'प्योरिस्ट' गावस्कर भी हैं डे-नाईट टेस्ट क्रिकेट के हिमायती

'प्योरिस्ट' गावस्कर भी हैं डे-नाईट टेस्ट क्रिकेट के हिमायती

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली:

लाल की जगह गुलाबी गेंद के साथ डे-नाइट टेस्ट की शुरुआत हो चुकी है। पिछले साल नवंबर में एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच पहला डे-नाइट क्रिकेट खेला गया। गेंद और बल्ले के इस खेल ने समय के साथ बदलाव को स्वीकार किया है। टेस्ट क्रिकेट में ये सबसे बड़ा बदलाव है।

गुलाबी गेंद से खेला जाएगा टेस्ट मैच
भारत भी इस दौर में पीछे नहीं रहना चाहता। साल के आखिर में न्यूज़ीलैंड की टीम 3 टेस्ट की सीरीज़ खेलने भारत आएगी तो एक टेस्ट मैच डे-नाइट होगा। बीसीसीआई के सचिव अनुराग ठाकुर ने ऐलान किया, 'हमने फ़ैसला किया है कि न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ सीरीज़ का एक टेस्ट मैच डे-नाइट होगा। ये टेस्ट गुलाबी गेंद से खेला जाएगा। टेस्ट के पहले प्रयोग के तौर पर दिलीप ट्रॉफ़ी में डे-नाइट क्रिकेट खेला जाएगा।'

बदलते वक्त के साथ बदलाव करने होंगे : गावस्कर
सुनील गावस्कर जैसे क्रिकेटर टेस्ट क्रिकेट का चेहरा रहे हैं। गावस्कर भी मानते हैं टेस्ट को बचाने के लिए कि बदलते वक्त के साथ बदलाव करने होंगे। प्योरिस्ट (खालिस) को भी ज़माने के साथ बदलना होगा। रेड बॉल से खेलते रहे हैं। पिंक से खेलने का अनुभव थोड़ा अलग रहेगा। अंडर द लाइट वातावरण में खेलने पर अलग महसूस होगा। ओस भी रहेगा। स्पिनर्स को शायद ग्रिप बनाने में दिक्कत आए।

डे-नाइट क्रिकेट के लिए हर कोई तैयार नहीं
हालांकि डे-नाइट क्रिकेट के लिए हर कोई तैयार नहीं है। दक्षिण अफ्रीका के टेस्ट कप्तान एबी डिविलियर्स ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर डे-नाइट टेस्ट नहीं खेलना चाहते। कुक्कुबुरा पिंक बॉल की गुणवत्ता पर सवाल तो उठ ही रहे हैं साथ ही भारत में जाड़े के मौसम में रात में ओस भी परेशानी खड़ी बन सकती है। स्पिन गेंदबाज़ के लिए भी पिंक बॉल चुनौती होगी। डे-नाइट क्रिकेट के हिमायती कहते हैं कि इससे स्टेडियम में ज़्यादा लोग मैच देखने आएंगे। टेलीविजन को भी भी ज़्यादा दर्शक मिलेंगे। और सबसे बड़ी बात खिलाड़ी भी फ़ायदे में रहेंगे।

क्या है सबसे बड़ी दिक्कत?
डे-नाइट टेस्ट की सबसे बड़ी दिक्कत है रात के समय पिंक बॉल दिखने में मुश्किल आ रही है। रात में गेंद ज़्यादा स्विंग हो रही है। इसके अलावा एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि रात के समय एक एथलीट अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे सकता। ट्रैक एंड फ़ील्ड में जो भी रिकॉर्ड बनते हैं दोपहर या शाम के समय ही बने हैं। टेस्ट क्रिकेट के प्रशंसकों का मानना है कि ये परंपरा क्रिकेट के ख़िलाफ़ है।

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हर देश अपनी ज़रूरत देखेगा
125 टेस्ट में 34 शतक और 45 अर्धशतक के साथ 10122 रन बनाने वाले लिटिल मास्टर सनी गावस्कर का कहना है 'हर देश अपनी ज़रूरत देखेगा। हमारे देश में भी अब टेस्ट क्रिकेट देखने बहुत कम लोग आने लगे हैं। देखना होगा कि कब ज़्यादा दर्शक मैच देखने आ सकते हैं। फ़ुल हाउस तो शाम को ही हो सकता है जब लोग फ़्री हों। काम से निकल कर आएं। इसी वजह से ये एक्सपेरीमेंट चल रहा है।' ज़ाहिर है टी-20 के जमाने में टेस्ट क्रिकेट जिस तेज़ी से दर्शक खोता जा रहा है, इसे बचाने के लिए कोई न कोई तो कदम उठाने ही होंगे।