क्या है तबलीगी जमात ? कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत? जानिए इससे जुड़ी ये अहम बातें

Tablighi Jamaat: कोरोनावायरस के चलते एक ओर जहां लोगों को अधिक भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाने से रोका जा रहा था वहीं उस दौरान यहां कई लोग इक्टठा हो रहे थे.

क्या है तबलीगी जमात ? कब और कैसे हुई इसकी शुरुआत? जानिए इससे जुड़ी ये अहम बातें

से 15 मार्च के बीच 2000 से अधिक लोग तबलीगी जमात में हिस्सा लेने पहुंचे थे.

नई दिल्ली:

राजधानी दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन स्थित मरकज (Markaz in Hazrat Nizamuddin) में 1 से 15 मार्च के बीच 2000 से अधिक लोग तबलीगी जमात (Tablighi Jamaat) में हिस्सा लेने पहुंचे थे. इसमें देश औऱ विदेश से कई लोग शामिल हुए थे, जबकि मरकज (Markaz) के आसपास और दिल्ली के करीब 500 से ज्यादा लोगों ने इसमें हिस्सा लिया था. कोरोनावायरस (Coronavirus) के चलते एक ओर जहां लोगों को अधिक भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाने से रोका जा रहा था वहीं उस दौरान यहां कई लोग इकट्ठा हो रहे थे. तबलीगी जमात का हिस्सा बनने वाले कई लोगों के कोरोनावायरस संक्रमित पाए जाने के बाद सरकार द्वारा कई जरूरी कदम उठाए गए हैं. क्या आप जानतें हैं कि तबलीगी जमात क्या है. 

दरअसल, मरकज़ का मतलब Center यानी केंद्र होता है और तबलीग का मतलब है अल्लाह और कुरान, हदीस की बात दूसरों तक पहुंचाना. वहीं जमात का मतलब ग्रुप से है. तबलीगी जमात यानी एक ग्रुप की जमात. तबलीगी मरकज का मतलब इस्लाम की बात दूसरे लोगों तक पहुंचाने का केंद्र हैं. 

यहां पढ़ें तबलीगी जमात से जुड़ी मुख्य बातें:

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1. तबलीगी जमात का मतलब है आस्था का प्रचार करने वालों की एक टोली
2. यह सुन्नी देओबंदी या वहाबी मुसलमानों की जमात है.
3. इसे मेवात के रहने वाले देओबंदी मौलाना मोहम्मद इलियास ने 1927 में शुरू किया था.
4. इसके गठन के दो दशक बाद यह मेवात के बाहर दूर-दूर तक फैल चुका है.
5. तबलीगी जमात का पहला जलसा 1941 में हुआ था, जिसमें 25,000 लोग शामिल हुए थे.
6. देश के बंटवारे के बाद 1947 में इसकी मेन ब्रांच पाकिस्तान के लाहौर में कायम हुई थी.
7. इस वक्त भारत के बाद बांग्लादेश में जमात का सबसे बड़ा संगठन है.
8. दुनिया के 100 से अधिक देशों में जमात काम करती है.
9. यूएस और ब्रीटेन में इनकी बड़ी उपस्थिति है, जहां भारतीयों लोगों की संख्या सबसे अधिक है.
10. यह लोग टोलियां बना कर मस्जिदों में रुकते हैं और उस इलाके के मुस्लमान को जम कर के उन्हें धार्मिक प्रवचन देते हैं.
11. ये लोग घर-घर जाकर मुसलमानों को नमाज पढ़ने, रोजा रखने, हज करने आदि के बारे में प्रेरित करते हैं और उन्हें अपनी जमात से जोड़ते हैं.
12. इनका शिया मुसलमानों, सूफी मुसलमानों और मजार पर जाने वाले सुन्नी मुसलमानों से बहुत मतभेद हैं.
13. इनका खुदा के अलावा मजार, पीर, इमाम आदि में कोई विश्वास नहीं होता. ये लोग गैर इस्लामी काम मानते हैं.