सुशील महापात्रा की कलम से : बिहार के चुनावी शोर में महंगाई का मुद्दा गायब

सुशील महापात्रा की कलम से : बिहार के चुनावी शोर में महंगाई का मुद्दा गायब

पटना के रिक्शा चालक।

पटना:

बिहार के चुनाव कितने दिलचस्प हैं यह मीडिया के जरिए पूरे देश को पता चल रहा है। रोज नेताओं के भाषण और बयानबाजी हैडलाइन बन रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि नेताओं के भाषण बिहार का भविष्य तय करने वाले हैं।  हर मुद्दे पर नेता बात कर रहे हैं लेकिन जिस मुद्दे पर सबसे ज्यादा बात करना चाहिए वह मुद्दा चुनावी सरगर्मियां से गायब है। यह मुद्दा है महंगाई का। पटना में हर पोस्टर कुछ न कुछ बयां जरूर करता है लेकिन महंगाई के मुद्दे को किसी भी पोस्टर में जगह नहीं मिली है। जरा याद कीजिए 2014 में लोकसभा चुनाव बीजेपी ने महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही जीता था, लेकिन बिहार के चुनाव में यह मुद्दा गायब है। कहीं-कहीं बीजेपी भी महंगाई को रोकने में नाकामयाब हुई है। सिर्फ बीजेपी ही नहीं महागठबंधन भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। राज्य सरकार भी महंगाई नहीं रोक पाई है। महंगाई के लिए कहीं न कहीं दोनों केंद्र और राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। खाद्य वस्तुएं महंगी होने से लोग काफी परेशान हैं।

बच्चे का इंग्लिश स्कूल छूटा
महंगाई का जायजा लेते हुए पटना के एक रिक्शा चालक से बात हुई। वह खाद्य पदार्थों के महंगा होने से काफी परेशान है। उसने बताया कि दाल, चावल और आटे के भाव में भारी बढ़ोत्तरी हो गई है। आटा, चावल तो खरीद लेते हैं, लेकिन दाल खरीदना लगभग बंद कर दिए है। सब्जी-रोटी या सब्जी-चावल से काम चला लेते हैं। एक अन्य रिक्शे वाले ने बताया कि कुछ साल पहले वह ज्यादा से ज्यादा काम करके अपने बेटे को इंग्लिश माध्यम के स्कूल में पढ़ाता था, लेकिन अब यह संभव नहीं। उसका अब सरकारी स्कूल में दाखिला कराना पड़ा। महंगाई की तुलना में आय में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।

दुकान में रखे फर्नीचर के खरीददार नहीं।

फर्नीचर के दाम बढ़े, ग्राहक घटे
पटना में गांधी मैदान पर लगी यह दुकान पर पहुंचे, जहां बेंत और बांस से बना फर्नीचर मिलता है। फर्नीचर बेचने वाले मंसूर आलम से बात हुई। मंसूर जी ने बताया कि महंगाई की वजह से उनका व्यवसाय खतरे में है। यह व्यवसाय बंद करना पड़ सकता है। पहले ज्यादा फर्नीचर बिक जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। महंगाई  के वजह से मंसूर जी को अपने फर्नीचर के दाम भी बढ़ाने पड़े हैं, लेकिन ग्राहक बढ़े हुए दाम देने को तैयार नहीं हैं। दो साल पहले जब एक सोफे का दाम 9000 रुपये था तब महीने में पांच-छह सोफे बिक जाते थे, फायदा भी होता था। लेकिन अब जब इस सोफे का दाम बढ़ाकर 12000 कर दिए तो बिक्री कम हो गई है और फायदा भी घट गया।

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इसी दुकान में बैठे सुरेश पासवान से बात हुई। सुरेश जी का काम है अपने ठेले में फर्नीचर को दुकान से लेकर खरीददार के पास पहुंचाना। दो साल पहले सुरेश जी एक बार फर्नीचर पहुंचाने के लिए 80 रुपये लेते थे और एक दिन में चार-पांच आर्डर मिल जाते थे। इस तरह वे करीब 350 रुपये तक कमा लेते थे। अब उनकी मजदूरी 80 से लेकर 100 रुपये हो गई लेकिन आर्डर कम हो गए। महंगाई की वजह से लोग फर्नीचर नहीं खरीद रहे हैं। अब यदि एक दिन में 300 रुपये भी मिल जाएं तो बहुत बड़ी बात है।

चिनाकोठी क्षेत्र की झोपड़पट्टी।

मजबूरी में मिलावटी दाल
पटना का चिनाकोठी क्षेत्र झोपड़पट्टी वाला इलाका है। इस क्षेत्र में सभी लोग महंगाई से परेशान हैं। महंगाई के वजह से लोग मिलावट वाली दाल खा रहे हैं और उन्होंने बच्चों को स्कूल भेजना भी बंद कर दिया है। एक दिलचस्प बात बता देता हूं, जब मैंने लोगों से पूछा कि क्या वह इस चुनाव में वोटिंग करेंगे, तो सबका जवाब था कि हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी मतदान करेंगे और उस उम्मीदवार को चुनेंगे जो सही हो और विकास कर सकता हो। जब मैंने पूछा कि पटना में लगे पोस्टर उनके ऊपर कोई  प्रभाव डालते हैं, तो सबका जवाब था नहीं। उनका कहना था कि वह वोटिंग पोस्टर देखकर नहीं बल्कि उम्मीदवार देखकर करते हैं।