सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को मिली दफ्तर जाने की इजाजत, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 8 बड़ी बातें

आज जस्टिस संजय किशन कौल ने फैसला सुनाया है क्योंकि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई छुट्टी पर हैं. फैसले के वक्त जस्टिस जोसेफ भी मौजूद थे. फैसला तीनों जजों की सहमति से लिखा गया है.

नई दिल्ली: सीबीआई में रिश्वत कांड के बाद CBI चीफ आलोक वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि आलोक वर्मा अभी कोई नीतिगत फैसला नहीं ले सकते हैं. वह अपने दफ्तर जा सकते हैं. आपको बता दें कि सीबीआई में विवाद उस समय शुरू हुआ था जब सीबीआई के दूसरे नंबर के अधिकारी राकेश अस्थाना पर रिश्वत लेने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी. यह अपने आप में पहली बार था जब सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर पर सीबीआई ने ही केस दर्ज किया हो. लेकिन इस कार्रवाई के बाद राकेश अस्थाना ने भी चीफ पर 2 करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगा दिया. यह मामला मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप झेल रहे मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़ा था. इसके बाद दोनों अधिकारियों मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. फिलहाल इस मामले की सुनवाई अभी कोर्ट में है. आज जस्टिस संजय किशन कौल ने फैसला सुनाया है क्योंकि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई छुट्टी पर हैं. फैसले के वक्त जस्टिस जोसेफ भी मौजूद थे. फैसला तीनों जजों की सहमति से लिखा गया है.

8 बड़ी बातें

  1. सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा  को फिर से बहाल कर दिया और उन्हें ऑफिस आने की इजाजत दे दी.

  2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीवीसी एक्ट- DPSE एक्ट में विधायिका द्वारा संशोधन की जरूरत है. 

  3. ये पूरा मामला पीएम, विपक्ष के नेता, और मुख्य न्यायाधीश की सेलेक्ट कमेटी में जाएगा. यही समिति आगे का फैसला करेगी की आलोक वर्मा पद पर बने रहेंगे या नहीं. 

  4. समिति आलोक वर्मा के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग सीवीसी की रिपोर्ट को भी देखेगी.

  5. सेलेक्ट कमेटी एक हफ्ते के भीतर देखेगी कि आलोक वर्मा को हटाया जाए या नहीं. 

  6. तब तक आलोक वर्मा रोजाना के कामकाज में प्रशासनिक फैसले लेंगे.  पीएम की कमेटी एक हफ्ते के भीतर मीटिंग करेगी.

  7. सीबीआई निदेशक को ट्रांसफर पर भेजा जाना छुट्टी के समान नहीं है. संस्थान का मुखिया एक रोल मॉडल होना चाहिए. 

  8. सीबीआई की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए बना सेलेक्ट कमेटी की मंजूरी के बिना ट्रांसफर कानून के खिलाफ