राफेल पर तकरार: फ्रांस्वा ओलांद के खुलासे के बाद कांग्रेस और मोदी सरकार के बीच जुबानी जंग शुरू, 15 प्वाइंट्स में जानें पूरा विवाद

राफेल सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के दावे के बाद भारी राजनीतिक विवाद पैदा होने पर सरकार ने शनिवार को कहा कि दसाल्ट के लिए साझेदार के तौर पर रिलायंस डिफेंस का चयन करने में उसकी ‘कोई भूमिका’ नहीं थी.

राफेल पर तकरार: फ्रांस्वा ओलांद के खुलासे के बाद कांग्रेस और मोदी सरकार के बीच जुबानी जंग शुरू, 15 प्वाइंट्स में जानें पूरा विवाद

Rafale Deal: राफेल पर मोदी सरकार और कांग्रेस के बीच घमासान जारी

नई दिल्ली: राफेल सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के दावे के बाद भारत में सियासी घमासान जारी है. राफेल सौदे को लेकर भारी राजनीतिक विवाद पैदा होने पर सरकार ने शनिवार को कहा कि दसाल्ट के लिए साझेदार के तौर पर रिलायंस डिफेंस का चयन करने में उसकी ‘कोई भूमिका’ नहीं थी. फ्रांस ने भी कहा कि इस सौदे के लिए किसी भारतीय औद्योगिक सहयोगी के चयन में वह किसी भी तरह शामिल नहीं था. उधर, राफेल विनिर्माता दसाल्ट एविएशन ने स्पष्ट किया है कि ऑफसेट की शर्तों को पूरा करने के लिए रिलायंस डिफेंस लिमिटेड से साझेदारी का फैसला उसका अपना था. हालांकि, फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद जहां एक ओर कांग्रेस मोदी सरकार पर आरोप लगा रही है, वहीं मोदी सरकार इस मामले में अपनी भूमिका से इनकार कर रही है. राफेल सौदे पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान को लेकर सरकार पर राहुल गांधी के वार पर पलटवार करते हुए भाजपा ने कांग्रेस को ‘‘भ्रष्टाचार की जननी’’ करार दिया और आरोप लगाया कि संप्रग शासन के दौरान बाहरी कारणों से राफेल सौदे को अंतिम रूप नहीं देने का दबाव था. वहीं राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा है कि फ्रांस्वा ओलांद जो कह रहे हैं उसका मतलब यह है कि भारत के प्रधानमंत्री चोर हैं.

राफेल सौदे पर कांग्रेस और मोदी सरकार के बीच शुरू हुए महाभारत से जुड़ी अहम बातें

  1. दरअसल, फ्रांसीसी खबरिया वेबसाइट ‘मीडियापार्ट’ में पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हवाले से कहा गया कि 58,000 करोड़ रुपए के राफेल करार में दसाल्ट एविएशन के लिए साझेदार के तौर पर रिलायंस डिफेंस के नाम का प्रस्ताव भारत सरकार ने ही रखा था और फ्रांस के पास कोई अन्य विकल्प नहीं था.  इस बीच, एएफपी ने खबर दी है कि कनाडा में शुक्रवार को एक बैठक के मौके पर ओलांद ने उससे (एएफपी से) कहा कि फ्रांस ने ‘किसी भी तरह से रिलायंस को नहीं चुना.’ उनसे पूछा गया था कि क्या भारत ने रिलायंस और दसाल्ट पर साथ मिलकर काम करने का दबाव डाला था. इस पर, ओलांद ने कहा कि उन्हें इस संबंध में कुछ नहीं पता है और केवल दसाल्ट ही इस पर टिप्प्णी कर सकती है.

  2. वहीं, एनडीटीवी की खबर की मानें तो ओलांद के कार्यालय ने कहा है कि वह मीडियापार्ट में छपे अपने बयान पर अडिग हैं.  जब इस सौदे की घोषणा हुई थी तब ओलांद फ्रांस के राष्ट्रपति थे. ओलांद के बयान ने विपक्ष को नया हथियार दे दिया. 

