नई दिल्ली:
टेस्ट में नंबर-7, लेकिन वन-डे में नंबर-2... यही कहानी है टीम इंडिया की... विदेशी जमीन पर टेस्ट मैचों और शृंखलाओं में हार मानो अब टीम इंडिया की आदत बन चुकी है... उनके लिए ड्रॉ जीत से कम नहीं होती और जीत अपवाद है ही...
टेस्ट खेलने वाले 10 देशों में भारत की रैंकिंग सात है, लेकिन अब सपेद कपड़ों के बाद टीम इंडिया ने नीली जर्सी पहन ली है, और इन रंगीन कपड़ों में हमारे खिलाड़ियों की तकनीक बेहतर और तेवरों में नया आत्मविश्वास नज़र आने लगता है। वैसे भी, वन-डे रैंकिंग में ऑस्ट्रेलिया के बाद भारत दूसरे नंबर पर है। पूर्व ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ माइकल हसी अपनी टीम को चेतावनी देते हुए कहते हैं, "2-0 के स्कोर लाइन से आप ज़्यादा मतलब नहीं निकाल सकते... भारत ने टेस्ट सीरीज़ में कड़ा मुक़ाबला किया ही, साथ ही सीमित ओवरों के क्रिकेट में भारत की टीम बिल्कुल अलग खेलती है... उनका आत्मविश्वास बढ़ा होता है..."
वन-डे में स्लिप हटते ही भारतीय बल्लेबाज़ बेखौफ होकर शॉट्स लगाते हैं, गेंदबाज़ी भी बेहतर हो जाती है और फील्डिंग चुस्त। पूर्व भारतीय क्रिकेटर दिलीप वेंगसरकर का कहना है, "वन-डे में सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसी भी गेंदबाज़ को 10 ओवर से ज़्यादा बॉलिंग नहीं करनी पड़ती, जबकि टेस्ट में एक दिन में कम से कम 25 ओवर डालने होते हैं... इसलिए हमारे गेंदबाज़ वन-डे और टी-20 में ज़्यादा प्रभावी होते हैं..."
रिकॉर्ड भी इस बात के गवाह हैं कि वन-डे में विदेशी जमीन पर टीम इंडिया का प्रदर्शन टेस्ट मैचों से कहीं बेहतर होता है। पिछले वर्ल्डकप के बाद टीम इंडिया विदेशी पिचों पर 24 टेस्ट मैच खेली है, जिनमें से 15 टेस्ट में उन्हें हार और सिर्फ दो में जीत हासिल हुई है, जबकि सात मैच ड्रॉ रहे। वहीं, इसी दौरान खेले 44 वन-डे मैचों में से टीम इंडिया को 21 में जीत और 18 में हार मिली। दो मैच टाई रहे, जबकि तीन रद्द करने पड़े। इनमें सबसे बड़ी जीत रही थी वर्ष 2013 में आईसीसी चैम्पियन्स ट्रॉफी।
अब आईसीसी क्रिकेट वर्ल्डकप, 2015 से ठीक पहले भारतीय टीम ट्रायंगुलर सीरीज़ में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ अपनी तैयारियों को परख सकती है। कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी जानते हैं कि यह उनका आखिरी वर्ल्डकप है, सो, अगर वह खिताब बचाने में कामयाब रहते हैं तो बिना शक अब तक के महानतम कप्तान कहे जाएंगे।