कभी सोचा नहीं था, कमेंट्री की नकल इस मुकाम पर पहुंचा देगी : सुशील दोषी

कभी सोचा नहीं था, कमेंट्री की नकल इस मुकाम पर पहुंचा देगी : सुशील दोषी

नई दिल्ली:

'कमेंट्री करना मेरा ख्वाब था। मैं घर में कमेंट्री की नकल किया करता था। तब मुझे नहीं मालूम था कि वह नकल करना मुझे इस मुकाम तक पहुंचा देगा।' यह कहना है इसी वर्ष पद्मश्री से सम्मानित विख्यात कमेंटेटर सुशील दोषी का। उन्होंने एनडीटीवी के खास इंटरव्यू में यह बात कही।

मध्यप्रदेश के इंदौर निवासी लोकप्रिय हिंदी रेडियो क्रिकेट कमेंटेटर सुशील दोषी दुनिया के तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिनके नाम से क्रिकेट कमेंट्री बॉक्स बनाया गया है। लंदन के ओवल में ब्रायन जॉन्स्टन, पाकिस्तान के लाहौर में गद्दाफी स्टेडियम में उमर कुरैशी और भारत में पहला कमेंटेटर बॉक्स सुशील दोषी के नाम पर बनाया गया। सुशील दोषी से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-

सवाल : क्रिकेट कमेंट्री की तरफ कैसे लगाव हुआ?
जवाब : बचपन से क्रिकेट कमेंटेटर बनने का सपना देखा था। मैं बड़े कमेंटेटर की अंग्रेजी में नकल किया करता था। तब यह पता नहीं था कि एक दिन हिंदी में कमेंट्री की शुरुआत हो जाएगी। सन 1963 में कॉलेज में गया तो मुझे पता चला कि हिन्दी कमेंट्री की शुरुआत हो रही है। तब कोई यकीन ही नहीं कर रहा था कि हिन्दी में भी कमेंट्री हो सकती है। तब मैं ऑल इंडिया रेडियो के स्टेशन डायरेक्टर के पास गया। मैंने कहा मैं इन्दौर निवासी हूं और कमेंट्री करना चाहता हूं। इस पर उन्होंने कहा कि पहले सफेद बाल उगाओ, उसके बाद यहां आना। इतनी कम उम्र में कोई कमेंटेटर बन सकता है क्या। थोड़े दिनों बाद मैच आ गया और उन्हें कोई हिन्दी का कमेंटेटर नहीं मिला। फिर उन्होंने मुझे ढूंढा और कमेंट्री करने का मौका दिया। उन्होंने मुझ पर विश्वास किया और मैं उस पर खरा उतरा।

सवाल : कोई यादगार वाकया बताएंगे।
जवाब : मेरे पिता निरंजन लाल दोषी का मन ही मन आज भी आशीर्वाद लेता रहता हूं। जब छोटा था तब एक टेस्ट मैच हुआ था। तब मैंने अपने पिताजी से जिद की कि मुझे यह मैच दिखाओ। हम तब 35 रुपये महीने के किराये के मकान में रहते थे। पिता के पास पैसा नहीं था। पता नहीं क्यों उन्होंने बच्चे की जिद पूरी की और ले गए। चार दिन स्टेडियम के बाहर भटकते रहे और आखिर चौथे दिन टी-टाइम के बाद एक पुलिस वाले ने पूछा कि आप क्यों भटक रहे हो। हमने कहा 50 हजार आदमी स्टेडियम के बाहर खड़े हैं, टिकट मिल नहीं रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं आपके बेटे को अंदर कर देता हूं। आप बाहर ही रहिए। मुझे अदंर कर दिया, पिताजी बाहर रहे। मैं उत्साह में अंदर चला गया। मेरी वहां नजर पड़ी कमेंट्री बॉक्स पर, जहां विजय मर्चेंट और एएफएस तैनियार खान कमेंट्री कर रहे थे। तब एक इच्छा जगी कि मैं भी एक दिन इसी कमेंट्री बॉक्स में बैठकर कमेंट्री करूं। सन 1972 में वह दिन आया जब जिंदगी में पहली बार क्रिकेट टेस्ट मैच में कमेंट्री करने का मौका मिला।

