यह ख़बर 14 मार्च, 2014 को प्रकाशित हुई थी

फिल्म रिव्यू : नए अंदाज़ में कही गई प्रेमकथा है 'बेवकूफियां'...

मुंबई:

'बेवकूफियां' एक ऐसे युवा जोड़े की कहानी है, जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन इनके प्यार के बीच खड़े हैं लड़की के पिता... मोहित के किरदार में हैं 'विकी डोनर' फेम आयुष्मान खुराना और मायरा का किरदार निभाया है सोनम कपूर ने... वीके सहगल साहब, यानि मायरा के पिता का किरदार निभा रहे हैं ऋषि कपूर...

मोहित एक एयरवेज़ कंपनी में सीनियर सेल्स एक्ज़ीक्यूटिव के पद पर हैं, जिसकी कमाई 65 हज़ार रुपये है, जबकि मायरा की सैलरी है 72 हज़ार रुपये... दोनों साथ-साथ काफी खुश हैं, लेकिन तभी मंदी की वजह से मोहित की नौकरी चली जाती है। वीके सहगल अपनी बेटी से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए चाहते हैं कि मायरा की शादी बहुत अमीर लड़के से हो, जो दुनिया की हर खुशी उनकी बेटी को दे सके, और ज़ाहिर है, खुशियां पैसों से ही आती हैं, सो, मोहित को फेल करने के लिए वीके सहगल तरह-तरह के इम्तिहान लेते हैं, पर अंत में सब भला हो जाता है...

'बेवकूफियां' में आज के युवाओं की सोच और उनके लाइफस्टाइल को अच्छी तरह पर्दे पर उतारा गया है... आज की नौजवान पीढ़ी किस तरह प्यार करती है, किस तरह ज़िन्दगी के मज़े लेती है, और किस तरह अपने शौक पूरे करती है, युवाओं से जुड़े इन सभी पहलुओं को बखूबी दर्शाया है निर्देशक नूपुर अस्थाना ने... इसके साथ ही फिल्म में यह भी बताया गया है कि जब किसी की नौकरी चली जाती है तो उसे दूसरी नौकरी ढूंढने में किस तरह की दिक्कत पेश आती हैं, किस तरह उसके रिश्तों में दरारें आती हैं, और किस तरह पैसों की तंगी किसी भी इंसान का लाइफस्टाइल बदल डालती है...

फिल्म के तीनों मुख्य किरदारों, यानि ऋषि कपूर, सोनम कपूर और आयुष्मान खुराना के बीच की कैमिस्ट्री अच्छी है, और जो कुछ लेखक हबीब फैज़ल ने उनके लिए लिखा है, उसे तीनों ने अच्छी तरह निभाया है... हालांकि 'बेवकूफियां' में कई दृश्य अटपटे भी लगते हैं, और सोनम कपूर के बिकिनी वाले सीन को तो खूब प्रमोट भी किया गया, लेकिन मुझे लगा कि इस सीन की खास ज़रूरत थी ही नहीं... दूसरी ओर, फिल्म का म्यूज़िक भी मुझे दमदार नहीं लगा...

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हम रुपहले पर्दे पर प्रेम कथाएं पहले भी कई बार देख चुके हैं, जिनमें कोई न कोई टि्वस्ट आता है और जोड़े बिछड़ जाते हैं और फिर क्लाइमेक्स में मिल जाते हैं... इस फिल्म में भी इस लिहाज़ से कुछ अलग नहीं है, लेकिन इस बार कहानी दिखाने का अंदाज़ बदला हुआ है... या फिर यूं कहें कि हल्के-फुल्के और मज़ाकिया अंदाज़ में कहानी को कहा गया है... यह फिल्म एक बार तो देखी जा ही सकती है, क्योंकि आज का युवा इस कहानी से खुद को जोड़ पाएगा... कुल मिलाकर 'बेवकूफियां' बोर नहीं करती, इसलिए इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है - 3 स्टार...