फिल्‍म रिव्‍यू: एक महिला के संघर्ष की दमदार कहानी है स्‍वरा भास्‍कर की 'अनारकली ऑफ आरा'

फिल्‍म रिव्‍यू: एक महिला के संघर्ष की दमदार कहानी है स्‍वरा भास्‍कर की 'अनारकली ऑफ आरा'

खास बातें

  • बेहतरीन विषय और डायलॉग्‍स ने बनाया फिल्‍म को मजेदार
  • स्‍वरा भास्‍कर, संजय मिश्रा जैसे कलाकारों ने मनवाया अपनी एक्टिंग का लोहा
  • हमारी तरफ से इस फिल्‍म को मिलते हैं 3.5 स्‍टार्स
नई दिल्‍ली:

शुक्रवार को निर्देशक अविनाश दास की पहली फिल्‍म 'अनारकली ऑफ आरा' रिलीज हुई है. इस फिल्‍म का निर्देशन और इसकी कहानी दोनों ही अविनाश दास ने ही लिखी है. इस फिल्‍म में स्‍वरा भास्‍कर अनारकली के मुख्‍य किरदार में हैं. स्‍वरा के अलावा संजय मिश्रा, पंकज त्रिपाठी, इश्तियाक खान और विजय इस फिल्‍म में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इस फिल्‍म में अनारकली आरा की रहने वाली एक नाचने-गाने वाली लड़की है और वो रंगीला डान्स पार्टी मैं नाच गा कर अपनी जीविका चलाती है. अनारकली अपने इलाके में काफी जानी जाती हैं और उनके कदरदानों की लिस्‍ट में सामान्‍य लोगों से लेकर इलाके के रसूखदार लोग तक शामिल हैं. लेकिन अनारकली के लिए मुश्किल तब खड़ी होती है जब इलाके की एक बड़ी शख्सियत अनारकली के हुनर का नहीं बल्कि उसकी खूबसूरती का दीवाना बन जाता है. अब इसके बाद अनारकली के लिए क्‍या परेशानियां खड़ी होती हैं और आखिर क्‍या कहती है यह कहानी यह देखने आपको ही सिनेमाघरों तक जाना होगा. इससे पहले मैं आपको इस फिल्‍म की कुछ खामियों और खूबियों पर नजर डाल लें.

खामियों की बता करें तो मुझे लगता है की फिल्‍म के किरदारों को सेट करने में काफी वक्‍त ले लिया गया है. जैसे फिल्‍म की शुरुआत में काफी लंबे समय तक गाना बजाना होता है. साथ ही अनारकली की शोहरत, उसके आस पास के किरदार और उसके कद्रदानों के किरदारों को खड़ा करने में काफी लंबा समय लिया गया है जिससे फिल्‍म की शुरुआत धीमी पड़ जाती है. साथ ही शुरुआत में स्‍क्रीनप्‍ले थोड़ा बिखरा लगता है. इस फिल्‍म का आधार बिहार का बनाया गया है इसलिए हो सकता है कि कुछ दर्शकों को भाषा या यहां के हास्‍य भाव को समझने में थोड़ी परेशानी आए.

वहीं इस फिल्‍म की खूबियों की बात करें तो इसकी सबसे बड़ी ताकत है इसका विषय, इसकी कहानी , इसकी स्क्रिप्ट और इसके डाइयलॉग. साथ ही जब ये सब बिहार की पृष्ठभूमि पर घटित होता है तो इसमें मनोरंजन का तड़का और मजबूत हो जाता है. हालांकि स्क्रीन्प्ले में थोड़ा झोल है लेकिन फिल्‍म का संगीत और कलाकारों का अभिनय आपको इसका अहसास होने नहीं देता. फिल्‍म का हर ऐक्टर अपनी कसौटी पर खरा उतरता है और उनका अभिनय दृश्यों में दम भर देता है. स्वरा भास्‍कर का बेहतरीन अभिनय उनसे आपको नजरें हटाने नहीं देगा, वहीं इश्तियाक खान अपने हर सीन में बाजी मार ले जाते हैं.

संजय मिश्रा बेजोड़ ऐक्टर हैं और उन्होंने एक बार फिर साबित किया है कि फिल्‍म इंडस्ट्री को उन्हें कॉमेडी से हट कर भी देखना चाहिए. इस फिल्‍म में जहां एक संदेश है वहीं इसमें कई सीन्‍स में ह्युमर भी है. हालांकि यह फिल्‍म भी 'पिंक' की तरह ही यही संदेश देती है कि 'न का मतलब न होता है' और बिना मर्जी के जोर जबरदस्ती गलत है. यह एक अच्‍छी फिल्‍म है जिसे देखना चाहिए. इस फिल्‍म के लिए मेरी रेटिंग है 3.5 स्टार्स.


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