भारत और म्यांमार के बीच सौहार्द के बीज बो रहे हैं भारतीय बौद्ध भिक्षु

भारत और म्यांमार के बीच सौहार्द के बीज बो रहे हैं भारतीय बौद्ध भिक्षु

प्रतीकात्मक चित्र

यंगून:

धर्म और संस्कृति के सदियों पुराने रिश्तों से बंधे भारत और म्यांमार के बीच शांति और सौहार्द के रिश्तों को और मजबूत बनाने की पहल भारतीय बौद्ध भिक्षुओं ने की है। 

म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार अस्तित्व में आने वाली है। सेना के हाथ से लोकतांत्रिक सरकार के हाथ में सत्ता आने की इस कवायद को आसान बनाने में भारत और म्यांमार के बौद्ध भिक्षु भी मददगार बन रहे हैं। सत्ता के इस स्थानांतरण को वे आध्यात्मिक तरीके से आसान बना रहे हैं।

म्यांमार में शांति के लिए प्रार्थना

भिक्षु द्रुक्पा थुकसे रिनपोचे, जो यंगून की यात्रा पर आए हैं, ने कहा, "हम यहां मुख्यत: शांति और सौहार्द के लिए आए हैं। हर कोई शांति से जीना चाहता है। हम द्रुक्पा वंशावली के हैं और बौद्ध धर्म में यकीन रखने वाले इस देश (म्यांमार) में शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।"

30 वर्षीय द्रुक्पा थुकसे रिनपोचे यहां 60 से अधिक भिक्षुओं की पदयात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने यहां एक शांति सम्मेलन में भी हिस्सा लिया। वह द्रुक्पा समाज के आध्यात्मिक प्रमुख ग्यालवांग द्रुक्पा के आध्यात्मिक प्रतिनिधि हैं।

द्रुक्पा थुकसे रिनपोचे ने कहा, "इस बार हमने अपनी शांति पदयात्रा म्यांमार में निकालने का फैसला किया। हम भारत में कई जगहों पर इसे निकाल चुके हैं। हम अपने साथ भगवान बुद्ध का एक पवित्र अस्थि अवशेष यहां के लोगों को सफल और सुखी बनाने के लिए लाए हैं। 2600 साल पुराने इस पवित्र अवशेष को लोगों की अभूतपूर्व श्रद्धा मिल रही है।"

दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होंगे: राजदूत गौतम मुखोपाध्याय 

ढाई हजार साल पुराने श्वेडागोन पगोडा में इस अस्थि अवशेष के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। पगोडा में प्रार्थना सत्र में म्यांमार में भारत के राजदूत गौतम मुखोपाध्याय भी पहुंचे। उन्होंने कहा कि इससे दोनों देशों के रिश्ते निश्चित ही और बेहतर होंगे।

म्यांमार के बुजुर्ग आध्यात्मिक गुरु सितागु सायादव ने कहा कि भारतीय भिक्षुओं की यात्रा से दोनों देशों के संबंध और बेहतर होंगे।

बेहद खास है भगवान बुद्ध का अस्थि अवशेष

भारत और म्यांमार के रिश्तों के बारे में पूछने पर सितागु सायादव ने आईएएनएस से कहा, "बुद्ध का अवशेष भारत से आया है जो कि बौद्ध धर्म का जन्मस्थान है, लेकिन खुद बुद्ध का जन्मस्थान नहीं है। बुद्ध ने अपने जीवन के 45 साल भारत में बिताए थे। इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण निशानी है दोनों देशों के बीच शांति और मजबूत रिश्तों की।"

गौतम मुखोपाध्याय ने कहा कि लद्दाख में द्रुक्पा समाज के सबसे पुराने मठ, हेमिस मठ से बुद्ध के इस पवित्र अस्थि अवशेष को निकाल कर यहां लाना बेहद खास है।

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इस अस्थि अवशेष को 21 जनवरी को विमान से मांडले लाया गया। द्रुप्का समाज के भिक्षु इसे लेकर म्यांमार के कई शहरों और गांवों में गए।