Anant Chaturdashi 2019: अनंत चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन विष्‍णु के अनंत रूप की पूजा करने से भक्‍तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

Anant Chaturdashi 2019: अनंत चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

Anant Chaturdashi 2019: अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्‍णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है

खास बातें

  • अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्‍णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है
  • अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणपति विसर्जन भी होता है
  • इस दिन अनंत सूत्र बांधने का विधान है
नई दिल्‍ली:

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन भगवान विष्‍णु के अनंत रूप में पूजा की जाती है. अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान के अनंत स्‍वरूप के लिए व्रत रखा जाता है. इस दिन अनंत सूत्र बांधा जाता है. स्‍त्रियां दाएं हाथ और पुरुष बाएं हाथ में अनंत सूत्र धारण करती हैं. मान्‍यता है कि कि अनंत सूत्र पहनने से सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाती हैं. इसके अलावा अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan) भी होता है. भक्‍त धूमधाम और नाच-गाने के साथ अपने प्‍यारे बप्‍पा (Bappa) को 10 दिन के बाद विदाई देते हैं. इस दौरान पूरा माहौल गणपति बप्‍पा मोरया (Ganpati Bappa Morya) की ध्‍वनि से गूंज उठता है. इस दिन को अनंत चौदस (Anant Chaudas) के नाम से भी जाना जाता है. 
 
अनंत चतुर्दशी कब है?
हिन्‍दू कैलेंडर के मुतबिक अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) हर साल भादो माह शुक्‍ल पक्ष की चौदस यानी कि 14वें दिन मनाई जाती है. इस साल अनंत चतुर्दशी 12 सितंबर को है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह सितंबर के महीने में पड़ती है. गणेश चतुर्थी के 10 दिन बाद 11वें दिन अनंत चतुर्दशी आती है. 

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) तिथि और शुभ मुहूर्त 
अनंत चतुर्दशी की तिथि:
12 सितंबर 2019
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 12 सितंबर  2019 को सुबह 05 बजकर 06 मिनट से 
चतुर्दशी तिथि समाप्‍त: 13 सितंबर को सुबह 07 बजकर 35 मिनट तक.

अनंत चर्तुदशी पूजा का मुहूर्त: 12 सितंबर को सुबह 06 बजकर 13 मिनट से 13 सितंबर की सबुह 07 बजकर 17 मिनट तक

अनंत चतुर्दशी का महत्‍व 
हिन्‍दू धर्म में अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्‍व है. यह भगवान विष्‍णु की अनंत रूप में उपासना का दिन है. इस दिन भगवान विष्‍णु की उपासना के बाद अनंत सूत्र बांधा जाता है. यह सूत्र रेशम या सूत का होता है. इस सूत्र में 14 गांठें लगाई जाती हैं. मान्‍यता है कि भगवान ने 14 लोक बनाए जिनमें सत्‍य, तप, जन, मह, स्‍वर्ग, भुव:, भू, अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल शामिल हैं. कहा जाता है कि अपने बनाए इन लोकों की रक्षा करने के लिए श्री हरि विष्‍णु ने
अलग-अलग 14 अवतार लिए.

मान्‍यता है कि अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन विष्‍णु के अनंत रूप की पूजा करने से भक्‍तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. माना जाता है कि इस दिन व्रत करने के अलावा अगर सच्‍चे मन से विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ किया जाए तो धन-धान्‍य, उन्‍नति-प्रगति, खुशहाली और संतान का सौभाग्‍य प्राप्‍त होता है. इस दिन गणेश विसर्जन के साथ गणेश उत्‍सव का समापन होता है. वहीं, जैन धर्म में इस दिन को पर्यषुण पर्व का अंतिम दिवस कहा जाता है. अनंत चतुर्दशी भक्ति, एकता और सौहार्द का प्रतीक है. देश भर में इस त्‍योहार को धूमधाम से मनाया जाता है.

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi)​ की पूजा विधि 
अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी के महात्‍म्‍य का वर्णन मिलता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्‍णु के अनंत रूप का पूजन होता है. इस व्रत की पूजा दिन के समय होती है. पूजा विधि इस प्रकार है. 
- सबसे पहले स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें और व्रत का संकल्‍प लें. 
- इसके बाद मंदिर में कलश स्‍थापना करें. 
- कलश के ऊपर अष्‍ट दलों वाला कमल रखें और कुषा का सूत्र चढ़ाएं. आप चाहें तो विष्‍णु की तस्‍वीर की भी पूजा कर सकते हैं.
- अब कुषा के सूत्र को सिंदूरी लाल रंग, केसर और हल्‍दी में भिगोकर रखें. 
- अब इस सूत्र में 14 गांठें लगाकर विष्‍णु जी को दिखाएं. 
- इसके बाद सूत्र की पूजा करें और इस मंत्र को पढ़ें-
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।  
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

- अब विष्‍णु की प्रतिमा की षडोशोपचार विधि से पूजा करें. 
- पूजा के बाद अनंत सूत्र बांधें. पुरुष इस सूत्र को बाएं हाथ और महिलाएं दाएं हाथ में बांधती हैं. 
- सूत्र बांधने के बाद यथा शक्ति ब्राह्मण को भोज कराएं और पूरे परिवार के साथ आप खुद भी प्रसाद ग्रहण करें. 

