Rafale Deal: शुरू से विवादों में रही है राफेल डील, 15 प्वाइंट्स में जानें कब क्या हुआ

Rafale Deal: फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने एक फ़्रेंच अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि रिलायंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था. इस बयान से विपक्ष के आरोपों को बल मिला.

Rafale Deal: शुरू से विवादों में रही है राफेल डील, 15 प्वाइंट्स में जानें कब क्या हुआ

वाजपेयी सरकार ने लड़ाकू विमानों को खरीदने का प्रस्ताव रखा था.

नई दिल्ली : राफेल डील (Rafale Deal) को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के खुलासे के बाद मचे घमासान के बीच फ्रांस सरकार और डसॉल्ट एविएशन का भी बयान आ गया है. एक तरीके से दोनों ने ओलांद के बयान से किनारा कर लिया है. फ्रांस सरकार ने कहा है कि इस सौदे के लिए भारतीय औद्योगिक साझेदारों को चुनने में फ्रांस सरकार की कोई भूमिका नहीं थी. तो दूसरी तरफ राफेल विमानों की निर्माता डसॉल्ट एविएशन ने कहा है कि डसॉल्ट ने खुद रिलायंस ग्रुप के साथ साझीदारी करने का फैसला किया था. दरअसल, फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने एक फ़्रेंच अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि रिलायंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था. उनके इस बयान से विपक्ष के आरोपों को बल मिला और विपक्ष सरकार पर हमलावर है. आइये आपको बताते हैं राफेल डील की शुरू से अब तक की पूरी कहानी. 

राफेल डील की पूरी कहानी

  1. लड़ाकू विमानों को खरीदने की पहल पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी. भारत को सुरक्षा के मोर्चे पर पड़ोसी देशों से मिल रही चुनौतियों के बीच वाजपेयी सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का प्रस्ताव रखा. हालांकि यह प्रस्ताव कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में परवान चढ़ा. 

  2. तमाम विचार-विमर्श के बाद अगस्त 2007 में यूपीए सरकार में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी की अगुवाई वाली रक्षा खरीद परिषद ने 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को मंजूरी दे दी. फिर बिडिंग यानी बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई और अंत में लड़ाकू विमानों की खरीद का आरएफपी जारी कर दिया गया.

  3. लड़ाकू विमानों की रेस में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्‍ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे, लेकिन बाजी डसाल्ट एविएशन के राफेल ने मारी. 

  4. रिपोर्ट्स की मानें तो राफेल की कीमत दौड़ में शामिल अन्य सड़ाकू विमानों की तुलना में काफी कम थी और इसका रख-रखाव भी काफी सस्‍ता था. जिसकी वजह से डील राफेल के पाले में गई. उसके बाद भारतीय वायुसेना ने कई विमानों का तकनीकी परीक्षण और जांच किया. यह प्रक्रिया साल 2011 तक चलती रही. 

  5. 2011 में वायुसेना ने जांच-परख के बाद कहा कि राफेल विमान उसके पैरामीटर पर खरे हैं. अगले साल यानी 2012 में राफेल को बिडर घोषित किया गया और इसके उत्पादन के लिए डसाल्ट ए‍विएशन के साथ बातचीत शुरू हुई. हालांकि तमाम तकनीकी व अन्य कारणों से यह बातचीत 2014 तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. 

  6. तमाम रिपोर्ट्स के मुताबिक 2012 से 2014 के बीच बातचीत किसी नतीजे पर न पहुंचने की सबसे बड़ी वजह थी विमानों की गुणवत्ता का मामला. कहा गया कि डसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी. साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भी एकमत वाली स्थिति नहीं थी.

  7. मामला यहीं अटका रहा और साल 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद राफेल (Rafale Deal) पर फिर चर्चा शुरू हुई. 2015 में पीएम मोदी फ्रांस गए और उसी दौरान राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर समझौता किया गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक समझौते के तहत भारत ने जल्द से जल्द उड़ान के लिए तैयार 36 राफेल लेने की बात की थी. 

  8. नए सिरे से हुए समझौते में यह बात भी थी कि भारतीय वायु सेना को उसकी जरूरतों के मुताबिक तय समय सीमा (18 महीने) के भीतर विमान मिलेंगे. साथ ही लंबे समय तक विमानों के रख-रखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी. आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ.

  9. विपक्ष, खासकर कांग्रेस नए समझौते के बाद से ही सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस का विरोध दो बिंदुओं पर है. पहला, कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यूपीए ने 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये में सौदा पटाया था. अब मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ रुपये रही है.

  10. कांग्रेस का आरोप है कि नए समझौते के तहत एक राफेल विमान 1555 करोड़ रुपये का पड़ रहा है. जबकि कांग्रेस ने 428 करोड़ रुपये में डील तय की थी. कांग्रेस का इस डील में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को शामिल करने का भी विरोध कर रही है. पार्टी का कहना है कि सरकारी कंपनी HAL की जगह जानबूझ कर रिलायंस को डील में शामिल किया गया.

  11. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आरोप लगाते रहे हैं कि खुद पीएम मोदी ने जानबूझ कर रिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए डील (Rafale Deal) के साथ छेड़छाड़ की. तो दूसरी तरफ, भाजपा तमाम आरोपों को नकारती रही है. 

  12. इस दौरान यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी भी राफेल डील मामले में सरकार के विरोध में उतर आए. उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर दावा किया कि रिलायंस को फायदा पहुंचाने के मकसद से डील में बदलाव किया गया. उन्होंने प्रधानमंत्री पर सीधे-सीधे सवाल खड़े किए. 

  13. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने शनिवार को दावा किया कि राफेल लड़ाकू विमान सौदा ‘‘इतना बड़ा घोटाला है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते’’. उन्होंने आरोप लगाया कि ऑफसेट करार के जरिये अनिल अम्बानी के रिलायंस समूह को ‘‘दलाली (कमीशन)’’ के रूप में 21,000 करोड़ रुपये मिले. 

  14.  इस बीच एडवोकेट एम एल शर्मा ने राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. याचिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहला प्रतिवादी बनाया गया है और डील को रद्द करने और FIR दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की मांग की गई है. याचिका पर अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होनी है. 

  15. राफेल डील (Rafale Deal) पर मचे घमासान के बीच अब फ्रांस्वा ओलांद ने नया खुलासा किया है. फ़्रेंच अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था. हालांकि फ्रांस सरकार और डसाल्ट ने इससे किनारा किया है, लेकिन विपक्ष के आरोपों को बल मिल गया है.