खास बातें
- खुले में शौच पर है फिल्म
- अक्षय फिल्मों से दे रहे संदेश
- महिलाओं की बात फिल्म में की गई है
नई दिल्ली: ‘टॉयलेटः एक प्रेम कथा’ सिर्फ फिल्म नहीं बल्कि सामाजिक संदेश भी अपने में समेटे हुए है. डायरेक्टर श्री नारायण सिंह की ये डेब्यू फिल्म है लेकिन उन्होंने मंजे हुए डायरेक्टर की तरह अपने हाथ दिखाए हैं. उन्होंने फिल्म में डायलॉग के महत्व को समझा है और उन्हें ऐसा बनाया है जो दर्शकों से आसानी से कनेक्ट करने का काम करते हैं. हल्के-फुल्के अंदाज में डायलॉग के जरिये गहरी बात कही गई है. टॉयलेट में भी ऐसे ढेरों संवाद हैं जो जेहन में बस जाते हैं. आइए एक नजर डालते हैं इन परः
यह भी देखें: Movie Review: दिल की कम सरकार की बात ज्यादा है 'टॉयलेट एक प्रेम कथा'
अक्षय कुमार उर्फ केशव अपनी गर्लफ्रेंड से ब्रेकअप के दौरान अपना ऊसूल बताता है
“पराया टीवी और पराई बीवी कभी ऑन न करना”
केशव की जया (भूमि पेडणेकर) से पहली मुलाकात होती है तो वे कहते हैः
“बदतमीज कह दो मैडम...भाई साहब न कहो प्लीज”
केशव अपने पिता से घर में संडास बनाने के लिए कहता है तो उनका जवाब होता हैः
“जिस आंगन में तुलसी लगती है वहां शौच करना शुरू कर दें”
जया टॉयलेट की अपनी मांग पर अड़ जाती है तो केशव और उसका भाई कहता हैः
“उन्होंने तो मेरी किस्मत गुसलखाने में लिखी होगी, और ऊपर से फ्लश और कर दिया”
केशव जब अपने हालात से थकने लगता है तो कहता हैः
“बीवी पास चाहिए तो घर में संडास चाहिए”