गंगा दशहरा: जानिए महत्‍व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र और व्रत कथा

गंगा दशहरा के दिन मां गंगा का अवतरण हुआ था. आज के दिन पवित्र नदियों में स्‍नान करने के बाद दान-दक्षिणा करनी चाहिए.

गंगा दशहरा: जानिए महत्‍व, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र और व्रत कथा

गंगा दशहरा 2018: इस दिन पवित्र नदियों में स्‍नान का बड़ा महत्‍व है

खास बातें

  • गंगा दशहरा के दिन गंगा का अवतरण हुआ था
  • इस दिन स्‍नान और दान का विशेष महत्‍व है
  • मान्‍यता है कि गंगा दशहरा के दिन दान करने से पाप नष्‍ट हो जाते हैं
नई द‍िल्‍ली :

आज गंगा दशहरा है. गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्‍नान का बड़ा महत्‍व है. मान्‍यता है कि इस दिन गंगा का अवतार हुआ था. माना जाता है कि आज के दिन गंगा में स्‍नान करने के बाद दान-दक्षिण करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और पापों का नाश होता है.

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक हर साल ज्‍येष्‍ठ माह की शुक्‍ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है. आमतौर पर यह त्‍योहोर अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक मई या जून में आता है. इस बार यह 24 मई यानी कि आज मनाया जा रहा है. गंगा दशहरा के मौके पर हजारोंं श्रद्धालुओं ने हरिद्वार और वाराणसी में गंगा जी में डुबकी लगाई.    
 

गंगा के अवतरण के दिन गंगा का हाल

क्‍यों मनाया जाता है गंगा दशहरा ?
हिंदू पुरणों के अनुसार ऋषि भागीरथ को अपने पूर्वजों की अस्थियों के विसर्जन के लिए बहते हुए निर्मल जल की आवश्यकता थी. इसके लिए उन्होंने मां गंगा की कड़ी तपस्या की जिससे मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हो सके. मां गंगा का बहाव तेज होने के कारण वह उनकी इस इच्छा को पूरा नहीं कर पाई. लेकिन उन्होंने कहा की अगर भगवान शिव मुझे अपनी जटाओं में समा कर पृथ्वी पर मेरी धारा प्रवाह कर दें तो यह संभव हो सकता है. उसके बाद ऋषि भागीरथ ने शिव जी की तपस्या की और उनसे गंगा को अपनी जटाओं में समाहित करने का आग्रह किया. फिर क्‍या था गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में समा गईं और फिर ब्रह्मा जी ने शिव जी की जटाओं में गंगा को प्रवाहित कर दिया. इसके बाद शिव ने गंगा की एक चोटी सी धारा पृथ्वी की ओर प्रवाहित कर दी. तब जाकर भागीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित कर उन्हें मुक्ति दिलाई.

गंगा दशहरा का महत्‍व 
हिंदुओं में गंगा दशहरा का बड़ा महत्‍व है. मान्‍यता है कि इस दिन गंगा या किसी भी प‍वित्र नदी में जाकर स्‍नान, दान, जप, तप और व्रत करने से भक्‍त के सभी पाप दूर हो जाते हैं और वह निरोगी हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन आप जिस भी चीज़ का दान करें उसकी संख्‍या 10 होनी चाहिए. 

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गंगा दशहरा स्‍नान का शुभ मुहूर्त
गंगा दशहरा का स्नान बृहस्पतिवार को है. 23 मई को शाम 07 :12 से  गंगा दशहरा पूजन और स्नान का शुभ मुहूर्त शुरू हो चुका है जो 24 मई की शाम 6:18 मिनट तक रहेगा. 

गंगा दशहरा की पूजन विधिन और मंत्र
1-
गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी या पास के किसी भी जलाशय या घर के शुद्ध जल से स्नान करके किसी साक्षात् मूर्ति के पास बैठ जाएं.  
2- फिर 'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः' का जाप करें. 
3- इसके बाद  'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा' करके हवन करे. 
4- फिर ' ऊँ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं( वाक्-काम-मायामयि) हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा.' इस मंत्र से ;
5- पांच पुष्पाञ्जलि अर्पण करके भगीरथ हिमालय के नाम- मंत्र से पूजन करें.
6- फिर 10 फल, 10 दीपक और 10 सेर तिल का 'गंगायै नमः' कहकर दान करें. साथ ही घी मिले हुए सत्तू और गुड़ के पिण्ड जल में डालें.
7- इसके अलावा 10 सेर तिल, 10 सेर जौ, 10 सेर गेहूं 10 ब्राह्मण को दें.

गंगा दशहरा की कथा
एक बार महाराज सगर ने यज्ञ किया. उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला. इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया. यह यज्ञ के लिए विघ्न था. परिणामतः अंशुमान ने सगर की 60 हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया. सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला. फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया. खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान 'महर्षि कपिल' के रूप में तपस्या कर रहे हैं. उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है. प्रजा उन्हें देखकर 'चोर-चोर' चिल्लाने लगी.

महर्षि कपिल की समाधि टूट गई. ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई. इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था. भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने 'गंगा' की मांग की.

इस पर ब्रह्मा ने कहा- 'राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है. इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए.' महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया.

उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा. तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं. इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका.

अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई. उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया. तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया. इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी. इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए.

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