जब इतने मुश्किल दौरे के बाद टीम 1983 का वनडे विश्व कप खेलने इंग्लैंड पहुंची तो किसी को भी टीम से खास उम्मीदें नहीं थीं। इससे पहले के दो विश्व कप में भारत की टीम सिर्फ एक मैच ही जीत पाई थी, इसलिए जानकारों की राय सही भी नज़र आ रही थी। वेस्ट इंडीज़ की जीत को लगभग तय माना जा रहा था और ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड की टीमों से उम्मीद थी कि वे कैरेबियाई चुनौती को थोड़ा मुश्किल बना सकेंगी।
भारतीय टीम में सुनील गावस्कर, दिलीप वेंगसरकर और क्रिस श्रींकात टॉप ऑर्डर के बल्लेबाज़ थे। गेंदबाज़ी की कमान मुख्य तौर पर कप्तान कपिल देव और बलविंदर सिंह संधू पर थी, लेकिन इनके अलावा टीम इंडिया में मोहिंदर अमरनाथ, कीर्ति आज़ाद, रोजर बिन्नी, संदीप पाटिल, यशपाल शर्मा जैसे खिलाड़ी भी थे, जो वक्त पड़ने पर गेंद और बल्ले दोनों में हाथ आज़मा सकते थे, और आखिरकार इन्हीं हरफनमौलाओं की मौजूदगी टीम इंडिया की सबसे बड़ी ताकत बनकर सामने आई।
भारत को ग्रुप 'बी' में रखा गया था, जहां उसके अलावा वेस्ट इंडीज़, ऑस्ट्रेलिया और ज़िम्बाब्वे की टीमें शामिल थीं। भारत का पहला मैच 9 जून को वेस्ट इंडीज़ के खिलाफ़ था। भारत ने पहले बल्लेबाज़ी की और 262 रन जड़ दिए, जिनमें यशपाल शर्मा के 89 रन अहम रहे। इस मैच भारत ने वेस्ट इंडीज़ को 228 पर ऑल आउट कर दिया, और 34 रनों की यह जीत भारत की किसी भी टेस्ट खेलने वाले देश के खिलाफ वन-डे में पहली जीत थी।
ज़िम्बाब्वे के खिलाफ भारत की हालत बेहद खराब हो गई थी। 17 रन पर भारत के पांच शीर्ष विकेट गिर चुके थे, मगर इसके बाद कपिल देव ने जो पारी खेली, उसे आज तक याद रखा जाता है। 175 रनों की इस नाबाद पारी में कपिल ने छह छक्के और 16 चौके लगाए और भारत का स्कोर 266 तक पहुंचा। ज़िम्बाब्वे को हमने 32 रन से हराया और टीम इंडिया सेमीफाइनल में पहुंच चुकी थी।
जब अपने आखिरी ग्रुप मुकाबले में भारत ने ऑस्ट्रेलिया जैसी मज़बूत टीम को 118 रन से पीटा तो दुनिया दंग रह गई। अब साफ हो गया था कि यह कोई 'वन-मैच-वंडर' टीम नहीं थी, और भारतीय टीम वाकई विश्व चैम्पियन टीम की तरह खेल रही थी, क्योंकि टीम किसी एक खिलाड़ी पर निर्भर नहीं थी, और हर मैच में टीम इंडिया के लिए एक नया हीरो सामने आ रहा था।
सेमीफ़ाइनल मुक़ाबला घरेलू टीम इंग्लैंड से था। मैनचेस्टर में गेंद स्विंग हो रही थी और भारत के पास हालात का फ़ायदा उठाने के लिए कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ, रोजर बिन्नी और कीर्ति आज़ाद जैसे गेंदबाज़ थे। पहले बल्लेबाज़ी करने का फैसला इंग्लैंड के कप्तान बॉब विलिस को महंगा पड़ा, टीम 213 पर आउट हो गई। जब तक भारत बल्लेबाज़ी करने आया, पिच सूख चुकी थी। संदीप पाटिल और यशपाल शर्मा ने शानदार अर्द्धशतकीय पारियां खेलीं और पांच ओवर पहले ही मैच जीत लिया।
विश्व कप शुरू होने से पहले किसी ने नहीं सोचा था कि भारत फ़ाइनल में होगा, मगर अब मुकाबला वेस्ट इंडीज़ से था। मैच की पहली पारी के बाद लगा कि ऐन मौके पर भारत की टीम चूकने वाली है, क्योंकि टीम 183 रनों पर सिमट गई। लंच के दौरान कपिल देव ने कहा, "कुछ भी हो जाए, हम इस स्कोर को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे..."
मगर दूसरी ओर किंग विव रिचर्ड्स मानो इसे 40 ओवर में ही खत्म कर देना चाहते थे, लेकिन टीम इंडिया को इतिहास रचना था, सो, पहले कपिल देव ने विव रिचर्ड्स का शानदार कैप लपका, और फिर भारत के ऑल-राउंडर्स एक्शन में आ गए।
मदन लाल और मोहिंदर अमरनाथ के पास गति नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपनी स्विंग के सहारे वेस्ट इंडीज़ के धुरंधरों को पस्त कर दिया। पूरी कैरेबियाई टीम 140 रन पर ऑल-आउट हो गई और क्रिकेट के इतिहास का सबसे बड़ा उलटफेर सबके सामने था। कपिल देव के रूप में भारतीय टीम को लाजवाब कप्तान मिल चुका था और क्रिकेट की दुनिया में भारत ने अपने आगमन का बिगुल बजा दिया था।