Jumma: आखिर मुसलमानों के लिए क्‍यों जरूरी है जुमे की नमाज?

Jumma: इस्लाम में जुमे के दिन को बाकी दिनों से ज्यादा अहमियत दी गई है. इस दिन को सब दिनों का सरदार माना जाता है.

Jumma: आखिर मुसलमानों के लिए क्‍यों जरूरी है जुमे की नमाज?

इस्लाम में जुमे की नमाज की अहमियत.

नई दिल्ली:

इस्लाम धर्म में नमाज की सबसे ज्यादा अहमियत बताई गई है. नमाज (Namaz) इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है. एक मुसलमान होने की बुनियादी पहचान यही है कि कोई शख्स अल्लाह पर यकीन रखता हो और उसे राजी करने के लिए नमाज पढ़ता हो. इस्लाम में 5 वक्त की नमाज पढ़ना हर मुसलमान पर फर्ज यानी जरूरी है. इन 5 नमाजों में फज्र की नमाज (तड़के), जुहर की नमाज (दोपहर), अस्र की नमाज (सूरज ढलने से पहले), मगरिब की नमाज (सूरज छिपने के बाद) और ईशा की नमाज रात के वक्त पढ़ी जाती है.  इन नमाजों के अलावा एक और नमाज है जिसे सबसे अफजल यानी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. ये नमाज है जुमे की. 

इस्लाम में जुमे की नमाज अहम क्यों है?
इस्लाम में जुमे के दिन को बाकी दिनों से ज्यादा अहमियत दी गई है. इस दिन को सब दिनों का सरदार माना जाता है. दरअसल, जुमे का मतलब जमा होना यानी एकत्र होना होता है. जुमे की नजाम हर दिन की नमाज से अलग होती है, क्योंकि जुमे की नमाज में खुतबा होता है. यही खुतबा जुमे की नमाज को विशेष बनाता है. जुमे की नमाज का सबसे बड़ा मकसद मुसलमानों को जमा करना और उन्हें पैगाम देना होता है.

खुतबे में हर मस्जिद के इमाम नमाज से पहले लोगों को एक पैगाम देते हैं. ये पैगाम इस्लाम से जुड़ी जानकारी से लेकर मौजूदा समय के हालात पर दिया जाता है. देश-दुनिया के तमाम बड़े मुद्दों पर भी मस्जिद में जमा हुए मुसलमानों के साथ विचार साझा किए जाते हैं. लोगों से अपील भी की जाती है.

हदीस में जुमे के दिन और नमाज की फजीलत बताई गई है
कई हदीस में बताया गया है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने जुमे के दिन को हर मुसलमान के लिए ईद के दिन के समान बताया है. इस्लाम धर्म में माना जाता है कि जुमे की नमाज से पहले पैगंबर मोहम्मद स्नान करके नए और पाक कपड़े पहनते थे, खुश्‍बू (इत्र) लगाते थे, आंखों में सुरमा लगाकर नमाज के लिए जाते थे. यही वजह है कि हर मुसलमान जुमे की नमाज के लिए खास तैयारी करता है.

एक हदीस में बताया गया है, जब जुमा आता है, हर मस्जिद के दरवाजे पर फरिश्ते (एंजेल) खड़े होते हैं और जुमे की नमाज के लिए आने वाले हर शख्स का नाम लिखते हैं और जब तक इमाम खुतबा शुरू नहीं करते तब तक वे लोगों के नाम लिखते रहते हैं. 

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इस्लाम धर्म में मान्यता है कि अल्लाह ने ‘आदम' को जुमे के दिन ही बनाया था और इसी दिन आदम ने पहली बार जन्नत में कदम रखा था. ऐसी भी मान्यता है कि कयामत के दिन जुमे के दिन ही हिसाब-किताब होगा.