कभी खाने के ठेले पर करता था काम, अब है भारतीय U-19 टीम के स्‍टार क्रिकेटर

पृथ्‍वी शॉ के बाद इस समय एक और युवा क्रिकेटर इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है. यह क्रिकेटर है यशस्‍वी जायसवाल, जिसे पृथ्‍वी की ही तरह भारतीय क्रिकेट का भविष्‍य का सितारा माना जा रहा है.

कभी खाने के ठेले पर करता था काम, अब है भारतीय U-19 टीम के स्‍टार क्रिकेटर

अंडर-19 एशिया कप में यशस्‍वी को मैन ऑफ द टूर्नामेंट घोषित किया गया था

खास बातें

  • पृथ्‍वी शॉ की तरह ही बेहद प्रतिभावान माने जा रहे यशस्‍वी जायसवाल
  • मुंबई आने के बाद उनके शुरुआती दिन बेहद मुश्किल में गुजरे
  • अंडर-19 एशिया कप के सर्वश्रेष्‍ठ खिलाड़ी घोषित किए गए

पृथ्‍वी शॉ के बाद इस समय एक और युवा क्रिकेटर इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है. यह क्रिकेटर है यशस्‍वी जायसवाल, (Yashasvi Jaiswal) जिसे पृथ्‍वी की ही तरह भारतीय क्रिकेट का भविष्‍य का सितारा माना जा रहा है. भारतीय टीम हाल ही में बांग्‍लादेश में आयोजित अंडर-19 एशिया कप (U-19 Asia Cup) में चैंपियन बनी है. बाएं हाथ के बल्‍लेबाज यशस्‍वी न केवल उस टीम का हिस्‍सा थे बल्कि भारतीय टीम की खिताबी जीत में उनका अहम योगदान था. श्रीलंका के खिलाफ फाइनल मुकाबले में यशस्‍वी ने 85 रन की बेहतरीन पारी खेली थी. पूरे टूर्नामेंट में लगातार अच्‍छा प्रदर्शन करने के कारण ओपनर के तौर पर बल्‍लेबाजी करने वाले यशस्‍वी को मैन ऑफ द टूर्नामेंट घोषित किया गया था. टूर्नामेंट में यशस्‍वी ने 79.50 के बेहतरीन औसत से 318 रन बनाए थे. क्रिकेट के प्रति जुनून और खेल कौशल ने ही यशस्‍वी को क्रिकेट में इतनी ऊंचाई पर पहुंचाया है. यशस्‍वी का बचपन अभावों के बीच गुजरा है लेकिन उन्‍होंने इसे कभी अपने क्रिकेट के आड़े नहीं आने दिया.

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मूलरूप से यूपी के भदोही के रहने वाले यशस्‍वी ने क्रिकेट में क‍रियर बनाने की खातिर मुंबई जाने का फैसला किया. मुंबई में उनके शुरुआती दिन बेहद मुश्किलों में गुजरे. रहने के लिए कोई अच्‍छी जगह नहीं थी. टेंट में वे रहे और जीवनयापन के लिए उन्‍हें सड़क पर खाने का ठेले पर भी काम करना पड़ा.  यशस्‍वी जायसवाल ने क्रिकेट में अपने संघर्ष के इन दिनों के बारे में  ESPNCricinfo को दिए एक वीडियो इंटरव्‍यू में बताया है. 

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यशस्‍वी ने जब वर्ष 2012 में क्रिकेट की खातिर मुंबई आने का फैसला किया तो उनकी उम्र 11 वर्ष की थी. उनके पास रहने की कोई जगह नहीं थी. एक डेरी शॉप उनके सोने का ठिकाना था लेकिन कुछ समय बाद उन्‍हें यहां से भी बाहर कर दिया गया. बाद में एक ग्राउंड्समैन ने उन्‍हें आजाद मैदान पर मुस्लिम यूनाइटेड क्‍लब के टेंट में रहने की जगह दी. संघर्ष से भरपूर इस जीवन के बावजूद यशस्‍वी ने क्रिकेट में मेहनत जारी रखी. उन्‍होंने खाने वाले के यहां काम करना शुरू किया.

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यशस्‍वी ने इंटरव्‍यू में बताया, मैं मुंबई की ओर से क्रिकेट खेलना चाहता था. संघर्ष के उन दिनों में मैं ऐसे टेंट में रहता था जहां बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं थीं. इसी दौरान उन्‍होंने एक खाने वाले के यहां काम करना शुरू किया था. साथ में क्रिकेट भी चलता रहा. यशस्‍वी ने बताया कि जब क्रिकेट के मेरे साथी आजाद मैदान के पास ही खाने के लिए आते थे तो उन्‍हें खाना सर्व करते हुए अच्‍छा नहीं लगता था. नेट पर अभ्‍यास के दौरान कोच ज्‍वाला सिंह ने यशस्‍वी की प्रतिभा को पहचाना, उसके बाद तो इस किशोर खिलाड़ी की जिंदगी ही बदल गई.

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ज्‍वाला सिंह ने बताया कि यशस्‍वी जब 11 से 12 वर्ष का था तब मैंने उसे बैटिंग करते हुए देखा. मैं उसके प्रदर्शन से बेहद प्रभावित हुआ वह ए डिवीजन के बॉलर का बेहतरीन तरीके से सामना कर रहा था. ज्‍वाला सिंह के अनुसार, मेरे दोस्‍त ने यशस्‍वी के बारे में बताया कि यह किशोर रहने के लिए ठिकाने की तलाश कर रहा है और उसका कोई कोच भी नहीं है. ज्‍वाला सिंह के मार्गदर्शन में यशस्‍वी का कौशल निखरता गया. जल्‍द ही उन्‍हें मुंबई की अंडर-16 टीम में जगह मिली और यहां से भारतीय अंडर-19 टीम में. कोच ज्‍वाला ने बताया कि पिछले तीन साल में यशस्‍वी ने 51 शतक बनाए हैं और करीब 300 विकेट लिए हैं. यशस्‍वी स्पिन गेंदबाजी भी करते हैं. कोच ज्‍वाला सिंह को उम्‍मीद है कि उनका शिष्‍य यशस्‍वी एक दिन भारत के लिए खेलेगा. भारत की अंडर-19 टीम के लिए शानदार प्रदर्शन करते हुए यशस्‍वी ने अपनी प्रतिभा की झलक दे ही दी है.