Eid 2017: आपसी भाईचारे और प्यार को बांटने का त्योहार है ईद, जानिए इसका महत्व

माह-ए-रमजान में रोजेदारों ने रोजे रखने, पूरे महीने इबादत करने और गरीबों की मदद करने में कामयाबी पाई, ईद उसका भी जश्न है. ईद के रोज जो नमाज पढ़ी जाती है, वो बंदो की तरफ से अल्लाह को धन्यवाद होती है कि उसने उन्हें रोजे रखने की तौफीक दी.

Eid 2017: आपसी भाईचारे और प्यार को बांटने का त्योहार है ईद, जानिए इसका महत्व

Eid 2017: आपसी भाईचारे और प्यार बांटने का त्योहार है ईद

Eid 2017: रमजान माह की इबादतों और रोजे के बाद ईद-उल फितर का त्योहार जबरदस्त रौनक लेकर आता है. रमजान के महीने की आखिरी दिन जब चांद का दीदार होता है तो उसके बाद वाले दिन को ईद मनाई जाती है. इस बार यह त्योहार देश भर में 26 जून को मनाया जाएगा. इसका ऐलान शनिवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मौलाना डॉ. कल्बे सादिक ने किया. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना डॉ. कल्बे सादिक ने कहा कि इस साल 28 मई से रमजान शुरू हुआ था. ईद 26 जून को मनाई जाएगी. उन्होंने कहा कि ईद का चांद रविवार को दिखेगा, जिसके बाद देशभर में सोमवार को ईद मनाई जाएगी. 

ईद की अहमियत 
माह-ए-रमजान में रोजेदारों ने रोजे रखने, पूरे महीने इबादत करने और गरीबों की मदद करने में कामयाबी पाई, ईद उसका भी जश्न है. ईद के रोज जो नमाज पढ़ी जाती है, वो बंदो की तरफ से अल्लाह को धन्यवाद होती है कि उसने उन्हें रोजे रखने की तौफीक दी.  

ईद अल्लाह से इनाम लेने का दिन है. इस मुबारक दिन मुस्लिम समुदाय को लोग लजीज पकवान बनाते हैं. वह नए कपड़े पहनकर मस्जिद नमाज पढ़ने जाते हैं. नमाज के बाद सभी लोग गिले-शिकवे भूल कर एक दूसरे के गले लगते हैं और ईद की बधाई देते हैं. 

ईद-उल-फितर नाम क्यों पड़ा
इस त्योहार का नाम ईद-उल-फितर इसलिए पड़ा क्योंकि ईद के दिन नमाज से पहले सभी मुस्लिम फितरा अदा करते हैं. जकात भी निकालते हैं. फितरे का अर्थ है- सुबह निर्धन एवं फकीरों को पैसे की शक्ल में फितरे की रकम देना. कहा जाता है कि दान या जकात ‌किए बिना ईद की नमाज नहीं होती. 



मुस्लिमों के पाक महीने रमजान के 30वें दिन आखिरी रोजा के बाद चांद देखकर ईद मनाने की परंपरा है. माना जाता है कि रमजान माह के दौरान ही कुरान का अवतार हुआ था. इसलिए इस माह कुरान अधिक पढ़ी जाती है. 

रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है. इस महीने के खत्म होते ही 10वां माह शव्वाल शुरू होता है. शव्वाल माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है. ईद का आना ही शव्वाल माह की शुरुआत होती है. 
रमजान में मुस्लिम समाज द्वारा रोजा, तरावीह और तिलावते कुरआन के माध्यम से विशेष इबादतें की जाती हैं. मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक, रमजान का पवित्र महीना मुसलमानों की जीवन शैली में सुधार और संतुलन स्थापित करने का भी अच्छा माध्यम है.
रोजा का महत्व
रोजा आपसी भाईचारे को बढ़ाता है. रमजान में सामूहिक रोजा इफ्तार के माध्यम से अपने पास-पड़ोस के लोगों के साथ बैठने का मौका मिलता है, जिससे पारस्परिक संबंधों में प्रगाढ़ता आती है. मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक, रोजा एक ऐसी इबादत है जिससे रोजेदार के अंदर मानवता का भाव उत्पन्न होता है और उसका शरीर निरोग एवं स्वस्थ रहता है.
 

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