सवाल : 70-80  के दशक के खिलाड़ियों और आज के दौर के खिलाड़ियों में क्या अंतर पाते हैं?
जवाब :  अब बहुत ज़्यादा पेशेवर हो गए हैं खिलाड़ी। पहले एक दिवसीय क्रिकेट को क्रिकेट ही नहीं समझते थे। सन 1975 में सुनील गावस्कर ने वर्ल्ड कप में जब अपना पहला इंटरनेशनल मैच खेला तब 60 ओवर में 36 रनों पर नॉट आउट रहे। एक दिवसीय क्रिकेट को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। सारी परिस्थिति में परिवर्तन तब हुआ जब भारत ने 1983 में वर्ल्ड कप जीता। खिलाड़ियों में परिवर्तन का श्रेय मैं कैरी पैकर को दूंगा जिन्होंने 1977 में खिलाड़ियों को रंगीन कपड़े पहनाए और पैसे से उनको अपनी तरफ आकर्षित किया। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट का भ्रम तोड़ा और समानांतर क्रिकेट संस्था शुरू की। हालांकि वे असफल रहे। अब हम देख रहे हैं कि सारी दुनिया एक दिवसीय और 20-20 क्रिकेट को अपना रही है।

सवाल : विराट कोहली जैसे खिलाड़ी पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ते नज़र आ रहे हैं। आप उन्हें कैसा आंकते हैं?
जवाब : विराट कोहली खिलाड़ी तो बहुत बड़ा है। उसे क्रोध बहुत आता है, युवा और गरम खून है। वह क्रिकेट में कुछ कर दिखाना चाहता है। दो तरह के क्रिकेटर होते हैं। महेंद्र सिंह धोनी को कैप्टन कूल कहा जाता है। वे हर परिस्थिति में धैर्य रखते हैं। दूसरी तरफ हम देखते हैं कि विराट कोहली जरा सी बात पर गुस्सा हो जाते हैं। इससे पता लगता है कि उनमें बड़ी सफलता की भूख है। यह कोई बुरी बात नहीं है। अपने आपको प्रेरित करने के अलग-अलग तरीके होते हैं। दर्शकों को तो बहुत मज़ा आता है अगर खिलाड़ी इस तरह से गुस्सा करता है।

सवाल : क्या विराट कोहली सचिन का रिकॉर्ड तोड़ने का माद्दा  रखते हैं?
जवाब : विराट कोहली सचिन का रिकॉर्ड तोड़ने का माद्दा रखते हैं। क्षमता तो साफ दिखाई दे रही है। उनके स्ट्रोक्स की रेंज, विविधता बढ़ती जा रही है। वे एक बॉटम हैंडेड प्लेयर हैं और ऑन साइड में ही ज़्यादा स्ट्रोक्स लगाते थे। लेकिन अब आखिरी वक्त तक सुधारकर खेलने की क्षमता उनमें आ गई है। क्रिकेट में बल्लेबाज वही बड़ा होता है जो आखिरी वक्त तक बॉल को देखकर अपने स्ट्रोक्स खेलने की क्षमता रखता है। विराट कोहली फील्ड को ऐसा बनाते हैं जैसे कैरम बौर्ड हो। गेंद को निकालने की काबिलियत उनमें आ गई है। वह सचिन के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। अपनी इच्छाशक्ति के कारण भी आदमी कई बार बहुत आगे निकल जाता है।

 
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पद्म श्री सम्मान ग्रहण करते हुए सुशील दोषी (फाइल फोटो)।

