फिल्म 'एक हसीना थी, एक दीवाना था' का एक सीन.
खास बातें
- इस फिल्म से 10 साल बाद बतौर निर्देशक सुनील दर्शन की वापसी
- अपने बेटा शिव दर्शन को इस फिल्म से फिर से ला रहे हैं बॉलीवुड में
- 'एक हसीना था एक दीवाना था' को मिलता है 1 स्टार
नई दिल्ली: फिल्म 'एक हसीना थी एक दीवाना था' की कहानी एक ऐसे जोड़े की है, जिसकी 1 महीने बाद शादी होने वाली है. ये शादी के लिए यूरोप के सुन्दर मेन्शन में पहुंचते हैं जो नताशा की नानी का दिया हुवा है. मगर यहां पहुंचने के बाद नताशा को लगता है कि वो पहले भी इस घर में आ चुकी है. जबकि वह पहली बार इस घर में आई है. तभी देव नाम के एक लड़के से नताशा की मुलाकात होती है और देव ये यकीन दिलाता है कि वो नताशा से प्यार करता है और उसका ये प्रेम 55 साल पुराना है. दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ता है और फिर शुरू होते हैं ट्विस्ट एंड टर्न्स.
इसे एक लव ट्राएंगल कहानी कह सकते हैं और इसकी खूबियों में सबसे पहले है इसका संगीत जो 90 के दशक की याद दिलाता है. दरअसल इसे संगीत उसी दशक के संगीतकार नदीम ने दिया है. फिल्म की फोटोग्राफी अच्छी है और परदे पर काफी अच्छे अच्छे दृश्य दिखाई देते हैं.
किसी हद तक फिल्म की कहानी भी 90 के दशक की याद दिलाती है जब अक्सर त्रिकोणीय प्रेम कहानी ऐसे संगीत और दृश्यों के साथ बनाई जाती थीं, लेकिन 'एक हसीना था एक दीवाना था' की कहानी बहुत ही कमजोर पड़ गई. इसकी पटकथा एकदम बचकानी लगती है और ऐसा लगता है कि कैसे और क्यों हो रहा है ये सबकुछ. फिल्म का क्लाइमेक्स तो बेहद ही बचकाना लगने लगता है.
करीब 10 साल बाद बतौर निर्देशक सुनील दर्शन वापसी कर रहे हैं वही बतौर अभिनेता उनका बेटा शिव दर्शन भी फिल्म 'कर ले प्यार करले' की असफलता के 3 साल बाद दोबारा परदे पर वापसी कर रहा है. लेकिन दोनों बाप-बेटे की वापसी के लिए क्या यह कहानी सही थी... ? शायद नहीं. हर दौर की तरह इस दौर के दर्शकों को ध्यान में रखकर कहानी लिखनी पड़ेगी.
सुनील दर्शन ने पेपर पर लिखी हुई इस कहानी को परदे पर सुंदरता से उतारा मगर कहानी ही कमजोर पड़ गई. इसलिए मेरी राय में सुनील दर्शन को कहानी लिखने का मोह छोड़कर आज के युवा या अच्छे लेखक से कहानी लिखवानी चाहिए तभी उनकी और उनके बेटे की परदे पर वापसी ठीक से हो सकती है.
फिल्म 'एक हसीना थी एक दीवाना था' को मेरी तरफ से 1 स्टार.