Mahalaya 2020: महालया कब है ? महालया कैसे मनाया जाता है ? जानिए महालया का इतिहास

Mahalaya 2020: महालया(Mahalya) से ही दुर्गा पूजा(Durga Puja) की शुरुआत हो जाती है. बंगाल के लोगों के लिए महालया का विशेष महत्‍व है. इसी दिन मां दुर्गा कैलाश पर्व से धरती पर आगमन करती हैं और अगले 10 दिनों तक यहीं रहती हैं.

Mahalaya 2020: महालया कब है ? महालया कैसे मनाया जाता है ? जानिए महालया का इतिहास

Mahalaya 2020: महालया कब है ? महालया कैसे मनाया जाता है ? जानिए महालया का इतिहास

Mahalaya 2020: महालया(Mahalya) से ही दुर्गा पूजा(Durga Puja) की शुरुआत हो जाती है. बंगाल के लोगों के लिए महालया का विशेष महत्‍व है. महालया के साथ ही जहां एक तरफ श्राद्ध (Shradh) खत्‍म हो जाते हैं, वहीं मान्‍यताओं के अनुसार इसी दिन मां दुर्गा कैलाश पर्व से धरती पर आगमन करती हैं और अगले 10 दिनों तक यहीं रहती हैं. महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा(Maa Durga) की आंखें तैयार करते हैं. महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है और वह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं.

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कब है महालया?

पितृ पक्ष की आखिरी श्राद्ध तिथि को महालया पर्व मनाया जाता है. हिन्‍दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के कृष्‍ण पक्ष की अंतिम तिथि यानी अमावस्‍या को महालया अमावस्‍या (Mahalaya Amavasya 2020) कहा जाता है. पितृ पक्ष में महालया अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार महालया पर्व हर साल सितंबर या अक्‍टूबर के महीने में मनाया जाता है. लेकिन, इस साल दुर्गापूजा कुछ अलग होगी. आमतौर पर महालया के दूसरे दिन यानी पितर तर्पण के बाद से ही देवी पाठ की शुरुआत हो जाती है.

लेकिन इस साल महालया के एक माह के बाद यानी 17 अक्टूबर से दुर्गापूजा की शुरुआत हो रही है. वहीं, विजयादशमी 26 अक्टूबर को मनायी जाएगी. हर वर्ष महालया, सर्व पितृ अमावस्‍या के दिन ही होता है. हिन्दू शास्त्रों में दुर्गापूजा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में होती है लेकिन इस बार दो अश्विन माह हैं. एक शुद्ध तो दूसरा पुरुषोत्तम यानी अधिक मास. 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिक मास है. वहीं, 17 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक शुद्ध आश्विन माह होगा. इस दौरान ही 17 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक मां दुर्गा की पूजा की जाएगी.

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क्या है महालया का इतिहास?

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश ने अत्‍याचारी राक्षस महिषासुर के संहार के लिए मां दुर्गा का सृजन किया. महिषासुर को वरदान मिला हुआ था कि कोई देवता या मनुष्‍य उसका वध नहीं कर पाएगा. ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया. देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया. महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की. इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया. शस्‍त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया. दरसअल, महालया मां दुर्गा के धरती पर आगमन का द्योतक है. मां दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है.

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महालया कैसे मनाया जाता है ?

वैसे तो महालया बंगालियों का प्रमुख त्‍योहार है, लेकिन इसे देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. बंगाल के लोगों के लिए महालया पर्व का विशेष महत्‍व है. मां दुर्गा में आस्‍था रखने वाले लोग साल भर इस दिन का इंतजार करते हैं. महालया से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है. यह नवरात्रि और दुर्गा पूजा की के शुरुआत का प्रतीक है. मान्‍यता है कि महिषासुर नाम के राक्षस के सर्वनाश के लिए महालया के दिन मां दुर्गा का आह्वान किया गया था. कहा जाता है कि महलाया अमावस्‍या की सुबह सबसे पहले पितरों को विदाई दी जाती है. फिर शाम को मां दुर्गा कैलाश पर्वत से पृथ्‍वी लोक आती हैं और पूरे नौ दिनों तक यहां रहकर धरतीवासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं.

महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखों को तैयार करते हैं. दरअसल, मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले कारिगर यूं तो मूर्ति बनाने का काम महालया से कई दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं. महालया के दिन तक सभी मूर्तियों को लगभग तैयार कर छोड़ दिया जाता है. महालया के दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें बनाते हैं और उनमें रंग भरने का काम करते हैं. इस काम से पहले वह विशेष पूजा भी करते हैं. महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दे दिया जाता है और वह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं.

महालया पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी है. इसे सर्व पितृ अमावस्‍या भी कहा जाता है. इस दिन सभी पितरों को याद कर उन्‍हें तर्पण दिया जाता है. मान्‍यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्‍मा तृप्‍त होती है और वह खुशी-खुशी विदा होते हैं. वहीं जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो या पता न हो तो सर्व पितृ अमावस्‍या (Pitru Amavasya) के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है.

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