  3. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा प्रहार किया और आरोप लगाया कि बयान दर्शाता है कि इस सौदे में ‘स्पष्ट तौर पर भ्रष्टाचार’ हुआ है और उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि क्या पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति झूठ बोल रहे हैं. गांधी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘अब, फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति जो कुछ कह रहे हैं, वह यह है कि भारत के प्रधानमंत्री ‘चोर’ हैं। एक तरह से उनके बयान का यही मतलब निकल रहा है.’ कांग्रेस अध्यक्ष ने मोदी से इस मुद्दे पर पाक-साफ होकर सामने आने को कहा.

  4. मिस्र के दौरे पर गईं रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने गांधी पर ‘झूठ दोहराने' का आरोप लगाया और मोदी के खिलाफ 'शर्मनाक और अपमानजनक भाषा' का इस्तेमाल करने के लिए उनकी आलोचना की. उन्होंने कहा, “वह सत्ता से बेदखल होने की अपनी हताशा को दर्शा रहे हैं. हमारी सरकार में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है. 

  5. राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मोदी के विरुद्ध गांधी के बयान को ‘शर्मनाक और गैर जिम्मेदाराना’ करार दिया और कहा कि किसी भी पार्टी के अध्यक्ष ने किसी प्रधानमंत्री के विरुद्ध कभी ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया. प्रसाद ने राफेल सौदे पर ओलांद के दावे को भी खारिज कर दिया और कहा कि पता नहीं किस मजबूरी में उन्होंने ऐसा कहा. 

  6. इस बीच, नाराज भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने भी नागपुर में कहा कि केंद्र सरकार को राफेल जेट विमान सौदे पर पाक साफ होकर सामने आना चाहिए. ओलांद के हवाले से आए सनसनीखेज बयान से इस विवाद में एक नया मोड़ आ गया.  वैसे भारत सरकार अब तक कहती रही है कि उसे आधिकारिक रूप से इस बात की जानकारी नहीं थी कि दसाल्ट एविएशन ने इस करार की ऑफसेट शर्त को पूरा करने के लिए भारतीय साझेदार के तौर पर किसे चुना है. विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि सरकार आरडीएल का पक्ष ले रही है.

  7. मीडियापार्ट’ ने अपनी एक खबर में ओलांद के हवाले से कहा था, ‘भारत सरकार ने इस सेवा समूह का प्रस्ताव किया था और दसाल्ट ने अंबानी से बातचीत की थी.  हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, हमने उस वार्ताकार को अपनाया जो हमें दिया गया था.’ दसाल्ट और आरडीएल राफेल सौदे के तहत एयरोस्पेस उपकरणों को बनाने और ऑफसेट की शर्तों को पूरा करने के लिए पहले ही संयुक्त उपक्रम की घोषणा कर चुकी हैं.    भारत की ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा कंपनियों को कुल अनुबंध मूल्य का कम से कम 30 फीसदी हिस्सा भारत में खर्च करना होता है. यह खर्च उपकरणों की खरीद या अनुसंधान एवं विकास सुविधाओं की स्थापना के मद में करना होता है.

  8. रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा,‘सरकार ने इससे पहले भी कहा था और एक बार फिर दोहरा रही है कि ऑफसेट साझेदार के तौर पर रिलायंस डिफेंस के चयन में उसकी कोई भूमिका नहीं थी.’ उसने यह भी कहा कि मीडिया में आए ओलांद के बयान को पूरे संदर्भ में देखने की जरूरत है जहां फ्रांसीसी मीडिया ने पूर्व राष्ट्रपति के करीबियों के संबंध में हितों के टकराव के मुद्दे उठाए हैं. इसे हाल की एक मीडिया की इस खबर के संदर्भ में देखा जा रहा है जिसमें राफेल सौदे और ओलांद की पार्टनर जूली गायेट की फिल्म के बीच संबंध बताया गया है.

