संक‍ष्‍टी चतुर्थी: सकट का व्रत करने वालों को नहीं करने चाहिए ये काम, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विध‍ि‍

संकष्‍टी चतुर्थी (Sankashti or Sankat Chaturthi or Sakat) का अर्थ है संकट को हरने वाली चतुर्थी. इस दिन सभी दुखों को खत्म करने वाले गणेश जी का पूजन और व्रत किया जाता है. मान्‍यता है कि जो कोई भी पूरे विधि-विधान से पूजा-पाठ करता है उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं.

संक‍ष्‍टी चतुर्थी: सकट का व्रत करने वालों को नहीं करने चाहिए ये काम, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विध‍ि‍

Sankashti Chaturthi: माघ महीने की संकष्‍टी चतुर्थी का महात्‍म्‍य सबसे ज्‍यादा है

खास बातें

  • संकष्‍टी चतुर्थी 24 जनवरी को है
  • माघ महीने की संकष्‍टी का विशेष महत्‍व है
  • इस दिन तिल का भोग लगाकर गणेश जी की पूजा की जाती है
नई दिल्‍ली:

हिन्‍दू कैलेंडर में हर महीने दो बार चतुर्थी आती है. एक चतुर्थी कृष्‍ण पक्ष की पूर्णमासी के बाद आती है, जिसे संकष्‍टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) कहा जाता है. वहीं, दूसरी चतुर्थी शुक्‍ल पक्ष की अमावस्‍या के बाद आती है. इसे विनायक चतुर्थी कहते हैं. वैसे तो हर महीने संकष्‍टी चतुर्थी या संकट (Sankat) का व्रत किया जाता है लेकिन माघ महीने की संकट चतुर्थी का विशेष महत्‍व है. अगर संकष्‍टी चतुर्थी मंगलार को पड़ती है तो उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं और इसे सबसे शुभ माना जाता है. संकट का व्रत देश के कोने-कोने में विशेषकर महाराष्‍ट्र और तमिलनाडु में रखा जाता है. 

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संकष्‍टी चतुर्थी कब है?
वैसे तो हर महीने संकष्‍टी चतुर्थी आती है, लेकिन माघ महीने की कृष्‍ण पक्ष चतुर्थी का महात्‍म्‍य सबसे ज्‍यादा माना गया है. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक इस बार माघ संकष्‍टी चतुर्थी 24 जनवरी को है. 

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संकष्‍टी चतुर्थी की तिथि और शुभ मुहूर्त 
माघ कृष्‍ण संकष्‍टी चतुर्थी प्रारंभ:
23 जनवरी 2018 को रात 11 बजकर 59 मिनट से
माघ कृष्‍ण संकष्‍टी चतुर्थी समाप्‍त:  24 जनवरी 2018 को रात 08 बजकर 54 मिनट तक
चंद्रोदय का समय: 24 जनवरी 2018 को रात 08 बजकर 02 मिनट

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संकष्‍टी चतुर्थी का महत्‍व
संकष्‍टी चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाली चतुर्थी. इस दिन सभी दुखों को खत्म करने वाले गणेश जी का पूजन और व्रत किया जाता है. मान्‍यता है कि जो कोई भी पूरे विधि-विधान से पूजा-पाठ करता है उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं.

संकष्‍टी चतुर्थी की पूजा विधि 
- संकष्‍टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्‍नान कर लें. 
- अब उत्तर दिशा की ओर मुंह कर भगवान गणेश की पूजा करें और उन्‍हें जल अर्पित करें. 
- जल में तिल मिलाकर ही अर्घ्‍य दें. 
- दिन भर व्रत रखें. 
- शाम के समय विधिवत् गणेश जी की पूजा करें. 
- गणेश जी को दुर्वा या दूब अर्पित करें. मान्‍यता है कि ऐसा करने से धन-सम्‍मान में वृद्धि होती है.
- गणेश जी को तुलसी कदापि न चढ़ाएं. कहा जाता है कि ऐसा करने से वह नाराज हो जाते हैं. मान्‍यता है कि तुलसी ने गणेश जी को शाप दिया था
- अब उन्‍हें शमी का पत्ता और बेलपत्र अर्पित करें. 

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- तिल के लड्डुओं का भोग लगाकर भगवान गणेश की आरती उतारें. 
- अब पानी में गुड़ और तिल मिलाकर चांद को अर्घ्‍य दें. 
- अब तिल के लड्डू या तिल खाकर अपना व्रत खोलें.
- इस दिन तिल का दान करना चाहिए.
- इस दिन जमीन के अंदर होने वाले कंद-मूल का सेवन नहीं करना चाहिए. यानी कि मूली, प्‍याज, गाजर और चुकंदर न खाएं.