आप' के 20 विधायक अयोग्य घोषित : क्या राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सिफारिश से बंधे हुए हैं? 10 बड़ी बातें

चुनाव आयोग ने भी साफ कहा है कि वह आम आदमी पार्टी के विधायकों के जवाब से संतुष्ट नहीं है. पिछले 2 सालों में उन्हें कई बार बात रखने का मौका दिया गया था.

आप' के 20 विधायक अयोग्य घोषित : क्या राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सिफारिश से बंधे हुए हैं? 10 बड़ी बातें

राष्ट्रपति कोविंद की ओर से सिफारिश मानने के बाद दिल्ली में 20 विधानसभा सीटों पर होंगे उपचुनाव

नई दिल्ली: अरविंद केजरीवाल सरकार के 20 विधायको को चुनाव आयोग ने अयोग्य घोषित करने की सिफारिश कर दी है. अब फैसला राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को करना है. वैसे तो सरकार पर कोई खतरा नहीं है लेकिन अगर चुनाव आयोग की ओर से भेजी गई सिफारिश को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मान लेते हैं तो उसके 20 विधायक लाभ के पद के मामले में अयोग्य घोषित हो जाएंगे. इसके बाद दिल्ली में 20 सीटों पर उपचुनाव तय हो जाएगा. इस फैसले के खिलाफ विधायकों ने तुरंत दिल्ली हाईकोर्ट में अपील भी की लेकिन वहां से उनको राहत नहीं मिली है. वहीं चुनाव आयोग ने भी साफ कहा है कि वह विधायकों के जवाब से संतुष्ट नहीं है पिछले 2 सालों में उन्हें कई बार बात रखने का मौका दिया गया था.

10 बड़ी बातें

  1. अरविंद केजरीवाल  सरकार के पास सदन में अभी 66 विधायक हैं जिसमें अगर 20 अयोग्य घोषित हो जाते हैं तो उसके विधायकों की संख्या 46 होगी. बहुमत के लिए 36 विधायक चाहिए.

  2. चुनाव आयोग ने अपनी  राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद  को भेजी अपनी सिफारिश में कहा है कि 13 मार्च 2015 से 8 सितंबर 2016 तक ये विधायक संसदीय सचिव के पद पर रहे हैं जो कि लाभ का पद है. इस लिहाज से उनको विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया जाए. 

  3. नियम के मुताबिक राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सिफारिश बंधे हैं. इसके मुताबिक विधायकों को अयोग्य करने के लिए अगर कोई अर्जी भेजी जाती है तो वह चुनाव आयोग को भेजते हैं इसके बाद चुनाव आयोग कि सिफारिश को वह मानते हैं.

  4. विधायकों के पास कोर्ट जाने का विकल्प है लेकिन वहां उनको राहत मिल जाएगी इसकी संभावनाएं कम ही हैं.

  5. संविधान के अनुच्छेद 102-1A के मुताबिक सांसद या विधायक किसी ऐसे पद पर नहीं रह सकते हैं जिसके लिए उन्हीं किसी तरह का वेतन, भत्ता या कोई और लाभ मिलता हो.

  6. अनुच्छेद 191-1A और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9A में भी विधायकों और सांसदों को इस तरह के पद से रोकने का प्रावधान है.

  7. इस विवाद की खास बात यह है कि बीजेपी के मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने ही संसदीव सचिव के पद की शुरुआत की थी और उन्होंने एक संसदीय सचिव नंद किशोर गर्ग को नियुक्त किया था. लेकिन इसी तरह के विवाद की आशंका चलते गर्ग ने इस्तीफा दिया.

  8. इसके बाद  कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार  ने भी 3 संसदीय सचिव नियुक्त किए. भाजपा और कांग्रेस के शासनकाल में कभी इस पर विवाद नहीं हुआ. लेकिन आम आदमी पार्टी ने तीन गुना संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर डाली.

  9. अगर दिल्ली में 20 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए तो यह एक तरह से लोकसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट होगा क्योंकि दिल्ली में कई राज्यों को लोग रहते हैं इससे जनता का मूंड भांपा जा सकता है.

  10. ये उपचुनाव बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के लिए अहम साबित होंगे. दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस के पास एक भी सीट नहीं है.