश दे दिए हैं। गौरतलब है कि यादव सिंह ने 6 मुख्यमंत्रियों और तीन अलग-अलग सरकारों के तहत अपनी अहमियत बनाए रखी है।

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तो क्या मुलायम सिंह यादव बड़ा दिल दिखाकर मान जाएंगे....महागठबंधन का शीर्ष पद उन्हें भाएगा...या फिर सत्ता के करीब वे आना चाह रहे हैं। वह 2017 और 2019 के चुनावों के जरिए केन्द में अपने लिए जगह तलाश रहे हैं। यह आने वाले दिनों में साफ होगा, लेकिन बिहार चुनावों से पहले नीतीश कुमार को आज तगड़ा झटका जरूर लग गया है। गर्माते जा रहे हैं बिहार चुनाव।