माघ पूर्णिमा: इस दिन पवित्र नदी में स्नान और दान का है विशेष महत्त्व

माघ पूर्णिमा: इस दिन पवित्र नदी में स्नान और दान का है विशेष महत्त्व

माघ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्त्व है. (फाइल फोटो)

माघ पूर्णिमा, जिसे माघी पूर्णिमा भी कहा जाता है, का हिन्दू धर्मग्रन्थों में बहुत ही धार्मिक महत्त्व बताया गया है. यूं तो प्रत्येक पूर्णिमा का अपना अलग-अलग माहात्म्य है, लेकिन माघ पूर्णिमा की बात सबसे निराली बतायी गई है. कहा जाता इस दिन उत्तर प्रदेश के प्रयाग यानी संगम की तट पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. इसलिए इस मौके पर यहां देश भर से लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और गंगा में स्नान कर दान-पुण्य करते हैं.
 

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मघा नक्षत्र से हुई माघ माह की उत्पत्ति
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ पूर्णिमा की उत्पत्ति मघा नक्षत्र से होती है. इसी महीने में देवता और पितरगण सदृश होते हैं. हिन्दू मान्यता में पितृगणों की श्रेष्ठता की अवधारणा को बहुत महत्त्व दिया जाता है. इस दिन पितरों के लिए तर्पण भी हज़ारों साल से चला आ रहा है. मानयता के अनुसार, इस दिवस को स्वर्ण, तिल, कम्बल, पुस्तकें, पंचांग, कपास के वस्त्र और अन्नादि दान करने से मनुष्य महाभागी बनता है.
 
मान्यता: माघ में नदी स्नान है पुण्यदायी
माना जाता है, माघ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व जल में स्वयं भगवान का तेज रहता है, जो पाप शमनकारी होता है. निर्णयसिन्धु ग्रन्थ में उल्लिखित है कि माघ महीने के दौरान मनुष्य को कम-से-कम एक बार किसी पवित्र नदी, विशेषकर गंगा में, स्नान अवश्य करना चाहिए. क्योंकि, भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें, लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है. इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है: मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्‌, अर्थात् ‘जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य नदी-स्नान करना चाहिए.’

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