यह ख़बर 12 मार्च, 2014 को प्रकाशित हुई थी

गरीब की मदद कर हुई खुशी पुरस्कार से बड़ी : विवेक ओबराय

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

अभिनेता विवेक ओबरॉय अपने एक दशक तक फैले फिल्मी करियर में कामयाबी और नाकामयाबी दोनों देख चुके हैं, लेकिन वह कहते हैं कि उनके लिए सामाजिक कार्य करना और दूसरों को खुशियां देने के लिए किए जाने वाले काम एक पुरस्कार या इनाम से कहीं बढ़कर हैं।

37वर्षीय विवेक ने एक साक्षात्कार में बताया, फिल्मों में अभिनय करना मेरा जुनून है, लेकिन दूसरों के आंसू पोंछने और चेहरों पर मुस्कान लाकर मेरी जिंदगी में जो एक तरह का आत्मसंतोष और सार्थकता आती है ना, वह बहुत खास है..वह सुख मुझे आज तक मिले किसी भी पुरस्कार और इनाम कहीं अधिक संतोष देता है।

विवेक ने वर्ष 2004 में तमिलनाडु में आई सुनामी में तबाह हुए एक गांव को फिर से बसाने में मदद की। जिस समय इस आपदा ने कहर मचाया था, वह चेन्नई में थे और उन्होंने छह ट्रक राहत सामग्री जुटाई थी। उन्होंने राज्य के कुड्डालोर जिले में सुनामी से तबाह हुए एक गांव को बाद में गोद भी ले लिया।

वह उत्तर प्रदेश के वृंदावन में एक स्कूल भी चलाते हैं। 'प्रोजेक्ट देवी' नामक यह स्कूल परिवारों द्वारा लावारिस छोड़ी गईं बच्चियों को सुविधाएं मुहैया कराता है। विवेक वहां काम चल रहे काम की प्रगति जांचने के लिए अक्सर जाते हैं।

दिग्गज अभिनेता सुरेश ओबरॉय के बेटे विवेक स्वयं को संवेदनशील बनाने और नेक काम के लिए धन जुटाने के लिए अपने परिवार के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।

उन्होंने बताया, मेरा परिवार हमेशा ही सामाजिक कार्यों से जुड़ा रहा है। मेरी मां ने तीन दशकों से अधिक समय तक कैंसर के मरीजों के लिए काम किया है। मेरे पिता का हमेशा ही झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा दिलाने की ओर झुकाव रहा है।

उन्होंने कहा, इसलिए, मैं इन प्रयासों के लिए अपने माता-पिता से प्रेरित हुआ था।

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विवेक ने वर्ष 2012 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'कंपनी' से बॉलीवुड में कदम रखा, जिसे बहुत सराहना मिली थी। उन्होंने 'साथिया' में एक प्रेमी की भूमिका निभाकर भी खूब वाहवाही लूटी।