फिल्म मातृ का एक दृश्य.
खास बातें
- 'मातृ' में दिखाई दिया रवीना टंडन का दमदार किरदार
- अपनी बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ती मां
- हमारी तरफ से इस फिल्म को मिलते हैं 4 स्टार
नई दिल्ली: इस शुक्रवार को दो फिल्में रिलीज हो रही हैं और इत्तेफाक से यह दोनों ही फिल्में महिला प्रधान हैं. इनमें से एक फिल्म है रवीना टंडन की 'मातृ'. इस फिल्म में रवीना काफी समय बाद नजर आने वाली हैं और उनके साथ मधुर मित्तल, दिव्या जगदाले, रुशाद राणा, अनुराग अरोड़ा, अलीशा ख़ान और शैलेन्द्र गोयल जो जैसे कलाकार दमदार अंदाज में नजर आने वाले हैं. 'मातृ' का निर्देशन डेब्युटेन्ट डायेरेक्टर अश्तर सैय्यद कर रहे हैं और इस फिल्म को माइकल पेलिको ने लिखा है. 'मातृ' एक मां के बदले की कहानी है, जिसकी बेटी का बलात्कार उसकी आंखों के सामने हो जाता है. जिसके बाद वह अपनी भावनाओं को संभालती हुई, पारिवारिक समस्याओं से जूझती हुई और सिस्टम से लोहा लेते हुए एक मां किस तरह सत्ता में बैठे दबंगों को बदले की आग में भस्म कर देती है यही फिल्म 'मातृ' की कहानी है.
हर बार की तरह इस बार भी हम इस फिल्म की खूबियां और खामी की बात करेंगे. 'मातृ' की पहली कमी है इसकी कहानी जो की प्रिडिक्टिबल है और आपको इसका पूर्वाभास हो जाता है. ट्रेलर देखकर ही आपको अंदाज़ा हो जाता है की ये फ़िल्म एक बदले की कहानी है. फिल्म की दूसरी कमी मुझे इसके गाने में लगी. फिल्म के गाने सुनने में तो अच्छे लगते हैं लेकिन इसके बची के सीन की अवधि कम होती तो बेहतर होता. फिल्म में इन्हें मोन्टाजेस की तरह इस्तेमाल किया गया है जहां इनके जरिए एक मां का दर्द बयां किया गया है. एक और बात आप इसे फिक्शन की तरह देखें तो फिल्म में कोई कमी नजर नहीं आएंगी और अगर आपने इसमें लॉजिक लगाया तो हो सकता है आपकों इसमें कानूनी दांव-पेच की कमियां दिखाई दे सकती हैं.
अब बात करते हैं इस फिल्म की खूबियों की. इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है इसका स्क्रीन प्ले जो आपको हिलने नहीं देता. जैसे मैंने कहा की कहानी प्रिडिक्टेबल होते हुए भी इसका स्क्रीन प्ले आपको बांधे रखता है. कई सीन्स आपको सांस रोक कर फिल्म देखने को मजबूर कर देते हैं और पर्दे पर घट रही घटनाएं आपके दिल की धड़कनें तेज़ कर देती हैं और सिनेमा हॉल में ये समां बांधने के लिए स्क्रीन प्ले के साथ साथ निर्देशन और अभिनय का भी बहुत बड़ा हाथ है. अश्तर का कसा हुआ निर्देशन दृश्यों को असरदार बनाता है और उसमें चार चांद लगाता है रवीना का अभिनय. यूं तो रवीना ने कई बार खुद को बेहतरीन कलाकार साबित किया है पर इस फिल्म में कई जगह उनके अभिनय की बारीकियां इशारा करती हैं की रवीना वक्त के साथ और परिपक्व अभिनेत्री के तौर पर उभर रहीं है जहां किरदार के सुर से वो ज़रा भी भटकती नज़र नहीं आतीं.
रवीना के अलावा मधुर भी निगेटिव रोल में ज़बरदस्त छाप छोड़ते हैं और इनके अलावा अनुराग अरोड़ा और शैलेन्द्र गोयल अपने सहज और असरदार अभिनय से आप पर प्रभाव छोड़ने मे कामयाब होंगे. फिल्म की सिनेमोटोग्राफ़ी और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की कहानी से सुर मिलाता है और प्रभावशाली है. सबसे अच्छी बात ये है कि कई दृश्यों के फिल्मांकन में निर्देशक ने वास्तविकता बरकरार रखी है और उन्हे फिल्मी या नाटकीय नहीं होने दिया है जो देखने में असरदार साबित होता है. मेरे हिसाब से 'मातृ' एक अच्छी फिल्म है और इसे मेरी तरफ से 4 स्टार्स.