Narada Jayanti 2020: आज है नारद जयंती, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, जन्‍म कथा और महत्‍व

Narad Jayanti 2020: देवर्षि नारद को सृष्टि के पालनहार श्री हर‍ि विष्‍णु का अनन्‍य उपासक माना गया है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार वह हर वक्‍त "नारायण-नारायण" का जाप करते रहते हैं. नारद मुनि न सिर्फ देवओं बलकि असुरों के लिए भी आदरणीय हैं.

Narada Jayanti 2020: आज है नारद जयंती, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, जन्‍म कथा और महत्‍व

Narad Jayanti 2020 Images: नारद मुनि के जन्‍मोत्‍सव को नारद जयंती के रूप में मनाया जाता है

नई दिल्ली:

Narada Jayanti 2020: देवर्षि नारद मुनि के जन्‍मोत्‍व को नारद जयंती (Narad Jayanti) के रूप में मनाया जाता है. वैदिक पुराणों के अनुसार नारद मुनि देवताओं के दूत और सूचनाओं का स्रोत हैं. मान्‍यता है कि नारद जी तीनों लोकों, आकाश, स्‍वर्ग, पृथ्‍वी, पाताल या जहां चाहे विचरण कर सकते हैं. यही नहीं उन्‍हें धरती के पहले पत्रकार की उपाधि भी दी गई है. कहते हैं कि सूचनाओं को इधर-उधर से पहुंचाने के लिए नारद मुनि (Narad Muni) पूरे ब्रह्मांड में घूमते रहते हैं. हालांकि कई बार उनकी सूचनाओं से खलबली भी मची है, लेकिन उनसे हमेशा ब्रह्मांड का भला ही हुआ है. 

नारद जयंती कब है?
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ या जेठ माह के कृष्‍ण पक्ष की प्रतिपदा को नारद जयंती मनाई जाती है. अकसर बुद्ध पूर्णिमा के अगले दिन नारद जयंती आती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल मई के महीने में पड़ती है. इस बार नारद जयंती 8 मई 2020 को है.   

नारद जयंती की तिथ‍ि और शुभ मुहूर्त 
नारद जयंती की तिथि:
8 मई 2020 
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 7 मई 2020 को दोपहर 1 बजकर 14 मिनट से 
प्रतिपदा तिथि समाप्‍त: 8 मई 2020 को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट तक 

नारद जयंती का महत्‍व 
देवर्षि नारद को सृष्टि के पालनहार श्री हर‍ि विष्‍णु का अनन्‍य उपासक माना गया है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार वह हर वक्‍त "नारायण-नारायण" का जाप करते रहते हैं. नारद मुनि न सिर्फ देवओं बलकि असुरों के लिए भी आदरणीय हैं. हिन्‍दू शास्‍त्रों के अनुसार वह ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और उन्‍होंने अत्‍यंत कठोर तपस्‍या कर ब्रह्मर्षि का पद प्राप्‍त किया था. नारद का जिक्र लगभग सभी पुराणों में मिलता है. मान्‍यताओं के अनुसार एक हाथ में वीणा धारण करने वाले नारद तीनों युगों में अवतर‍ित हुए हैं. नारद जयंती के दिन लोग उपवास रख उनकी आराधना करते हैं. मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पुण्‍य प्राप्‍त होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. 

कैसे मनाई जाती है नारद जयंती
नारद जयंती के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है. भक्‍त इस मौके पर दिन भर व्रत रखकर पुराणों का पाठ करते हैं. नारद जयंती के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्‍हें यथा शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा किया जाता है. इस दिन पव‍ित्र नदियों में स्‍नान का विधान भी है. नारद जयंती के दिन विशेष रूप से श्री हर‍ि व‍िष्‍णु की भी पूजा की जाती है. पूजा में तुलसी दल को भी अवश्‍य शामिल किया जाता है. हालांकि लॉकडाउन के चलते मंदिरों में नारद जयंती से जुड़े सभी कार्यक्रमों को पहले ही रद्द किया जा चुका है. ऐसे में आप इस बार घर पर रहकर ही नारद जी की पूजा करें और सुरक्षित रहें.

नारद जयंती की पूजा विधि 
नारद जयंती के अवसर पर भगवान विष्‍णु और माता लक्ष्‍मी की पूजा करने के बाद ही नारद मुनि की पूजा की जाती है. ऐसा करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है. इसके बाद गीता और दुर्गासप्‍तशती का पाठ करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर में भगवान श्री कृष्ण को बांसुरी भेंट करने से मनोकामना पूरी होती है. इस दिन अन्‍न और वस्‍त्र का दान करना अच्‍छा होता है. 

नारद मुनि के जन्म की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार नारद मुनि भगवान ब्रम्हा की गोद से पैदा हुए थे. लेकिन इसके लिए उन्हें अपने पिछले जन्मों में कड़ी तपस्या से गुजरना पड़ा था. कहते हैं पूर्व जन्म में नारद मुनि गंधर्व कुल में पैदा हुए थे और उनका नाम 'उपबर्हण' था. पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था. एक बार कुछ अप्सराएं और गंधर्व गीत और नृत्य से भगवान ब्रह्मा की उपासना कर रहे थे. तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ श्रृंगार भाव से वहां आया. ये देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस उपबर्हण को श्राप दे दिया कि वह 'शूद्र योनि'  में जन्म लेगा. 

ब्रह्मा जी के श्राप से उपबर्हण का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ. दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते. पांच वर्ष की आयु में उसकी मां की मृत्यु हो गई. मां की मृत्यु के बाद उस बालक ने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया. कहते हैं एक दिन जब वह बालक एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठा था तब अचानक उसे भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई. 

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इस घटना ने नन्हें बालक के मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा जाग गई. निरंतर तपस्या करने के बाद एक दिन अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उस बालक को भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगा.
 
अपने अगले जन्म में यही बालक ब्रह्मा जी के ओरस पुत्र कहलाए और पूरे ब्रम्हांड में नारद मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए.