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पटना यूनिवर्सिटी चुनाव : कैसे मात दी छात्र जनता दल यूनाइटेड ने एबीवीपी को, क्या था प्रशांत किशोर का रोल; 10 बातें

हाल के वर्षों में सत्ता के गलियारे से सड़क तक एक छात्र संघ के चुनाव को लेकर ऐसा संघर्ष देखने को नहीं मिला.

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पटना यूनिवर्सिटी के छात्र संगठन चुनाव में छात्र जेडीयू को अध्यक्ष पद हासिल करने में सफलता मिली.
पटना:

बिहार में लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव के बाद सबसे ज़्यादा उत्सुकता पटना विश्वविद्यालय के परिणाम को लेकर थी. इसका एक बड़ा कारण इस चुनाव में जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर बनाम भाजपा और उनके संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का सीधा मुकाबला था. हाल के वर्षों में सत्ता के गलियारे से सड़क तक एक छात्र संघ के चुनाव को लेकर ऐसा संघर्ष देखने को नहीं मिला. लेकिन यह चुनाव प्रशांत किशोर ने कैसे अपने पक्ष में किया यह काफी रोचक रहा. इसे जानिए 10 प्रमुख पाइंट में -

जानिए क्‍या रही प्रशांत किशोर की रणनीति
  1. सबसे पहले पार्टी में शामिल होने के बाद प्रशांत किशोर पार्टी के छात्र समागम में शामिल हुए थे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी के कामकाज खासकर युवा और छात्र इकाई को मज़बूत करने का ज़िम्मा दिया.
  2. प्रशांत किशोर को इस बात का अंदाज़ा कुछ ही दिनों में चल गया था कि जितने छात्र उनके साथ नहीं हैं करीब उससे ज़्यादा गुट हैं. इसलिए पहले किसी को चुनौती देने के बजाय अपना घर सुधारना होगा.
  3. सबसे पहले प्रशांत किशोर ने पटना विश्वविद्यालय में पार्टी की छात्र इकाई के सभी गुटों के नेताओं को एक साथ बिठाकर उन्हें रणनीति तैयार करने का ज़िम्मा दिया. इसके बाद पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष दिव्यांशु को पार्टी में शामिल कराया जिससे थोड़ी जान आई. दिव्यांशु निर्दलीय अध्यक्ष पद का चुनाव जीते थे.
  4. इसके बाद सीटों के तालमेल के लिए एबीवीपी से बात करने की पहल हुई. लेकिन एक जमाने में भाजपा और उससे पूर्व एबीवीपी के नेता और अब जनता दल यूनाइटेड के विधान पार्षद रणवीर नंदन से किसी ने बातचीत करने की पहल भी नहीं की.
  5. जब एक बार साफ हो गया कि अब मुकाबला एबीवीपी से ही होगा तब छात्र जनता दल ने अधिकांश उम्मीदवार अगड़ी जाति के उतारे. लेकिन चुनाव जीतने के लिए इतना काफ़ी नहीं था.
  6. वह चाहे लालू यादव हों या अनिल शर्मा, पटना विश्वविद्यालय में जो भी चुनाव जीता इसमें महिला वोटर की सबसे निर्णायक भूमिका रही. इसलिए यहां पर सबसे ज़्यादा ध्यान केंद्रित कर चुनाव में प्रचार किया गया. इसका मतदान में फायदा मिला.
  7. जब चुनाव हिंसक हुआ और छात्र जनता दल यूनाइटेड के लोगों की एबीवीपी के समर्थकों ने बीच सड़क पर पिटाई की तब पटना पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. इसका प्रतिकूल असर एबीवीपी विरोधियों पर हो रहा था. लेकिन एक बार पुलिस द्वारा आरोपियों की धरपकड़ होने लगी और एबीवीपी के दफ़्तर पर छापेमारी हुई तो उसके बाद भाजपा हरकत में आई.
  8. एक बार भाजपा विधायक खुलकर सामने आ गए और प्रशांत किशोर को उन्होंने निशाने पर रखकर बयान देना शुरू किया. इसके बाद पूरा चुनाव प्रशांत किशोर बनाम भाजपा हो गया. इसका एक असर ये हुआ कि चुनाव में भाजपा जिताओ और भाजपा हराओ वाला माहौल बना. वामपंथी छात्र संगठन के उम्मीदवार को अपने कैडर के अलावा अन्य छात्रों के वोट उम्मीद से कम मिले.
  9. पहली बार उन छात्रों ने जो नीतीश कुमार को भाजपा के सामने कमज़ोर मानते थे, जनता दल यूनाइटेड के आक्रामक रुख को देखकर अपना पाला बदला.
  10. सबसे ज़्यादा निर्णायक भूमिका निभाई दलित छात्रों ने, जिनका भाजपा और एबीवीपी से विरोध है. वे खुलकर जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार के समर्थन में अंतिम समय में आ गए क्योंकि भाजपा के कई विधायक प्रशांत किशोर को मुद्दा बनाकर उनकी गिरफ़्तारी के लिए धरने पर बैठ चुके थे.

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