यह ख़बर 26 अगस्त, 2012 को प्रकाशित हुई थी

एके हंगल : आखिर तक रहा अभिनय के लिए जुनून...

खास बातें

  • एके हंगल जब 50 वर्ष के थे, तब उन्होंने पहली बार कैमरे का सामना किया। 96 वर्ष की उम्र में उन्होंने व्हीलचेयर पर बैठकर फैशन परेड की। 97 वर्ष की उम्र में उन्होंने एनिमेटेड फिल्म में अपनी आवाज दी और एक टीवी शो में हिस्सा लिया।
मुम्बई:

एके हंगल जब 50 वर्ष के थे, तब उन्होंने पहली बार कैमरे का सामना किया। 96 वर्ष की उम्र में उन्होंने व्हीलचेयर पर बैठकर फैशन परेड की। 97 वर्ष की उम्र में उन्होंने एनिमेटेड फिल्म में अपनी आवाज दी और एक टीवी शो में हिस्सा लिया। इस तरह हंगल ने अंतिम सांस तक फन के प्रति अपना जुनून मरने नहीं दिया। उस समय भी जब वह घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे थे।

'एक बार अभिनेता बने, तो हमेशा के लिए अभिनेता बन गए' नामक मुहावरे को चरितार्थ करने वाले हंगल लम्बी बीमारी के बाद रविवार को दुनिया के इस रंगमंच से हमेशा के लिए चले गए। वह 97 वर्ष के थे।

हंगल ने मई में जब 'मधुबाला' नामक टीवी शो में एक किरदार के लिए सहमति दी थी, तब उन्होंने कहा था, "मैं मानता हूं कि काम करने की कोई उम्र सीमा नहीं होती।" वह उस समय भी बीमार थे, लेकिन हार मानने को तैयार नहीं थे।  

चार दशक से अधिक के करियर में 200 से अधिक फिल्मों में भूमिका निभाने के बाद भी हंगल तंगी का जीवन जी रहे थे, और यह बात 2011 में प्रकाश में आई।

हंगल के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था और उनके एकमात्र पुत्र विजय, जो खुद 70 के पार थे, को पीठ की बीमारी के कारण काम छोड़ना पड़ा था। स्थिति यह हो गई थी कि दवा का खर्च उठाना उनके लिए भारी था। लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी हंगल ने न तो हार मानी और न किसी से आर्थिक मदद चाही। तो यह थी उनकी जीजीविशा... और उनका स्वाभिमान।

फिलहाल पाकिस्तान में स्थित सियालकोट में पैदा हुए हंगल ने अपना अधिकांश बचपन पेशावर में बिताया था। वह एक दर्जी के रूप में बड़े हुए, लेकिन रंगमंच के जरिए उन्होंने अपनी प्यास बुझाई।

कहा जाता है कि विभाजन के बाद वह 1949 में मुम्बई चले आए। वह वामपंथ से सम्बद्ध पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) से जुड़े हुए थे, उस इप्टा से जिसने बलराज साहनी, उत्पल दत्त, कैफी आजमी और कई अन्य को भी आकर्षित किया।

हंगल ने 1966-67 में हिंदी फिल्मों में प्रवेश किया। उनकी शुरुआती फिल्मों में 'तीसरी कसम' और 'शागिर्द' शामिल हैं।

एक अभिनेता के रूप में सिनेमा के साथ उन्होंने अपनी शुरुआत 50 की उम्र में की थी, इसलिए भूमिकाओं के लिहाज से उनके पास बहुत विकल्प नहीं बचे थे। लेकिन उन्होंने खुशी-खुशी और पूरी जिम्मेदारी के साथ नायक और नायिकाओं के चाचा, पिता और दादा की भूमिकाएं निभाई।

चरित्र अभिनेता के रूप में उन्हें 'शोले' में रहीम चाचा की भूमिका के लिए याद किया जाता है। उनकी कुछ यादगार फिल्मों में 'नमक हराम', 'शोले', 'बावर्ची', 'छुपा रुस्तम', 'अभिमान' और 'गुड्डी' शामिल हैं। और, 'शौकीन' में भला उनकी भूमिका को कौन भूल सकता है, जिसमें उन्होंने एक सेवानिवृत्त बूढ़े व्यक्ति की भूमिका निभाई थी।

हंगल की अधिकांश फिल्में देश के प्रथम सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ थीं, जिनका हाल ही में 18 जुलाई को निधन हो गया। हंगल ने राजेश खन्ना के साथ 'आपकी कसम', 'अमरदीप', 'फिर वही रात' और 'सौतेला भाई' में काम किया था।

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हंगल इस समय अपने पुत्र विजय के साथ सांताक्रूज स्थित एक फ्लैट में रहते थे। वह आमिर खान की 'लगान' (2001) और शाहरुख खान की 'पहेली' (2006) में भी दिखे थे।