सवाल : आपने अभी तक जितने खिलाड़ियों को देखा है उसमें से सबसे खास कौन है?
जवाब : सुनील गावस्कर का मैं बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। वे उस समय खेलते थे जब काफी तेज गेंदबाज थे। किसी भी क्रिकेट काल में इतने भयानक तेज गेंदबाज कभी नहीं हुए। वेस्टइंडीज में देखें तो मैलकॉम मार्शल, एन्ड्रयू रॉब्ट्ज़, माइकल होल्डिंग, कॉलिन क्राफ़्ट जैसे क्रिकेटर थे जिनका उन्होंने बिना हेलमेट के सामना किया। हेलमेट में तो बहुत सारे खिलाड़ी बहादुर बन जाते हैं लेकिन बिना हेलमेट के, बिना घायल हुए इतने सालों तक खेलना आसान नहीं। 90 मील प्रति घंटे की स्पीड से बॉलिंग परेशान करने वाली होती है। पाकिस्तान के इमरान खान, वसीम अकरम का भी सुनील गावस्कर ने सामना किया। ऑस्ट्रेलिया के जेफ थॉमसन और डेनिस लिली का उन्होंने सामना किया। उस समय न्यूज़ीलैड के रिचर्ड हेडली जैसे महान बॉलर का भी उन्होंने सामना किया। तेज गेंदबाजों के सामने अपना औसत 50 के आसपास रखना, मैं समझता हूं अभूतपूर्व कार्य है। उनकी तकनीक इतनी निर्दोष थी कि देखते ही बनता था। बॉलर के दांए बांए हट जाना, वेव करके, वह एक गजब का दृश्य होता था। मुझे थॉमसन ने बताया था कि जब वे सुनील गावस्कर को बॉलिंग करता हैं तब उन्हें लगता है कि वे तेज गेंदबाज हैं या धीमे। ये सब चीज़ें उन्हें क्रिकेट इतिहास का महानतम ओपनिंग बेट्समैन बनाती हैं।

सवाल :  मौजूदा दौर में कौन सा खिलाड़ी गावस्कर या सचिन के करीब नजर आ रहा है?
जवाब : मौजूदा दौर में निर्दोष तकनीक का जहां तक सवाल है तो उनके नजदीक तो नहीं लेकिन अजिंक्य रहाणे की तकनीक काफी अच्छी है। विराट कोहली की तकनीक भी काफी अच्छी है। सुनील या सचिन की तरह ही रन बनाने की क्षमता इनमें भी है।

सवाल : सभी तरह के क्रिकेट में बल्लेबाजों को तवज्जो दी जा रही है। कौन सा गेंदबाज  ज्यादा प्रभावित करता है?
जवाब : भारतीय गेंदबाजी में स्पिनरों की तूती बोलती है। अश्विन नें जिस तरह से तेजी से कदम बढ़ाए हैं, वह अभूतपूर्व है। पहले तो वे फाइट देते ही नहीं थे। एक ऑफ बैक सिंपल कर देते थे और सीधी गेंद कर देते थे। लेकिन अब बहुत विविधता बढ़ गई है। उनमें काफी आत्मविश्वास आ गया है। वे टॉप स्पिन भी कर रहे हैं, वे फ्लाईटेड गेंद भी कर रहे हैं, वे कैरम बाल भी कर रहे हैं, वे बाहर की तरफ बॉल को निकाल देते हैं। तमाम विविधता और पेस का वह बहुत चतुर परिवर्तन करते हैं। जडेजा भी एक दिवसीय क्रिकेट में बहुत अच्छी बॉलिंग कर रहे हैं। यह एक अच्छी बात है कि भारतीय स्पिन युग की भले ही वापसी न हों, शास्त्रीय कलाएं इनमें न हों, लेकिन जहां तक रिजल्ट का सवाल है, यह स्पिन लेते हुए बहुत अच्छी बॉलिंग कर रहे हैं।

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