Chaitra Navratri: नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाती हैं 'देवी शैलपुत्री', जानें इनकी पूरी कहानी और मंत्र

मां दुर्गा पहले स्वरूप को 'शैलपुत्री' नाम से जाना जाता है. यह नवरात्रि में पूजी जाने वाली सबसे पहली माता हैं. शैल का अर्थ होता है पर्वत. पर्वतों के राजा हिमालय के घर में पुत्री के रूप में यह जन्मी थीं.

Chaitra Navratri: नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाती हैं 'देवी शैलपुत्री', जानें इनकी पूरी कहानी और मंत्र

नवरात्रि के पहले दिन होती है "देवी शैलपुत्री" की पूजा, जानें उनकी पूरी कहानी

नई दिल्ली:

चैत्र नवरात्रि चल रहे हैं. यह 18 मार्च से 26 मार्च तक चलेंगे. इन पूरे नौ दिनों में हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होगी. यह हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है, इसीलिए यह पूरे भारत वर्ष और कुछ जगह विदेशों में यह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. माता की पूजा के अलावा चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन को राम जी के जन्मदिन के तौर पर भी मनाया जाता है. इसे राम नवमी बोलते हैं. चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है. इसी के साथ यह नवरात्रि वसंत के बाद गर्मियों की शुरुआत मानी जाती है. नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है. दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्माण्डा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठवें दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नौवें दिन सिद्धिदात्री को पूजा जाता है. इसी के साथ नौवें दिन राम जी की पूजा भी करते हैं. यहां जानें मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप की पूरी कहानी. 

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शैलपुत्री रूप की पूरी कहानी
मां दुर्गा पहले स्वरूप को 'शैलपुत्री' नाम से जाना जाता है. यह नवरात्रि में पूजी जाने वाली सबसे पहली माता हैं. इनके नाम को लेकर मान्यता है कि शैल का अर्थ होता है पर्वत. पर्वतों के राजा हिमालय के घर में पुत्री के रूप में यह जन्मी थीं, इसीलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. इन माता के हाथ के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है. 

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देवी शैलपुत्री की उत्पत्ति की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताएं के अनुसार, अपने पूर्वजन्म में देवी शैलपुत्री प्रजापति दक्षराज की कन्या थीं और तब उनका नाम सती था. आदिशक्ति देवी सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ था. एक बार दक्षराज ने विशाल यज्ञ आयोजित किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन शंकरजी को नहीं बुलाया. रोष से भरी सती जब अपने पिता के यज्ञ में गईं तो दक्षराज ने भगवान शंकर के विरुद्ध कई अपशब्द कहे. देवी सती अपने पति भगवान शंकर का अपमान सहन नहीं कर सकीं. उन्होंने वहीं यज्ञ की वेदी में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए. अगले जन्म में देवी सती शैलराज हिमालय की पुत्री बनीं और शैलपुत्री के नाम से जानी गईं. जगत-कल्याण के लिए इस जन्म में भी उनका विवाह भगवान शंकर से ही हुआ. पार्वती और हेमवती उनके ही अन्य नाम हैं.

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देवी शैलपुत्री की आराधना के प्रभावशाली मंत्र
दुर्गा के पहले रूप शैलपुत्री की शक्तियां अपरम्पार हैं. यहां पढ़ें उनका मंत्र:

वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ । 
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥
पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम् ॥
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता ॥
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधरां कातंकपोलां तुंग कुचाम् ।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम् ॥

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