सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपलों के 70 फीसदी पद खाली, दावा करके खुद घिर गई बीजेपी

आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के दावे पर किया सवाल, प्रिंसिपलों और अध्यापकों के पद भरने की किसकी है जिम्मेदारी?

सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपलों के 70 फीसदी पद खाली, दावा करके खुद घिर गई बीजेपी

दिल्ली बीजेपी के नेता विजेंद्र गुप्ता ने आम आदमी पार्टी सरकार को प्रिंसिपलों के पद रिक्त होने के लिए जिम्मेदार ठहराया.

खास बातें

  • सर्विसेज विभाग उप राज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार के तहत आता है
  • दिल्ली में स्कूलों में प्रिंसिपल, अध्यापक की भर्ती एलजी के पास
  • बीजेपी ने कहा- इसका जवाब भी नहीं देते एलजी कि कितने पद हैं खाली
नई दिल्ली:

दिल्ली में बीजेपी ने बुधवार कोदिल्ली के सरकारी स्कूलोंपर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 70% प्रिंसिपल और 51% अध्यापकों के पद खाली पड़े हैं. यह रिपोर्ट बीजेपी समर्थित थिंक टैंक माने जाने वाले PPRC यानी पीपल पॉलिसी रिसर्च सेंटर ने तैयार की है.

इस रिपोर्ट का नाम 'दिल्ली गवर्नमेंट स्कूल ए फैक्चुअल एनालिसिस'  है. दिल्ली बीजेपी हेड क्वार्टर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बीजेपी नेता और दिल्ली में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि ' दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षण और गैर शिक्षण स्टाफ दोनों के बीच स्वीकृत और भरे हुए पदों में एक बड़ा फासला है. प्रिंसिपल के पदों पर 70.5% रिक्तियां हैं टीजीटी के पदों में लगभग 51% पद खाली हैं और नियमित कर्मचारियों द्वारा नहीं भरे गए हैं जिससे शिक्षण की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.'

बीजेपी के दावे पर आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि 'हमें ख़ुशी है कि भाजपा और भाजपा से जुड़े थिंक टैंक का ध्यान अब शिक्षा की तरफ़ भी हुआ है. हैरानी की बात है कि उन्हें नहीं पता कि दिल्ली के स्कूलों में प्रिंसिपल, अध्यापक आदि की भर्ती एलजी साहब के पास है. भर्ती तो बहुत दूर की बात है, दिल्ली विधानसभा में इस सवाल का जवाब भी नहीं दिया जाता कि स्कूलों में कितने पद खाली हैं. एलजी साहब से जवाब आता है कि भर्ती और रिक्त पद से जुड़ा सवाल भी दिल्ली विधानसभा और चुनी हुई सरकार की शक्तियों से परे है.'

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दरअसल दिल्ली में यही मुद्दा केंद्र की मोदी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच एक ऐसे विवाद का विषय बना हुआ है जिसका फैसला सुप्रीम कोर्ट तक अभी नहीं कर पाया है जबकि सुप्रीम कोर्ट में काफी समय से इससे जुड़े मामलों में सुनवाई चल रही है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार का कहना है कि किस कर्मचारी को क्या काम देना है, कहां ट्रांसफर करना है, कहां पोस्टिंग करनी है, यह सब अधिकार चुनी हुई सरकार के अधीन आना चाहिए वरना सरकार काम ही नहीं कर पाएगी. जबकि केंद्र की मोदी सरकार का कहना है कि दिल्ली चूंकि पूर्ण राज्य नहीं है इसलिए यहां पर सर्विसेज विभाग उप राज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार के तहत आता है. फिलहाल दिल्ल में सभी तरह के ट्रांसफर और नियुक्तियां दिल्ली के उप राज्यपाल ही कर रहे हैं.

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वैसे इस रिपोर्ट में कई और दावे भी किए गए हैं. विजेंद्र गुप्ता ने बताया कि दिल्ली के निजी स्कूलों में दसवीं में 93.18 फीसदी बच्चे पास हुए जबकि दिल्ली सरकार के स्कूलों से 71.58 फ़ीसदी बच्चे ही पास हो सके. दिल्ली के सरकारी स्कूलों का औसत राष्ट्रीय औसत 91.1% से बहुत नीचे है.

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विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि दिल्ली की शिक्षा प्रणाली में बहुत खामियां हैं. दिल्ली सरकार के 71 फ़ीसदी स्कूलों में साइंस स्ट्रीम नहीं है, यानी 1029 स्कूलों में से केवल 301 स्कूलों में ही विज्ञान पढ़ाया जाता है और बायलॉजी केवल 10% स्कूलों में उपलब्ध है. इससे छात्र मेडिकल स्ट्रीम में कैरियर बनाने की संभावनाओं से वंचित होते हैं.

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विजेंद्र गुप्ता ने PPRC की रिपोर्ट के हवाले से यह भी दावा किया कि 9वीं से लेकर 12वीं तक फेल होने वाले छात्रों को आगे दोबारा दाखिला भी नहीं दिया जा रहा है. साल 2017-18 में दिल्ली सरकार के स्कूलों में 9वीं में 73561 छात्र फेल हुए जिनमें से 48% को ही दोबारा दाखिला मिल सका जबकि 52 फ़ीसदी को दाखिला नहीं दिया गया.

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