  9. इस खबर में कहा गया है कि राफेल सौदा होने से पहले अंबानी की रिलायंस एंटरटेनमेंट ने एक फिल्म के प्रोडक्शन के लिए गायेट के साथ करार किया था. रक्षा मंत्रालय ने कहा, ‘संयोग से फरवरी, 2012 में छपी खबर बताती है कि पिछली सरकार द्वारा 126 विमानों की खरीद के लिए सबसे कम मूल्य की बोली लगाने वाली घोषित होने के दो हफ्ते के अंदर ही दसाल्ट एविएशन ने रक्षा के क्षेत्र में रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ साझेदारी के लिए करार किया था.’

  10. पिछली संप्रग सरकार 126 राफेल जेट विमानों की खरीद के लिए दसाल्ट के साथ बातचीत कर रही थी जिसके तहत 18 जेट पूरी तरह उड़ान भरने की स्थिति में आने थे और 108 विमान फ्रांसीसी कंपनी को भारत में एचएएल के साथ मिलकर बनाने थे. लेकिन संप्रग सरकार यह सौदा कर नहीं पायी. फ्रांस सरकार ने एक बयान में कहा, ‘फ्रांसीसी कंपनियों की ओर से चुने गए / चुने जा रहे या चुने जाने वाले भारतीय औद्योगिक साझेदारों के चयन में फ्रांसीसी सरकार किसी भी तरीके से शामिल नहीं रही है.’ 

  11. दसाल्ट ने कहा कि उसने ‘मेक इन इंडिया’ नीति के अनुसार रिलायंस डिफेंस के साथ साझेदारी करने का निर्णय लिया. फ्रांसीसी कंपनी ने कहा, ‘रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2016 के नियमन के अनुसार इस ऑफसेट अनुबंध का पालन किया गया. इस ढांचे में और ‘मेक इन इंडिया’ नीति के अनुसार, दसाल्ट एविएशन ने भारत के रिलायंस समूह के साथ साझेदारी का फैसला किया है. यह दसाल्ट एविएशन की पसंद है.’ 

  12. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल 2015 को पेरिस में फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद के साथ वार्ता करने के बाद 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद की घोषणा की थी. यह सौदा अंतत: 23 सितंबर, 2016 को हुआ. कांग्रेस राफेल सौदे में बड़े पैमाने पर अनियमितता का आरोप लगाती रही है. कांग्रेस का आरोप है कि उसकी अगुवाई वाली पिछली संप्रग सरकार जब इस सौदे के लिए बातचीत कर रही थी तो प्रत्येक राफेल विमान की कीमत 526 करोड़ रुपए तय हुई थी, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार 1,670 करोड़ रुपए प्रति विमान की दर से राफेल खरीद रही है. 

  13. विपक्षी दलों का यह भी आरोप है कि 2015 में राफेल सौदे की घोषणा से महज 12 दिन पहले रिलायंस डिफेंस बनी. रिलायंस ग्रुप ने आरोपों को खारिज किया है.     कांग्रेस सरकार से इस बात का जवाब मांग रही है कि सरकारी कंपनी एचएएल को इस करार में शामिल क्यों नहीं किया जैसा कि संप्रग के समय तय हुआ था.

  14. शनिवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल सौदे पर ट्वीट कर कहा, 'प्रधानमंत्री मोदी और अनिल अंबानी ने संयुक्त रूप से रक्षा बलों पर एक लाख 30 हजार करोड़ की 'सर्जिकल स्ट्राइक' की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपने हमारे जवानों की शहादत का अपमान किया, आपने भारत की आत्मा से धोखा किया है.'
     

  15. राफेल के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल ने भी मोदी सरकार पर हमला बोला और ट्वीट किया, ‘राफेल सौदे पर अहम तथ्यों को छिपाकर क्या मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल रही है? मोदी सरकार अब तक जो कहती आ रही है, पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति का बयान बिल्कुल उसके उलट है. क्या देश को और धोखा दिया जा सकता है.’ अरविंद केजरीवाल ने एक और ट्वीट किया- प्रधानमंत्री जी सच बोलिए. देश सच जानना चाहता है. पूरा सच. रोज़ भारत सरकार के बयान झूठे साबित हो रहे हैं. लोगों को अब यक़ीन होने लगा है कि कुछ बहुत ही बड़ी गड़बड़ हुई है, वरना भारत सरकार रोज़ एक के बाद एक झूठ क्यों बोलेगी?