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सुमंत नाम का एक विद्वान ब्राह्मण था. उसकी पत्‍नी का नाम दीक्षा थो जो बेहद धार्मिक विचारों वाली महिला थी. दोनों की एक बेटी थी जिसका नाम सुशीला था. जब सुशीला बड़ी हुई तो उसकी मां दीक्षा का निधन हो गया. सुशीला की परवरिश के लिए उसके पिता सुमंत को कर्कशा नाम की एक महिला से विवाह करना पड़ा. कर्कशा का व्‍यहार सुशीला के प्रति अच्‍छा नहीं था. लेकिन सुशीला में अपनी मां दीक्षा के गुण थे. वो अपनी मां की तरह ही धार्मिक प्रवृत्ति की थी. कुछ समय बाद सुशीला का विवाह कौणिडन्‍य ऋषि से किया गया. शादी के बाद नवविवाहित जोड़ा अपने माता-पिता के साथ एक ही आश्रम में रहने लगा. कर्कशा का व्‍यवहार उनके प्रति अच्‍छा नहीं था जिस वजह से उन्‍हें आश्रम छोड़कर जाना पड़ा. 

आश्रम छोड़ने के बाद सुशीला और कौणिडन्‍य के लिए जीवन बेहद कठिन हो गया. न कोई आसरा था और न ही जीविका का साधन. दोनों काम की तलाश में एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर भटकने लगे. भटकते-भटकते दोनों एक नदी के तट पर पहुंचे, जहां उन्‍होंने रात को विश्राम किया. उसी दौरान सुशीला ने देखा कि वहां कई स्त्रियां सज-धज कर पूजा कर रही थीं और एक-दसूरे को रक्षा सूत्र बांध रही हैं. सुशीला ने उनसे व्रत का महत्‍व पूछा . वो सभी महिलाएं विष्‍णु के अनंत स्‍वरूप की पूजा कर रही थीं और अनंत सूत्र बांध रही थीं. उन्‍होंने बतया कि इस व्रत के प्रभाव से सभी कष्‍ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सुशीला ने व्रत का विधि विधान से पालन किया और अनंत सूत्र पहनने के बाद भगवान विष्‍णु से अपने पति के कष्‍टों को दूर करने की प्रार्थना की. 

समय के साथ कौणिडन्‍य ऋषि का जीवन सुधरने लगा. व्रत के प्रभाव से उन्‍हें अब धन-धान्‍य की कमी नहीं थी. अगले साल फिर अनंत चतुर्दशी का दिन आया. सुशीला ने भगवान को धन्‍यवाद देने के लिए फिर से व्रत किया और अनंत सूत्र धारण किया. जब ऋषि कौणिडन्‍य ने धागे के बारे में पूछा तो सुशीला ने अनंत चतुर्दशी की महिमा बताई. साथ ही कहा कि सारा वैभव इस व्रत के प्रभाव से मिला है. यह सुनकर कौणिडन्‍य क्रोधित हो गए. ऋषि को लगा कि पत्‍नी उनकी मेहनत का श्रेय भगवान को दे रही हैं और गुस्‍से में आकर उन्‍होंने अनंत सूत्र तोड़ दिया. इस अपमान से दुखी अनंत देव ने धीरे-धीरे ऋषि कौणिडन्‍य से सबकुछ वापस ले लिया. पति-पत्‍नी फिर से जंगल-जंगल भटकने लगे. फिर उन्‍हें प्रतापी ऋषि मिले जिन्‍होंने बताया कि उनकी ये हालत भगवान के अपमान के कारण हुई है. तब ऋषि कौणिडन्‍य को अपने पाप का आभास हुआ और उन्‍होंने पत्‍नी के साथ मिलकर पूरे विधि-विधान से अनंत चर्तुदशी का व्रत किया. उन्‍होंने कई सालों तक इस व्रत को किया और 14 साल बाद अनंत देव प्रसन्‍न हुए. भगवान ने ऋषि कौणिडन्‍य को दर्शन दिए और उनके जीवन में फिर से खुशियां लौट आईं. 

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मान्‍यता है कि भगवान कृष्‍ण ने पांडवों को अनंत चर्तुदशी की कथा सुनाई थी. पांडवों ने अपने वनवास में हर साल इस व्रत का पालन किया. कहा जाता है कि सत्‍यवादी राजा हर‍िशचंद्र को भी इस व्रत के प्रभाव से राज-पाट वापस मिल गया था.