वृन्दावन के बांकेबिहारी को कई दिनों से केवल दूध-भात का भोग, कच्ची रसोई को तरस रहे हैं ठाकुरजी

वृन्दावन के बांकेबिहारी को कई दिनों से केवल दूध-भात का भोग, कच्ची रसोई को तरस रहे हैं ठाकुरजी

फाइल फोटो

मथुरा:

वृन्दावन के विश्व विख्यात बांकेबिहारी मंदिर में इन दिनों यह सवाल मुखर है कि ठाकुर जी की रसोई कौन बनाए। इस मसले पर मंदिर के सेवायत पुजारियों के दो अलग-अलग गुट बन गए है। किन्तु समस्या के हल के लिए कोई भी गुट पहल करने को तैयार नहीं है।
 
सारस्वत कुल के ब्राह्मण बनाते हैं कच्ची रसोई
बांकेबिहारी मंदिर प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट नन्दकिशोर उपमन्यु ने बताया कि अब तक बरसों से ठाकुरजी की कच्ची रसोई बनाने वाले सारस्वत कुलीन ब्राह्मण द्वारा हाथ खड़े कर दिए जाने से यह स्थिति बनी है जिसका निराकरण करने के लिए कमेटी ने कई प्रयास किए है, लेकिन अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है।
 
ठाकुरजी को लगता है एक दिन में आठ बार भोग...
उन्होंने बताया कि ठाकुरजी बांकेबिहारी को दिन में आठ बार भोग लगाया जाता है। प्रात: राजभोग दर्शन के दौरान चार बार बालभोग, श्रृंगार, उत्थापन और शयन तथा संध्या समय शयनभोग दर्शन के दौरान चार बार।
 
इस परिवार के लोग करते हैं कच्ची रसोई की व्यवस्था
राजभोग दर्शन के दौरान कच्ची रसोई की व्यवस्था की परंपरा ठाकुरजी के परमप्रिय भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला का परिवार निभाता चला आ रहा है। उनके यहां कच्ची रसोई तैयार करने का काम मंदिर के सेवायतों के सारस्वत कुल के ही किसी अन्य ब्राह्मण द्वारा निभाई जाता रहा है। किंतु अब उसने यह जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया है।
 
नई नियुक्ति पर परम्परा तोड़ने के आरोप...
इसके बाद मंदिर कमेटी ने सेवायत गोस्वामियों से ही यह जिम्मेदारी निभाने का आग्रह किया। लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम न निकला। जब एक सारस्वत गोस्वामी को दीक्षा देकर यह जिम्मेदारी दी गई तो एक गुट के लोग परंपरा तोड़े जाने का आरोप लगाने लगे। इसलिए उसे हटा दिया गया।
 
गोस्वामी नहीं हैं तैयार...
कमेटी अध्यक्ष ने बताया कि इसके बाद मंदिर के नोटिस बोर्ड पर सूचना चस्पां करने तथा बाकायदा मुनादी कराने पर भी कोई गोस्वामी इस कार्य के लिए तैयार नहीं हुआ है। न ही वे आपस में सहमति बनाकर किसी भी एक व्यक्ति को इस पुनीत कार्य के लिए राजी कर पाए हैं।
 
कई दिनों से ठाकुरजी को केवल दूध-भात का भोग
उन्होंने बताया कि कई दिन से ठाकुर जी को केवल दूध-भात का ही भोग लगाया जा रहा है, जबकि पंरपरानुसार कच्ची रसोई के दौरान उन्हें कढ़ी, भात, खीर आदि व्यंजनों का भोग लगाया जाता रहा है। यह जिम्मेदारी दो सेवायत गोस्वामी शरद गोस्वामी और राजुल गोस्वामी निभा रहे हैं।


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