जब नारद ने नहीं होने दी शिव की शादी, जानिए कन्याकुमारी की कहानी

सभी देवता असुर से मुक्ति पाना चाहते थे, लेकिन कोई भी इसे मार नहीं पा रहा था. क्योंकि इस असुर को भगवान शिव की ओर से वरदान था कि उसकी मृत्यु केवल एक ‘कुंवारी कन्या’ के हाथों ही होगी.

जब नारद ने नहीं होने दी शिव की शादी, जानिए कन्याकुमारी की कहानी

कन्याकुमारी की पूरी कहानी

खास बातें

  • बानासुरन असुर करता था देवताओं को परेशान
  • सिर्फ एक ‘कुंवारी कन्या’ ही कर सकती थी वध
  • कन्या को हुआ शिव से प्यार
नई दिल्ली:

भारत के मशहूर टूरिस्ट स्थानों में से एक है कन्याकुमारी. यहां की मशहूर जगहों जैसे लाइटहाउस, तीनों समुद्रों का संगम और मंदिरों के बारे में सब जानते होंगे. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इस जगह का नाम कन्याकुमारी क्यों पड़ा? आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? यहां आपको इसी नाम की पूरी कहानी बता रहे हैं. तो पढ़ें और जानें इस जगह और इसके नाम से जुड़ी ये पौराणिक कथा.

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शिवपुराण में लिखी एक बहुत ही प्रसिद्ध कथा के अनुसार बानासुरन नाम के एक असुर ने देवताओं को अपने कुकर्मों से पीड़ित कर रखा था. सभी देवता इस असुर से मुक्ति पाना चाहते थे, लेकिन कोई भी इसे मार नहीं पा रहा था. क्योंकि इस असुर को भगवान शिव की ओर से वरदान था कि उसकी मृत्यु केवल एक ‘कुंवारी कन्या’ के हाथों ही होगी. यह वरदान उसे भगवान शिव की कड़ी तपस्या के बाद मिला था. 

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इसी राक्षस का वध करने के लिए आदि शक्ति के एक अंश से एक पुत्री को जन्मा गया. इस पुत्री का जन्म उस वक्त भारत पर राज कर रहे राजा के घर में हुआ. राजा के आठ पुत्र और एक यही पुत्री थी. इस पुत्री का नाम रखा गया 'कन्या'. 

इस कन्या को भगवान शिव से प्रेम हुआ और उन्हें पाने के लिए कन्या ने कठोर तपस्या की. उनकी तपस्या से भगवान शिव खुश हुए और शादी का वचन दिया. शादी की तैयारियां शुरू हुई. शिव जी बारात लेकर निकले. लेकिन इस बीच नारद जी को भनक हुई कि कन्या कोई साधारण स्त्री नहीं बल्कि उनका जन्म बानासुरन को मारने के लिए हुआ है. उन्होंने इस बात की खबर सभी देवताओं को दी. 

भगवान शिव की कैलाश से आधी रात को बारात निकली ताकि सुबह सही मुहूर्त पर दक्षिणी छोर पहुंच पाएं. यहां सभी देवताओं ने मिलकर इस शादी को रोकने की योजना बनाई. बारात सुबह कन्या के द्वार पहुंचती इससे पहले ही छल करके देवताओं ने रात के अंधेरे में ही मुर्गे की आवाज में बांग लगा दी. ऐसे में भगवान शिव को लगा कि वो सही मुहूर्त पर कन्या के घर नहीं पहुंच पाए और उन्होंने बारात कैलाश की ओर लौटा दी. 

वहीं, असुर बानासुरन को कन्या की सुंदरता के बारे में खबर हुई और शादी का प्रस्ताव भेजा. क्रोध में आई कन्या ने बानासुर से युद्ध लड़ने को कहा, साथ ही कहा कि यदि वो हार जाती हैं तो विवाह कर लेंगी. लेकिन कन्या का जन्म ही बानासुरन का वध करने के लिए हुआ था. दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ और बानासुरन मारा गया. वहीं, कन्या हमेशा के लिए कुंवारी रह गई. कथा के अनुसार इसी दक्षिणी छोर का नाम कन्याकुमारी पड़ा. 

देखे वीडियो - कश्मीर से कन्याकुमारी वाया रेल
 


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