ईशांत शर्मा-धम्मिका प्रसाद के बीच विवाद पर अमूल का विज्ञापन.
भारत की श्रीलंका में ऐतिहासिक जीत की अगली सुबह अखबारों के पहले पन्ने पर अमूल का दिलचस्प विज्ञापन है। यह अनायास ही आपका ध्यान खींचता है। विज्ञापन का शीर्षक है: 'शांत शर्मा शांत'।
इस विज्ञापन में ईशांत शर्मा गेंदबाज धम्मिका प्रसाद से उलझते दिखाई दे रहे हैं। भले ही जीत की अगली सुबह इस तरह के विज्ञापन आपके चेहरे पर मुस्कान लाएं, लेकिन इन विज्ञापनों को देखकर ईशांत को, उनके कप्तान विराट को या उनके फैन्स को शायद ही मैच के समय हुई कहासुनी पर अफसोस हुआ हो।
श्रीलंका में भारत की 22 साल बाद मिली ऐतिहासिक जीत के बाद कोलंबो टेस्ट के दौरान फिल्मों के नाना पाटेकर की तरह ईशांत के इस किरदार को गेम्स एक्सपर्ट ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे और कप्तान विराट कोहली ईशांत के रवैये से खुश ही नजर आ रहे हैं। विराट ने मैच के बाद यह बयान भी दिया कि उस वाकये से श्रीलंकाई खिलाड़ी गुस्से में आ गए जो भारतीय टीम के हक में गया।
तेज गेंदबाजी की जिम्मेदारी और एक आक्रामक कप्तान की अगुआई में खेलते हुए ऐसा होना स्वाभाविक ही नजर आता है। ज्यादातर जानकार इससे इंकार नहीं करते कि तेज गेंदबाज जोश में रहकर ही अपना सही असर छोड़ सकते हैं, लेकिन उनके मुताबिक जोश में होने के साथ होश की सीमा नहीं लांघी जा सकती।
पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर कहते हैं कि टीम मैनजमेंट को विराट और खिलाड़ियों को बताना चाहिए कि वह गुस्से का सही इस्तेमाल करें। उनका यह भी मानना है कि खिलाड़ी 50 या 100 रन बनाए या फिर कोई गेंदबाज विकेट ले, तो उन्हें खुश होना चाहिए ना कि गुस्सा होकर उसका फायदा गंवा देना चाहिए। गावस्कर कहते हैं कि ऐसा करने पर वह गेम के नियमों में फंसकर अपना ही नुकसान करते नजर आएंगे।
विराट पूर्व कप्तान धोनी से बिल्कुल अलग हैं। शख्सियत के तौर पर भी और कप्तान के तौर पर भी। धोनी रणनीति के तौर पर आक्रामक क्रिकेट में भरोसा रखते थे, तो विराट हर मौके पर आक्रामक खेल के जरिये नतीजे में भरोसा रखते हैं। विराट कहते भी हैं, "हालात जैसे हैं वैसे रहने दीजिए, यह मौका जश्न मनाने का है।"
विराट के फॉर्मूले से टीम इंडिया ने बड़ी कामयाबी हासिल की है, लेकिन इसकी सीमा क्या होनी चाहिए। यह लंबे समय में ही तय हो सकेगा।
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